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मंगलवार, 13 सितंबर 2022

विज्ञाननौका

 

विज्ञाननौका

      प्रस्तुत पाठ 1933 में पुरी (उड़ीसा) में जन्मे कवि प्रो. श्रीनिवास रथ द्वारा रचित कविता-संग्रह तदेव गगनं सैव धरा से संगृहीत है। श्रीनिवास रथ बाल्यकाल से मध्यप्रदेश के विभिन्न नगरों में रहे तथा अपने पिता से पारम्परिक पद्धति द्वारा संस्कृत का अध्ययन करने के पश्चात् उच्चशिक्षा इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राप्त की । ये विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में संस्कृत विभाग में प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष रहे।
         प्रायः 40 वर्षों से ये संस्कृत में गीत लिखते आ रहे हैं। इनके गीतों का उपर्युक्त संग्रह हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित हो चुका है। प्रस्तुत पाठ में आधुनिक विश्व में यान्त्रिकता और कृत्रिमता के प्रति बढ़ते हुए मोह के प्रति सचेत किया जा रहा है कि जीवन मूल्यों को भुलाकर नई भौतिक तकनीकी से मानव को अभिभूत नहीं होना चाहिए।
विज्ञाननौका समानीयते 
ज्ञानगङ्गा विलुप्तेति नालोक्यते ।
संस्कृतोद्यानदूर्वा दरिद्रीकृता 
निष्कुटेषु स्वयं कण्टकिन्याहिता । 
पुष्पितानां लतानां न रक्षा कृता 
विस्तृता वाटिकायोजना निर्मिता ॥
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या-(वर्तमान में) विज्ञान रूपी नाव लाई जा रही है तथा ज्ञानरूपी गंगा लुप्त हो गई है। यह नहीं देखा जा रहा है। अर्थात् ज्ञान की ओर प्रवृत्ति नहीं दिखाई दे रही है। (हमने) स्वयं संस्कृत रूपी उद्यान की दूर्वा (दूब, घास) को गरीब बना दिया है अर्थात् संस्कृत के प्रति उपेक्षा भाव है। हमारे द्वारा अपने घरेलू उपवनों में, क्रीड़ा उद्यानों में कैक्टस या नागफनी का पौधा लगाया जा रहा है। (हमारे द्वारा) पुष्पों से युक्त लताओं की रक्षा नहीं की गई तथा विस्तृत बगीचियों का निर्माण कर दिया गया। 
के कथं कुत्र वा क्रन्दनं कुर्वते 
राजनीतिश्मशानेषु न ज्ञायते । विज्ञाननौका......
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - राजनीति रूपी श्मशानों में कौन, कैसे या किसलिए कहाँ क्रन्दन कर रहे हैं, यह पता नहीं चल रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि आधुनिक राजनीति ने श्मशान का रूप धारण कर लिया है। जहाँ सब अपना-अपना राग अलाप रहे हैं मानो क्रन्दन कर रहे हैं। विज्ञान रूपी नाव लाई जा रही है।
वर्तमानस्थितिर्मानवानां कृते 
प्रत्यहं दुर्निमित्तैव संलक्ष्यते । 
यत्र कुत्रापि शान्तिः समुद्वीक्ष्यते 
तत्र विध्वंसबीजं समायोज्यते ॥
सर्वनाशार्थविद्यैव विद्योतते
 स्वार्थरक्षावलम्बोऽपि नो चिन्त्यते । विज्ञाननौका.......
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - प्रतिदिन मनुष्यों के लिए वर्तमान परिस्थिति अमांगलिक (अशुभ) ही दिखाई दे रही है। जहाँ कहीं भी शान्ति दिखाई दे रही है, वहीं विनाश का बीज भी बोया जा रहा है। सभी पदार्थों का विनाश करने वाली विद्या ही अधिक चमक रही है अर्थात् उसी का बोलबाला है। स्वार्थ रक्षा के आश्रय के विषय में भी विचार नहीं किया जा रहा है। विज्ञान रूपी नाव लाई जा रही है।
तारकायुद्धसम्भावनाऽधीयते 
गोपनीयायुधानां कथा श्रूयते ।
 विश्वशान्तिप्रयत्नेषु सन्दृश्यते 
विश्वसंहारनीतिर्यथोपास्यते ॥
भूतले जीवरक्षा परिक्षीयते 
जीवनाशाऽन्तरिक्षे ऽनुसन्धीयते । विज्ञाननौका..... 
हिन्दी/व्याख्या - (आज) मिसाइलों की लड़ाई की संभावना बतलाई जा रही है। गोपनीय आण्विक अस्त्र-शस्त्र आदि की कहानी सुनने में आ रही है। विश्वशान्ति के प्रयास दिखाई दे रहे हैं। विश्व के विनाश की नीति सिखाई जा रही है या अपनाई जा रही है। पृथ्वी पर प्राणियों की रक्षा क्षीण हो रही है तथा आकाश में जीवन की आशा ढूँढ़ी जा रही है। विज्ञान रूपी नौका लाई जा रही है। 
विश्वबन्धुत्वदीक्षागुरूणां व्रतं 
धर्मसंस्कारतत्त्वं बतास्तं गतम् । 
लोककल्याणशिक्षासमाराधनं 
हन्त ! विक्रीयते काव्य-सङ्कीर्तनम् ॥
यन्त्रमुग्धान्धताऽहर्निशं सेव्यते 
संस्कृतिज्ञानरक्षा न सञ्चिन्त्यते । विज्ञाननौका......
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - बड़ा कष्ट है कि वर्तमान में विश्वबन्धुत्व की दीक्षा, गुरुओं का व्रत, धर्म संस्कार सम्बन्धी बातें नष्ट हो रही हैं। खेद है कि आज लोकहित शिक्षा की आराधना तथा काव्य संकीर्तन बेचा जा रहा है। दिन रात यन्त्रों के मोह के अन्धकार का सेवन किया जा रहा है, अर्थात् यन्त्रों का मोह बढ़ रहा है। संस्कृति एवं ज्ञान की रक्षा के विषय में किसी को भी चिन्ता नहीं है, उनके विषय में कुछ भी विचार नहीं किया जा रहा है। विज्ञान रूपी नौका लाई जा रही है। 


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जयतु संस्कृतम्।