मानो हि महतां धनम्
विशेष - यहाँ विदुरा की चारित्रिक विशेषताओं को दर्शाया गया है।
क्षात्रधर्मरता=क्षात्र धर्म का पालन करने वाली,
दीर्घदर्शिनी=भविष्य के संदर्भ में चिन्तन-मनन करने वाली,
राज संसत्सु=राज्य सभाओं में
विश्रुता=प्रसिद्ध,
श्रुतवाक्या=न्याय पारंगत अथवा निपुण
बहुश्रुता=विदुषी
विदुरा=विदुरा धन्य है
धन्या=धन्य है
अन्वयः - विदुरा नाम सत्या सिन्धुराजेन निर्जितम् शयानम् दीनचेतसम् अनन्दनम् अधर्मज्ञम् द्विषतां हर्षवर्धनम् औरसं पुत्रं जगर्हे।।
निश्चय ही
विदुरा नाम=विदुरा नाम वाली,
सत्या= सत्य भाषण करने वाली माता ने
सिन्धुराजेन=सिन्धुराज से
निर्जितम्=पराजित,
शयानम्=सोते हुये,
दीनचेतसम्=उदास मन वाले,
अनन्दनम्=दूसरों को अप्रसन्न करने वाले,
अधर्मज्ञम्=धर्म को न जानने वाले,
द्विषतां=शत्रुओं को
हर्षवर्धनम्=प्रसन्न करने वाले
औरसं पुत्रं=अपने पुत्र की निन्दा की
जगर्हे=निन्दा की ।
उत्तिष्ठ हे कापुरुष मा शेष्वैवं पराजितः ।
अमित्रान्नन्दयन्सर्वान् निर्मानो बन्धुशोकद || 3 ||
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - हे कायर पुरुष! (अपने) सम्पूर्ण शत्रुओं को हर्षित करते हुये, सम्मान रहित, बन्धु बान्धवों को शोक प्रदान करने वाले, पराजित (तुम) इस प्रकार मत सोओ, उठो।
विशेष - भाव यह है कि तुम शत्रुओं से भय का त्याग करके पराक्रम दिखलाओ। यहाँ विदुरा के वीरोचित उद्गार व्यक्त हुए हैं। वह अपने पुत्र को कायरता छोड़कर वीरोचित शत्रुओं से युद्ध करने की प्रेरणा देती है।
अन्वयः - हे कापुरुष ! सर्वान् अमित्रान् नन्दयन् निर्मानः बन्धु शोकदः एवं पराजितः, मा शेष्व, उत्तिष्ठ।
हे कापुरुष !=
सर्वान्=
अमित्रान्=
नन्दयन्=
निर्मानः=
बन्धु शोकदः=
एवं पराजितः=
मा शेष्व=
उत्तिष्ठ=
कठिन-शब्दार्थ :
- हे कापुरुष! = हे कायर पुरुष!
- अमित्रान् = शत्रुओं को।
- नन्दयन् = प्रसन्न करते हुये।
- निर्मानः = सम्मान रहित।
- बन्धुशोकदः = बन्धुओं को शोक प्रदान करने वाला।
- मा शेष्व = मत सोओ।
- उत्तिष्ठ = उठो।
धर्मं पुत्राग्रतः कृत्वा किं निमित्तं हि जीवसि ॥4 ॥
विशेष - यहाँ विदुरा के वीरोचित स्वाभिमान को दर्शाया गया है। वह अपने पुत्र को क्षत्रियोचित धर्म का पालन करते हुए युद्ध के लिए प्रेरित करती है।
अन्वयः - पुत्र! धर्मम् अग्रतः कृत्वा वीर्यं वा उद्भावयस्व, तां ध्रुवाम् वा गतिं गच्छ। हि किं निमित्तम् जीवसि ॥
पुत्र!=
धर्मम्=
अग्रतः=
कृत्वा=
वीर्यं वा=
उद्भावयस्व=
तां ध्रुवाम्=
वा गतिं=
गच्छ=
हि किं=
निमित्तम्=
जीवसि=
कठिन-शब्दार्थ :
- उद्भावयस्व = प्रकट करो, ज्ञात करो।
- वीर्यम् = वीरता को।
- अग्रतः = आगे।
- ध्रुवाम् = अटल, स्थिर।
- निमित्तम् = हेतु, कारण।
प्रसंग - यह श्लोक 'मानो हि महतां धनम्' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। विदुरा अपने पुत्र से कह रही है -
विशेष - यहाँ माता विदुरा द्वारा अपने पराजित पुत्र सञ्जय को पराक्रम एवं वीरता प्रकट करने हेतु अत्यन्त वीरोचित उद्बोधन दिया गया है।
अन्वयः - स्वयम् एव सत्त्वम् मानम् च कुरु, आत्मनः पौरुषम् विद्धि, हि तत्कृते मग्नम् कुलम् उद्भावय ।।
स्वयम् एव=
सत्त्वम्=
मानम् च=
कुरु=
आत्मनः=
पौरुषम्=
विद्धि=
हि तत्कृते=
मग्नम्=
कुलम्=
उद्भावय=
कठिन-शब्दार्थ :
- सत्त्वम् = पराक्रम, वीरता।
- पौरुषम् = पुरुषत्व।
- विद्धि = जानो।
- मग्नम् = डूबे हुये।
- त्वत्कृते = तुम्हारे लिए।
- उद्भावय = प्रकट करो।
प्रसंग - यह श्लोक 'मानो हि महतां धनम्' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस श्लोक में विदुरा अपने पुत्र को कह रही है ।
विशेष - यहाँ प्रख्यात चरित्र वाले मनुष्य का ही जीवन सार्थक एवं मनुष्य कहलाने का अधिकारी कहा गया है।
अन्वयः - मानवाः यस्य महत् अद्भुतम् राशिवर्धन मात्रम् वृत्तं न जल्पन्ति, सः न एव स्त्री, न पुनः पुमान् (अस्ति)॥
मानवाः=
यस्य महत्=
कठिन-शब्दार्थ :
वृत्तम् = वृत्तान्त को।
महत् अद्भुतम् = अत्यन्त विचित्र।
जल्पन्ति = कहते हैं, बोलते हैं।
राशिवर्धन मात्रम् = मात्र संख्या बढ़ाने वाले।
पुमान् = पुरुष।
प्रसंग - यह श्लोक 'मानो हि महतां धनम्' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। विदुरा अपने पुत्र को सम्बोधित करते हुये कह रही है।
अन्वयः - यः आत्मनः प्रियं सुखं हित्वा श्रियम् मृगयते, अथो सः अचिरेण अमात्यानाम् हर्षं आदधाति॥
यः आत्मनः=जो अपने
प्रियं सुखं=प्रिय सुख को
हित्वा=छोड़कर
श्रियम्= शोभा अथवा लक्ष्मी को
मृगयते=खोजता है,
अथो सः=वह
अचिरेण=शीघ्र ही
अमात्यानाम्=अपने मंत्रियों को
हर्षं=हर्ष
आदधाति=पहुँचाता है।
( अर्थात् वह राजा अपने मंत्रियों के लिए प्रसन्नता उत्पन्न करता है।)
विशेष - यहाँ विदुरा के पुत्र द्वारा भौतिक सुख-साधनों की सार्थकता जीवित रहने पर ही मानते हुए जिज्ञासा प्रकट की गई है।
अन्वयः - नु सर्वथा माम् अपश्यन्त्याः पृथिव्याः अपि ते किम्, ते आभरणकृत्यम् किम्, भोगैः जीवितेन वा किम्॥
नु सर्वथा=निश्चय ही सर्वथा
माम्=मुझको
अपश्यन्त्याः=न देखते हुये तुम्हारी
पृथिव्याः=पृथ्वी का
अपि ते किम्=क्या लाभ?
ते आभरणकृत्यम्=तुम्हारे आलंकारिक
किम्,=कार्य भी क्या? अर्थात् उनसे भी क्या प्रयोजन?
भोगैः=भोगों से क्या
जीवितेन वा=अथवा इस जीवन से
किम्=क्या? अर्थात् इन सबसे क्या लाभ?
विशेष - यहाँ विदुरा ने परोपकारी एवं स्वाभिमानी व्यक्ति के ही जीवन को सार्थक माना है।
अन्वयः - संजय! सर्वभूतानि यम् पुरुषम् पक्वम् द्रुमम् इव आसाद्य आजीवन्ति, तस्य जीवितम् अर्थवत् (भवति)॥
संजय!=हे (पुत्र) संजय!
सर्वभूतानि=(संसार के) सभी प्राणी
यम् पुरुषम्=जिस पुरुष को
पक्वम् द्रुमम्=पके हुये वृक्ष के
इव आसाद्य= समान प्राप्त कर
आजीवन्ति=उसका आश्रय ग्रहण करते हैं,
तस्य जीवितम्=उसका जीवन
अर्थवत् (भवति)=सफल होता है।
विशेष - विदुरा के अनुसार पराक्रमी व्यक्ति ही इस लोक में यश एवं परलोक में परम गति को प्राप्त करता है।
अन्वयः-यः मानवःस्वबाहुबलम् आश्रित्य अभ्युज्जीवति सःलोके कीर्तिं लभते,परत्र च शुभाम् गतिम् (लभते)॥
यः मानवः=जो मनुष्य
स्वबाहुबलम्=अपनी भुजाओं की शक्ति का
आश्रित्य=सहारा लेकर
अभ्युज्जीवति सः=जीवित रहता है, वह
लोके कीर्तिं=इस लोक में यश को
लभते=प्राप्त करता है
परत्र च=तथा परलोक में
शुभाम्=श्रेष्ठ गति (सद्गति)
गतिम् (लभते)= को प्राप्त करता है।
तच्चकार तथा सर्वं यथावदनुशासनम्॥॥11॥
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - वह (संजय) (अपनी माता विदुरा के) वाणी के बाणों से फेंके गये अच्छे घोड़े के समान प्रेरित किया गया । जैसा माता ने उसे उपदेश या आदेश दिया, उसने वैसा ही सब कुछ किया। अर्थात् कायरता को छोड़कर स्वाभिमानपूर्वक रहना प्रारंभ किया।व प्रेरक वचनों का उसके पुत्र सञ्जय पर पड़े प्रभाव को दर्शाया गया है. वह अपनी कायरता को त्यागकर स्वाभिमानी जीवन जीने को तत्पर हो जाता है।
अन्वयः - सः वाक्यसायकैः क्षिप्तः सत् अश्व इव प्रणुन्नः यथावत् अनुशासनम् तथा तत् सर्वम् चकार ॥
सः वाक्यसायकैः=वह (संजय) (अपनी माता विदुरा के) वाणी के बाणों से
क्षिप्तः सत्= फेंके गये अच्छे
अश्व इव प्रणुन्नः=घोड़े के समान प्रेरित किया गया ।
यथावत्=जैसा माता ने उसे
अनुशासनम्=उपदेश या आदेश दिया,
तथा तत्=उसने वैसा ही
सर्वम् चकार=सब कुछ किया।
प्रश्न: 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरं संस्कृतेन देयम्
(क) 'मानो हि महतां धनम्' इत्ययं पाठः कस्मात् ग्रन्थात् संकलितः ?
उत्तरम् :
'मानो हि महतां धनम्' इत्ययं पाठः महाभारत ग्रन्थात् संकलितः।
(ख) विदुरा कुत्र विश्रुता आसी?
उत्तरम् :
विदुरा राजसंसत्सु विश्रुता आसीत्।
(ग) विदुरायाः पुत्रः केन पराजितः अभवत् ?
उत्तरम् : विदुरायाः पुत्रः सिन्धुराजेन पराजितः अभवत्।
(घ) कः स्त्री पुमान् वा न भवति?
उत्तरम् :
मानवाः यस्य महदद्भुतम् वृत्तं न जल्पन्ति यश्च राशिवर्धनमात्रं सः नैव स्त्री न पुनः पुमान् भवति।
(ङ) कः अमात्यानां हर्ष न आदधाति ?
उत्तरम् :
यः आत्मनः प्रियसुखं न जहाति सः अमात्यानां हर्षं न आदधाति।
(च) अपुत्रया मात्रा किं आभरणकृत्यं न भवति?
उत्तरम् :
अपुत्रया मात्रा पुत्रोपेक्षणम् आभरणकृत्यं न भवति।
(छ) कस्य जीवितम् अर्थवत् भवति?
उत्तरम् :
यं आश्रित्य सर्वभूतानि जीवन्ति, तस्य जीवितम् अर्थवत्।
प्रश्न: 2.
'यः आत्मन:... अचिरेण सः' अस्य श्लोकस्य आशयं हिन्दी भाषया स्पष्टी कुरुत।
उत्तरम् :
हिन्दी भाषा में आशय-इस श्लोक का आशय यह है कि जो व्यक्ति अपनी सुख-सुविधा को त्याग कर सफलता अथवा समृद्धि की आशा करता है ऐसा व्यक्ति शीघ्र ही अपने मंत्रियों की प्रसन्नता की वृद्धि करता है। भाव यह है कि त्याग के बिना सफलता संभव नहीं है।
प्रश्न: 3.
रिक्तस्थानम् पूर्तिः विधेया -
(क) विदुरा ओरसपुत्र ................।
उत्तरम् :
विदुरा ओरसपुत्रं जगहें।
(ख) हे कापुरुष ........................ मा शेष्व।
उत्तरम् :
हे कापुरुष एवं पराजितः मा शेष्व।
(ग) त्वत्कृते स्वयमेव मग्नं ....................... उद्भावय।
उत्तरम् :
त्वत्कृते स्वयमेव मग्नं कुलम् उद्भावय।
(घ) यः प्रियसुखे. श्रियम् मृगयते।
उत्तरम् :
यः प्रियसुखे हित्वा श्रियम् मृगयते।
(ङ) मामपश्यन्त्याः... अपि सर्वथा किम्?
उत्तरम् :
मामपश्यन्त्याः पृथिव्या अपि सर्वथा किम्?
(च) सर्वभूतानि............. यमाजीवन्ति।
उत्तरम् :
सर्वभूतानि संजय यमाजीवन्ति।
(छ) स यथावत् ................. चकार।
उत्तरम् :
स यथावत् अनुशासनं तथा तत् सर्वं चकार।
प्रश्न: 4.
अधोलिखितानां शब्दानां विलोमान् लिखत विश्रुता, सत्या, अधर्मज्ञम्, अमित्रान्, कापुरुषः, अचिरेण, आसाद्य।
उत्तरम् :
शब्दाः - विलोम शब्दाः
- विश्रुता = अविश्रुता
- सत्या = असत्या
- अधर्मज्ञम् = धर्मज्ञम्
- अमित्रान् = मित्रान्
- कापुरुषः = वीरपुरुषः
- अचिरेण = चिरेण
- आसाद्य = अनासाद्य
प्रश्नः 5.
पञ्चभिः वाक्यैः विदुरायाः चरित्रम् वर्णयत्
उत्तरम् :
- विदुरा क्षात्रधर्मरता आसीत्।
- सा दीर्घदर्शिनी श्रुतवाक्या चासीत्।
- सा राजसंसत्सु विश्रुता आसीत्।
- सा बहुश्रुता आसीत्।
- सा सत्यवादिनी आसीत्।
प्रश्नः 6.
यमाजीवन्तिः ....................................... जीवितमर्थवत्-अस्य श्लोकस्य अन्वयं लिखत।
उत्तरम् :
अन्वयः - सञ्जय! सर्वभूतानि यम् पुरुषम् पक्वम् द्रुमम् इव आसाद्य आजीवन्ति तस्य जीवितम् अर्थवत्।
प्रश्नः 7.
अधोलिखितपदानां संस्कृत वाक्येषु प्रयोगं कुरुत विश्रुता, शयानम्, द्विषताम्, गतिम्, पक्वम्, क्षिप्तः।
उत्तरम् :
- विश्रुता-विदुरा राजसभासु विश्रुता आसीत्।
- शयानम्-सा शयानम् पुत्रं निनिन्द।
- द्विषताम्-रामः द्विषताम् हर्षवर्धनः आसीत्।
- गतिम्-भाग्यस्य गतिं कोऽपि न जानाति।
- पक्वम्-पक्वं फलं खादेत्।
- क्षिप्त:-धनुषा क्षिप्तः अयं शरः।
संस्कृतभाषया उत्तरम् दीयताम् -
प्रश्न: 1.
महतां किं धनम्?
उत्तरम् :
मानो हि महतां धनमस्ति।
प्रश्नः 2.
क्षात्रधर्मरता का आसीत?
उत्तरम् :
क्षात्रधर्मरता विदुरा आसीत्।
प्रश्न: 3.
विदुरा कं जगहे?
उत्तरम् :
विदुरा ओरसपुत्रं जगहें ।
प्रश्न: 4.
द्विषतां हर्षवर्धनम् कः आसीत्?
उत्तरम् :
द्विषतां हर्षवर्धनम् विदुरायः पुत्र आसीत् ।
प्रश्न: 5.
विदुरा स्वपुत्रं किं उक्तवती?
उत्तरम् :
विदुरा स्वपुत्रं उक्तवती-'हे कापुरुष! उत्तिष्ठ एवं पराजितः मा शेष्व।'
प्रश्नः 6.
विदुरयानुसारेण कः लोके कीर्तिं लभते?
उत्तरम् :
विदुरयानुसारेण यः मानवः स्वबाहुबलमाश्रित्य अभ्युज्जीवति सः लोके कीर्तिं लभते।
प्रश्नः 7.
वाक्यसायकैः प्रणुन्नः सः किमिव क्षिप्तः?
उत्तरम् :
वाक्यसायकैः प्रणुन्नः सः सदश्व इव क्षिप्तः।
प्रश्न: 8.
'मानो हि महतां धनम्' पाठे विदुरया स्वपुत्राय किं उपदिष्टम?
उत्तरम् :
'मानो हि महतां धनम्' पाठे विदुरया स्वपुत्राय कायरतां विहाय स्व स्वाभिमानं पुनः प्राप्तुं उपदिष्टम्।
प्रश्न: 9.
परत्र शुभां गतिं कः लभते?
उत्तरम् :
यः स्वबाहुबलमाश्रित्य अभ्युज्जीवति परत्र सः शुभां गतिं प्राप्नोति।
प्रश्न: 10.
विदुरायाः पुत्रस्य किं नाम आसीत्?
उत्तरम् :
विदुरायाः पुत्रस्य सञ्जयः नाम आसीत्।
प्रश्न: 11.
दीर्घदर्शिनी श्रुतवाक्या का आसीत्?
उत्तरम् :
दीर्घदर्शिनी श्रुतवाक्या विदुरा आसीत्।
प्रश्न: 12.
निर्मानो बन्धुशोकदः कस्य विशेषणे स्तः?
उत्तरम् :
निर्मानो बन्धुशोकदः सञ्जयस्य विशेषणे स्तः।
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जयतु संस्कृतम्।