ईशः कुत्रास्ति
प्रस्तुत पाठ नोबेल पुरस्कार विजेता कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर की विश्वविख्यात कृति गीताञ्जलि के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। इसमें कवि ने ईश्वर की वास्तविक सत्ता को किसानों, मज़दूरों और गरीबों में दर्शाया है। इसके अनुवादक को. ल. व्यासराय शास्त्री हैं।
देवागारे पिहितद्वारे
तमोवृतेऽस्मिन् भजसे कम् ?
त्यज जपमालां त्यज तव गानं
नास्त्यत्रेशः स्फुटय दृशम् ॥
अन्वयः - अस्मिन् तमोवृते पिहितद्वारे देव-आगारे कम् भजसे? जपमालाम् त्यज, तव गानम् त्यज, दृशम् स्फुटय, अत्र ईशः न अस्ति॥
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या -कवि का कथन है कि हे मानव !अन्धकार से आच्छादित बन्द दरवाजे वाले, देवालय में तू किसका भजन कर रहा है? मन्त्र आदि जाप करने की माला को छोड़ो, तुम्हारे गीत भजन आदि को छोड़ो, दृष्टि (नेत्रों) को खोलो तथा देखो यहाँ ईश्वर नहीं है।
कवि का कथन है कि हे मानव!
अस्मिन् तमोवृते=इस अंधकार से आच्छादित
पिहितद्वारे=बन्द दरवाजे वाले
देव-आगारे=देवालय में,
कम् भजसे?=(तू) किसका भजन कर रहा है?
जपमालाम् त्यज,=छोड़ो।
तव गानम् त्यज,= छोड़ो।
दृशम् स्फुटय,=दृष्टि को खोलो
अत्र ईशः=यहाँ ईश्वर
न अस्ति=नहीं है।
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या -कवि का कथन है कि हे मानव !अन्धकार से आच्छादित बन्द दरवाजे वाले, देवालय में तू किसका भजन कर रहा है? मन्त्र आदि जाप करने की माला को छोड़ो, तुम्हारे गीत भजन आदि को छोड़ो, दृष्टि (नेत्रों) को खोलो तथा देखो यहाँ ईश्वर नहीं है।
कवि का कथन है कि हे मानव!
अस्मिन् तमोवृते=इस अंधकार से आच्छादित
पिहितद्वारे=बन्द दरवाजे वाले
देव-आगारे=देवालय में,
कम् भजसे?=(तू) किसका भजन कर रहा है?
जपमालाम् त्यज,=छोड़ो।
तव गानम् त्यज,= छोड़ो।
दृशम् स्फुटय,=दृष्टि को खोलो
अत्र ईशः=यहाँ ईश्वर
न अस्ति=नहीं है।
तत्रास्तीशः, कठिनां भूमिं
यत्र हि कर्षति लाङ्गलिकः।
यत्र च जनपदरथ्याकर्ता
प्रस्तरखण्डान् दारयते ॥
अन्वयः - हि यत्र लाङ्गलिकः कठिनाम् भूमिम् कर्षति, यत्र च जनपदरथ्याकर्ता प्रस्तरखण्डान् दारयते, तत्र ईशः अस्ति ॥
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - निश्चय से जहाँ हल चलाने वाला कृषक कठोर धरती पर हल चलाता है तथा जहाँ नगर की सड़क बनाने वाला मजदर पत्थरों के टुकड़ों को तोडता है, वहाँ ईश्वर है।
हि यत्र=निश्चय से जहाँ
लाङ्गलिकः=हल चलाने वाला कृषक
कठिनाम्=कठोर
भूमिम् कर्षति,=धरती पर हल चलाता है
यत्र च= तथा जहाँ
जनपदरथ्याकर्ता=नगर की सड़क बनाने वाला मजदूर
प्रस्तरखण्डान्=पत्थरों के टुकड़ों को तोडता है, वहाँ ईश्वर है।
दारयते,=तोडता है,
तत्र ईशःअस्ति=वहाँ ईश्वर है।
हि यत्र=निश्चय से जहाँ
लाङ्गलिकः=हल चलाने वाला कृषक
कठिनाम्=कठोर
भूमिम् कर्षति,=धरती पर हल चलाता है
यत्र च= तथा जहाँ
जनपदरथ्याकर्ता=नगर की सड़क बनाने वाला मजदूर
प्रस्तरखण्डान्=पत्थरों के टुकड़ों को तोडता है, वहाँ ईश्वर है।
दारयते,=तोडता है,
तत्र ईशःअस्ति=वहाँ ईश्वर है।
इशस्तिष्ठति वर्षातपयो-
स्ताभ्यां सार्धं मलिनवपुः ।
दूरे क्षिप तव शुद्धां शाटी-
मेहि स इव पांसुरभूमिम् ॥
अन्वयः - मलिनवपुः ईशः वर्षा आतपयोः ताभ्यां सार्धम् तिष्ठति। (अतः) तव शुद्धां शाटीम् दूरे क्षिप, स इव पांसुरभूमिम् एहि ॥
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - मैलयुक्त शरीर वाला अर्थात् दीन ईश्वर वर्षा तथा धूप में उन दोनों (किसान व मजदूर) के साथ रहता है, अतः तुम अपनी स्वच्छ साड़ी को दूर फेंको तथा उसकी भाँति धूल-धूसरित धरती पर आओ।
मलिनवपुः=मैलयुक्त शरीर वाला अर्थात् दीन
ईशः वर्षा= ईश्वर वर्षा
आतपयोः=तथा धूप में
ताभ्यां सार्धम्= उन दोनों (किसान व मजदूर) के साथ
तिष्ठति= रहता है,
(अतः) तव=अतः तुम
शुद्धां शाटीम्=अपनी स्वच्छ साड़ी को
दूरे क्षिप,=दूर फेंको तथा
स इव=उसकी भाँति
पांसुरभूमिम्=धूल-धूसरित धरती पर आओ।
एहि=आओ।
मलिनवपुः=मैलयुक्त शरीर वाला अर्थात् दीन
ईशः वर्षा= ईश्वर वर्षा
आतपयोः=तथा धूप में
ताभ्यां सार्धम्= उन दोनों (किसान व मजदूर) के साथ
तिष्ठति= रहता है,
(अतः) तव=अतः तुम
शुद्धां शाटीम्=अपनी स्वच्छ साड़ी को
दूरे क्षिप,=दूर फेंको तथा
स इव=उसकी भाँति
पांसुरभूमिम्=धूल-धूसरित धरती पर आओ।
एहि=आओ।
मुक्तिः ? क्व नु सा दृश्या मुक्ति:!
सलीलमीशः सृजति भुवम्।
तिष्ठति चास्मद्धिताभिलाषी
सविधेऽस्माकं मिषन् सदा॥
अन्वयः - मुक्तिः? नु सा मुक्तिः क्व दृश्या! ईशः सलीलम् भुवम् सृजति। अस्मद् हित-अभिलाषी च मिषन् सदा अस्माकम् सविधे तिष्ठति॥
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या-मुक्ति? निश्चय से वह मुक्ति (मोक्ष) कहाँ देखी गई है? अर्थात् उसे किसने देखा है? अर्थात् किसी ने भी नहीं देखा है। ईश्वर लीला के साथ पृथ्वी का सृजन करता है अर्थात् सृष्टि का निर्माण करता है। हमारा हित चाहने वाला वह ईश्वर हमारा हित देखता हुआ सदैव हमारे पास ही रहता है।
मुक्तिः?=मुक्ति?
नु सा मुक्तिः= निश्चय से वह मुक्ति (मोक्ष)
क्व दृश्या!=कहाँ देखी गई है? अर्थात् उसे किसने देखा है? अर्थात् किसी ने भी नहीं देखा है।
ईशः सलीलम्=ईश्वर लीला के साथ
भुवम् सृजति=पृथ्वी का सृजन करता है अर्थात् सृष्टि का निर्माण करता है।
अस्मद् हित-=तथा हमारा हित
अभिलाषी च=चाहने वाला
मिषन् सदा=वह ईश्वर हमारा हित देखता हुआ सदैव
अस्माकम्=हमारे
सविधे तिष्ठति=पास ही रहता है।
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या-मुक्ति? निश्चय से वह मुक्ति (मोक्ष) कहाँ देखी गई है? अर्थात् उसे किसने देखा है? अर्थात् किसी ने भी नहीं देखा है। ईश्वर लीला के साथ पृथ्वी का सृजन करता है अर्थात् सृष्टि का निर्माण करता है। हमारा हित चाहने वाला वह ईश्वर हमारा हित देखता हुआ सदैव हमारे पास ही रहता है।
मुक्तिः?=मुक्ति?
नु सा मुक्तिः= निश्चय से वह मुक्ति (मोक्ष)
क्व दृश्या!=कहाँ देखी गई है? अर्थात् उसे किसने देखा है? अर्थात् किसी ने भी नहीं देखा है।
ईशः सलीलम्=ईश्वर लीला के साथ
भुवम् सृजति=पृथ्वी का सृजन करता है अर्थात् सृष्टि का निर्माण करता है।
अस्मद् हित-=तथा हमारा हित
अभिलाषी च=चाहने वाला
मिषन् सदा=वह ईश्वर हमारा हित देखता हुआ सदैव
अस्माकम्=हमारे
सविधे तिष्ठति=पास ही रहता है।
ध्वानं हित्वा बहिरेहि त्वं
त्यज तव कुसुमं त्यज धूपम्।
पश्यंस्तिष्ठ स्वेदजलार्द्र-
स्तन्निकटे कार्यक्षेत्रे ॥
अन्वयः - त्वम् ध्यानम् हित्वा बहिः एहि, तव कुसुमम् त्यज, धूपम् त्यज। स्वेदजलार्द्रः तत् निकटे कार्यक्षेत्रे पश्यन् तिष्ठ॥
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - (हे मानव !) तू ध्यान को छोड़कर बाहर आ। तेरे अपने फूल को छोड़, जो तुमने ईश्वर की मूर्ति पर चढ़ाने के लिए हाथ में ले रखा है, धूप को छोड़। अर्थात् मूर्ति पर धूप करने व दीपक जलाने से कुछ नहीं वाला है। पसीने से तरबतर उस श्रमिक के पास में कार्य करने के स्थान पर आकर ठहरो। अर्थात् मैदान में आकर परिश्रम करो।
हे मानव !
त्वम् ध्यानम्=तू ध्यान को
हित्वा बहिः एहि,=छोड़कर बाहर आ।
तव कुसुमम् त्यज,=तेरे अपने फूल को छोड़, जो तुमने ईश्वर की मूर्ति पर चढ़ाने के लिए हाथ में ले रखा है,
धूपम् त्यज=धूप को छोड़। अर्थात् मूर्ति पर धूप करने व दीपक जलाने से कुछ नहीं वाला है।
स्वेदजलार्द्रः=पसीने से तरबतर
तत् निकटे=उस श्रमिक के पास में
कार्यक्षेत्रे= कार्य करने के स्थान पर
पश्यन्=आकर
तिष्ठ =ठहरो। अर्थात् मैदान में आकर परिश्रम करो।
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - (हे मानव !) तू ध्यान को छोड़कर बाहर आ। तेरे अपने फूल को छोड़, जो तुमने ईश्वर की मूर्ति पर चढ़ाने के लिए हाथ में ले रखा है, धूप को छोड़। अर्थात् मूर्ति पर धूप करने व दीपक जलाने से कुछ नहीं वाला है। पसीने से तरबतर उस श्रमिक के पास में कार्य करने के स्थान पर आकर ठहरो। अर्थात् मैदान में आकर परिश्रम करो।
हे मानव !
त्वम् ध्यानम्=तू ध्यान को
हित्वा बहिः एहि,=छोड़कर बाहर आ।
तव कुसुमम् त्यज,=तेरे अपने फूल को छोड़, जो तुमने ईश्वर की मूर्ति पर चढ़ाने के लिए हाथ में ले रखा है,
धूपम् त्यज=धूप को छोड़। अर्थात् मूर्ति पर धूप करने व दीपक जलाने से कुछ नहीं वाला है।
स्वेदजलार्द्रः=पसीने से तरबतर
तत् निकटे=उस श्रमिक के पास में
कार्यक्षेत्रे= कार्य करने के स्थान पर
पश्यन्=आकर
तिष्ठ =ठहरो। अर्थात् मैदान में आकर परिश्रम करो।
यदि तव वसनं धूसरितं स्यात्
यदि च सहस्त्रच्छिद्रं स्यात् ।
का वा क्षतिरिह तेन भवेत्ते
तत्त्वमिदं चिन्तय चित्ते॥
अन्वयः - यदि तव वसनम् धूसरितम् स्यात् यदि च (तत्) सहस्रच्छिद्रं स्यात्, तेन इह का वा ते क्षतिः भवेत्, चित्ते इदम् तत्त्वम् चिन्तय॥
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - (कवि कहता है कि) यदि तुम्हारे वस्त्र धूलि से सने हुए (मैले) हो जायें और यदि वे ही वस्त्र हजारों छिद्रों से युक्त हो जावें, तब भी इस संसार में तुम्हारी क्या हानि होगी अर्थात् किसी भी प्रकार की हानि नहीं है। अतः मन में इसी यथार्थ तत्त्व का चिन्तन करना चाहिए।
(कवि कहता है कि)
यदि तव=यदि तुम्हारे
वसनम्=वस्त्र
धूसरितम्=धूलि से सने हुए (मैले)
स्यात्=हो जायें
यदि च (तत्)=और यदि वे ही वस्त्र
सहस्रच्छिद्रं=हजारों छिद्रों से युक्त
स्यात्,=हो जावें,
तेन इह का वा=तब भी इस संसार में
ते क्षतिः भवेत्,=तुम्हारी क्या हानि होगी अर्थात् किसी भी प्रकार की हानि नहीं है।
चित्ते इदम्=अतः मन में इसी
तत्त्वम् चिन्तय=यथार्थ तत्त्व का चिन्तन करना चाहिए।
हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - (कवि कहता है कि) यदि तुम्हारे वस्त्र धूलि से सने हुए (मैले) हो जायें और यदि वे ही वस्त्र हजारों छिद्रों से युक्त हो जावें, तब भी इस संसार में तुम्हारी क्या हानि होगी अर्थात् किसी भी प्रकार की हानि नहीं है। अतः मन में इसी यथार्थ तत्त्व का चिन्तन करना चाहिए।
(कवि कहता है कि)
यदि तव=यदि तुम्हारे
वसनम्=वस्त्र
धूसरितम्=धूलि से सने हुए (मैले)
स्यात्=हो जायें
यदि च (तत्)=और यदि वे ही वस्त्र
सहस्रच्छिद्रं=हजारों छिद्रों से युक्त
स्यात्,=हो जावें,
तेन इह का वा=तब भी इस संसार में
ते क्षतिः भवेत्,=तुम्हारी क्या हानि होगी अर्थात् किसी भी प्रकार की हानि नहीं है।
चित्ते इदम्=अतः मन में इसी
तत्त्वम् चिन्तय=यथार्थ तत्त्व का चिन्तन करना चाहिए।
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जयतु संस्कृतम्।