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मंगलवार, 13 सितंबर 2022

सन्ततिप्रबोधनम्

 सन्ततिप्रबोधनम्

       प्रस्तुत पाठ महर्षि अरविन्द द्वारा संस्कृत में प्रणीत खण्डकाव्य 'भवानी भारती' से संकलित किया गया है। जीवन के प्रारम्भिक चरण में अरविन्द घोष महान क्रान्तिकारी तथा राष्ट्रभक्त के रूप में उभरे। वह सशस्त्र क्रान्ति के समर्थक थे। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अलीपुर बम केस का अपराधी मानकर 1906 ई. में अलीपुर कारागार में बन्दी बना दिया।
       कारावास की इसी अवधि में एक रात स्वप्न में बन्दिनी भारतमाता का दर्शन कर, भावाविष्ट मनोदशा में कवि ने इस ओजस्वी तथा राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत शतककाव्य का प्रणयन किया। इस रचना में महाकवि अरविन्द ने भारतमाता को महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के रूप में निरूपित किया है।
      जीवन के उत्तरार्ध में महर्षि अरविन्द वेदों के व्याख्याता, महायोगी, महाकवि, परमराष्ट्रभक्त एवं महादार्शनिक के रूप में विश्वमञ्च पर प्रतिष्ठित हुए।
      प्रस्तुत पाठ में भारतजननी परतन्त्रता एवं अज्ञानरूपी अन्धकार के बन्धनों में जकड़ी, अवमानना ग्रस्त अपनी सन्ततियों को उनके स्वर्णिम इतिहास का स्मरण कराते हुए, उन्हें प्रेरित करती है कि वे अपनी निद्रा का त्याग करें तथा अपने पराक्रम से राष्ट्र को पराधीनता के बन्धन से मुक्त कराएँ ।
      सान्द्रं तमिस्रावृतमार्तमन्धं विलोक्य तद्भारतमार्यखण्डम् ॥ 
      गूढा रजन्यामरिभिर्विनष्टा माता भृशं क्रन्दति भारतानाम्॥1॥
      सनातनान्याद्द्वय भारतानां कुलानि युद्धाय,जयोऽस्तु नो भीः । 
      भो जागृतास्मि क्व धनुः क्व खड्गः उत्तिष्ठतोत्तिष्ठत सुप्तसिंहाः॥2॥
      माताऽस्मि भो ! पुत्रक! भारतानां सनातनानां त्रिदशप्रियाणाम् ।
      शक्तो न यान्पुत्र विधिर्विपक्षः कालोऽपि नो नाशयितुं यमो वा॥३ 
      ते ब्रह्मचर्येण विशुद्धवीर्याः ज्ञानेन ते भीमतपोभिरार्याः । 
      सहस्रसूर्या इव भासुरास्ते समृद्धिमत्यां शुशुभुर्धरित्र्याम्॥4॥
      उत्तिष्ठ भो जागृहि सर्जयाग्नीन् साक्षाद्धि तेजोऽसि परस्य शौरेः।
       वक्षः    स्थितेनैव   सनातनेन   शत्रून्हुताशेन  दहन्नटस्व ॥5॥
       अस्त्येव लोहं निशितश्च खड्गः क्रूरा शतघ्नी नदतीह मत्ता । 
    कथं निरस्त्रोऽसि, मृतोऽसि शेषे रक्ष स्वजातिं परहा भवाऽऽर्यः ॥6॥
       भो भो अवन्त्यो मगधाश्च बङ्गा अङ्गाः कलिङ्गाः कुरुसिन्धवश्च ।
         भो दाक्षिणात्याः शृणुतान्ध्रचोलाः शृण्वन्तु ये पञ्चनदेषु शूराः ॥7॥
                ये केचिदर्चन्ति ननु त्रिमूर्तिं ये चैकमूर्तिं यवना मदीयाः । 
माताऽऽह्वये वस्तनयान्हि सर्वान् निद्रां विमुञ्चध्वमये शृणुध्वम्॥8॥
पाठ के श्लोकों का अर्थ-
सान्द्रं तमिस्रावृतमार्तमन्धं विलोक्य तद्भारतमार्यखण्डम् ॥ 
गूढा रजन्यामरिभिर्विनष्टा माता भृशं क्रन्दति भारतानाम्॥1॥
रात्रि के समय छिपी हुई, शत्रुओं से विनष्ट भारत माता गहन अन्धकार से ढके हुये, दुःखी अन्धे से हुये आर्यखण्ड 
उस भारत को देखकर अत्यधिक विलाप कर रही है। 

रजन्याम्रात्रि के समय 
गूढाछिपी हुई, 
अरिभिःशत्रुओं से 
विनष्टाविनष्ट
 भारतानांभारतीयों की 
मातामाता  
सान्द्रम्गहन  
तमिस्राअन्धकार से 
आवृतम्ढके हुये 
आर्तम्दुःखी 
अन्धम् अन्धे से हुये
आर्यखण्डम्आर्यखण्ड 
तत् भारतम्उस भारत को 
विलोक्यदेखकर 
भृशंअत्यधिक
क्रन्दतिविलाप कर रही है।

सनातनान्याद्द्वय भारतानां कुलानि युद्धाय,जयोऽस्तु नो भीः । 

भो जागृतास्मि क्व धनुः क्व खड्गः उत्तिष्ठतोत्तिष्ठत सुप्तसिंहाः॥2॥  

हे सोये हुये सिंहों ! युद्ध करने के लिए उठो, उठो। मैं जाग गई हूँ। तलवार कहाँ है? भारत के  सनातन कुलों को 
बलाओ,वे कहाँ है? भयभीत मत होओ , तुम्हारी विजय हो।

भो सुप्तसिंहाःहे सोये हुये सिंहों ! 
युद्धाययुद्ध करने के लिए  
उतिष्ठतउठो, 
उतिष्ठतउठो। मैं
 (अहं)मैं 
जागृता अस्मि,जाग गई हूँ। 
 क्व खड्गःतलवार कहाँ है?  
भारतानांभारत के 
संतनानिसनातन 
कुलानिकुलों को 
आह्वय,बुलाओ 
(ते) क्ववे कहाँ है? 
भोः  (अस्तु),भयभीत मत होओ
नो जयः अस्तुतुम्हारी विजय हो  

माताऽस्मि भो ! पुत्रक! भारतानां 

सनातनानां त्रिदशप्रियाणाम् । 

शक्तो न यान्पुत्र विधिर्विपक्ष: 

कालोऽपि नो नाशयितुं यमो वा ॥ 3 ॥

हे पुत्र! मैं सनातन, देवताओं के प्रिय भारतवासियों की माता हूँ। पुत्र ! जिन भारतीयों को शत्रु पक्ष का शासन नष्ट 

करने में समर्थ नहीं है, उन्हें काल अथवा यम भी विनष्ट करने में समर्थ नहीं है।

ते ब्रह्मचर्येण विशुद्धवीर्याः 

ज्ञानेन ते भीमतपोभिरार्याः । 

सहस्रसूर्या इव भासुरास्ते 

समृद्धिमत्यां शुशुभुर्धरित्र्याम्॥4॥

वे (भारतीय) ब्रह्मचर्य से, ज्ञान से,अत्यधिक परिश्रम से,अत्यधिक पराक्रम वाले श्रेष्ठ दीप्तिमान हजारों सूर्यों की 

भाँति समृद्धिशाली इस पृथ्वी पर सुशोभित हुये। 

उत्तिष्ठ भो जागृहि सर्जयाग्नीन् 

साक्षाद्धि तेजोऽसि परस्य शौरेः। 

वक्षः स्थितेनैव सनातनेन 

शत्रून्हुताशेन दहन्नटस्व॥5॥

हे भारतीयो ! उठो, जागो, अग्नि को पैदा करो क्योंकि तुम शत्रु संहारक कृष्ण के साक्षात् तेज हो। वक्षस्थल पर 

स्थित ही सनातन अग्नि के द्वारा शत्रुओं को जलाते हुये उन्हें नष्ट करो। उन्हें यहाँ से भगा दो।

अस्त्येव लोहं निशितश्च खड्गः 

क्रूरा शतघ्नी नदतीह मत्ता । 

कथं निरस्त्रोऽसि, मृतोऽसि शेषे 

रक्ष स्वजातिं परहा भवाऽऽर्यः ॥6॥

तुम्हारे लोहे से बने हुये अस्त्र हैं, पैनी की गई तलवार है (साथ ही) यहाँ भयंकर मतवाली तोप बोल रही है (तोप 

गरज रही है)। (तुम) कैसे शस्त्रहीन हो? मरे हुये के तुल्य हो, सो रहे हो। अपनी जाति की रक्षा करो तथा शत्रुओं 

को मारने वाले आर्य श्रेष्ठ बनो। 

भो भो अवन्त्यो मगधाश्च बङ्गा 

अङ्गाः कलिङ्गाः कुरुसिन्धवश्च ।

 भो दाक्षिणात्याः शृणुतान्ध्रचोलाः

 शृण्वन्तु ये पञ्चनदेषु शूराः ॥ 7 ॥

अरे! अरे! अवन्ति प्रदेश में रहने वालो! तथा मगधवासियो! बंगप्रदेश-वासियो! अंग प्रदेश में रहने वालो ! कलिंग 

तथा सिन्धु प्रदेशवासियो! हे दक्षिण प्रदेश में रहने वालो! आन्ध्र तथा चोल प्रदेशवासियो! तुम सब सुनो।(साथ ही) जो 

पंचनद (पंजाब) प्रदेश में रहने वाले वीर हैं, (वे भी) सुनें।

ये केचिदर्चन्ति ननु त्रिमूर्तिं. 

ये चैकमूर्तिं यवना मदीयाः । 

माताऽऽह्वये वस्तनयान्हि सर्वान् 

निद्रां विमुञ्चध्वमये शृणुध्वम्॥8॥

जो कोई त्रिदेवों(ब्रह्मा,विष्णु,महेश) की मूर्ति को पूजते हैं।निश्चय से जो मेरे यवन,एक निराकार परमेश्वर की 

अर्चना करते हैं,निश्चय ही सम्पूर्ण पुत्रों को मैं तुम्हारी भारत माता बुला रही हूँ,तुम्हारा आह्वान कर रही हूँ। तुम सब 

सुनो तथा निद्रा का त्याग करो। खड़े हो जाओ,अब सोने का समय नहीं है। 

प्रश्न: 1. 
संस्कतेन उत्तरम दीयताम -
(क) भारतानां माता कं विलोक्य भृशं क्रन्दति? 
उत्तरम् : 
भारतानां माता सान्द्रम् तमिस्रा आवृतम् आर्तम् अन्धम् आर्यखण्डम् भारतम् विलोक्य भृशं क्रन्दति। 

(ख) रजन्यां गूढा माता कैः विनष्टा? 
उत्तरम् : 
रजन्यां गूढा माता अरिभिः विनष्टा। 

(ग) के उत्तिष्ठन्तु? 
उत्तरम् : 
सुप्तसिंहाः उत्तिष्ठन्तु। 

(घ) पुत्रक! केषां भारतानां माता अस्मि? 
उत्तरम् : 
पुत्र ! सनातनानां भारतानां माता अस्मि।

(ङ) कः भारतपुत्रान् नाशयितुं शक्तः ? 
उत्तरम् : 
विपक्षः भारतपुत्रान् नाशयितुं शक्तः न। 

(च) ते (शूराः) केन विशुद्धवीर्याः आसन्? 
उत्तरम् : 
ते (शूराः) ! ब्रह्मचर्येण विशुद्ध वीर्याः आसन्। 

(छ) त्वं परस्य शौरेः किम् असि? 
उत्तरम् :  
त्वं परस्य शौरेः तेजोऽसि। 

(ज) कविना कुत्रत्याः कुत्रत्याः शूराः आहूयन्ते? 
उत्तरम् : 
कविना अवन्त्यः, मगधाः, बङ्गाः, अङ्गा, कलिङ्गाः, कुरुः, सिन्धवः दाक्षिणात्याः, आन्ध्रचोलाः पञ्जाब च शूराः आह्वयन्ते। 

(झ) मदीया यवनाः कम् अर्चयन्ति अहं,? 
उत्तरम् : 
मदीयाः यवनाः एकमूर्तिम् अर्चयन्ति। 

(ञ) सर्वान् तनयान् का आह्वयति ? 
उत्तरम् : 
सर्वान् तनयान् माता आह्वयति। 

प्रश्न: 2. 
हिन्दी भाषया आशयं लिखत -
(क) गूढा रजन्यामरिभिर्विनष्टा माता भृशं क्रन्दति भारतानाम्। 
उत्तर :
आशय-पराधीनता की रात्रि में छिपी हुई तथा शत्रुओं द्वारा पीड़ित भारतमाता अज्ञान-अन्धकार से आच्छादित एवं अन्धे भारतवर्ष को देखकर अत्यधिक विलाप कर रही है। 

(ख) भो जागृतास्मि क्व धनुः क्व खड्गः उत्तिष्ठतोतिष्ठत सुप्तसिंहाः। 
उत्तर :
आशय-भारतमाता महाकाली के रूप में सोये हुये भारतवासियों को जगाते हुये कहती है - अरे सोते हुये, मैं जाग गई हूँ। तुम्हारे पुराने हथियार धनुष व तलवार कहाँ हैं? उन्हें लेकर उठो तथा शत्रुओं को मारकर अपने देश की रक्षा करो। 

(ग) ते .......... आर्याः जाताः। 
(तपस्, तृतीया विभक्ति, बहुवचन) 
उत्तरम् : 
ते तपोभिः आर्याः जाताः।।

(घ) माता .......... पुत्रान् आह्वयति। 
(सर्व, द्वितीया विभक्ति, बहुवचन) 
उत्तरम् : 
माता सर्वान् पुत्रान् आह्वयति। 

(ङ) शूरा:............वसन्ति। 
(पञ्चनद, सप्तमी विभक्ति, बहुवचन) 
उत्तरम् : 
शूराः पञ्चनदेषु वसन्ति। 

प्रश्नः 7. 
अधोलिखितेषु यथास्थानं सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरुत् - 
(क) सनातनानि + आह्वय = .....................
(ख) जयोऽस्तु = ............... + ..................
(ग) भासुराः + ते = .....................
(घ) शुशुभुर्धरित्र्याम् = ................... + ..................
(ङ) जागृतास्मि = .................... + .......................
(च) स्थितेन + एव = .................
(छ) अस्ति + एव = ...................
उत्तरम् : 
(क) सनातनान्याह्वय। 
(ख) जयः + अस्तु।
(ग) भासुरास्ते। 
(घ) शुशुभुः + धरित्र्याम्। 
(ङ) जागृता + अस्मि। 
(च) स्थितेनैव। 
(छ) अस्त्ये व। 

प्रश्नः 8. 
अधोलिखितस्य श्लोकस्य अन्वयं कुरुत - 
सनातनान्याह्वय ................ सुप्तसिंहाः। 
उत्तरम् : 
श्लोक संख्या 2 का अन्वय देखें। 

प्रश्नः 9. 
अधोलिखितेषु अलङ्कारं निर्दिशत - 
(क) सहस्रसूर्या इव भासुरास्ते 
समृद्धिमत्यां शुशुभुर्धरित्र्याम्। 
(ख) भो भो अवन्त्यो मगधाश्च बङ्गाः 
अङ्गाः कलिङ्गाः कुरुसिन्धवश्य ॥ 
उत्तरम् : 
(क) उपमा अलंकारः। 
(ख) अनुप्रासः अलंकारः।

प्रश्न 10. 
अधोलिखिते श्लोके प्रयुक्तस्य छन्दसः नाम लिखत ते ब्रह्मचर्येण विशद्धवीर्याः ज्ञानेन ते भीम तपोभिरार्याः। सहस्रसूर्या इव भासुरास्ते समृद्धिमत्यां शुशुभुर्धरित्र्याम् ॥ 
उत्तरम् : 
अस्मिन् श्लोके उपजाति छन्दः अस्ति।

संस्कृतभाषया उत्तरम् दीयताम् - 
 
प्रश्न: 1. 
'सन्ततिप्रबोधनम्' पाठः कुत्रतः संकलितः? 
उत्तरम् : 
'सन्ततिप्रबोधनम्' पाठः भवानी भारती' खण्डकाव्यात् संकलितः।

प्रश्न: 2. 
'भवानी भारती' खण्डकाव्यस्य कः रचयिता? 
उत्तरम :
'भवानी भारती' खण्डकाव्यस्य रचयिता महर्षि अरविन्दः अस्ति।

प्रश्न: 3. 
जीवनस्य प्रारंभिकचरणे अरविन्दघोषः कीदृशः आसीत्? 
उत्तरम् : 
जीवनस्य प्रारंभिकचरणे अरविन्दघोषः महान् क्रान्तिकारी राष्ट्रभक्तश्च आसीत्। 

प्रश्न: 4. 
का भ्रशं क्रन्दति? 
उत्तरम् : 
भारतानां माता भ्रशं क्रन्दति।

प्रश्न: 5.
ते किमिव भासुराः?
उत्तरम् : 
ते सहस्रसूर्या इव भासुराः। 

प्रश्नः 6. 
त्रिमूर्ति के अर्चयन्ति? 
उत्तरम् : 
त्रिमूर्तिं हिन्दवः अर्चयन्ति। 

प्रश्नः 7. 
भारतमाता कान् आह्वयति? 
उत्तरम् : 
भारतमाता सर्वान् तनयान् आह्वयति। 

प्रश्नः 8. 
अस्मिन् पाठे सुप्तसिंहाः के उक्ता:? 
उत्तरम् : 
अस्मिन् पाठे भारतीयाः सुप्तसिंहाः उक्ताः। 

प्रश्नः 9. 
ब्रह्मचर्येण विशुद्धवीर्याः के सन्ति? 
उत्तरम :
ब्रह्मचर्येण विशुद्धवीर्याः भारतीयाः सन्ति। 

प्रश्न: 10.
क्रूरा शतघ्नी कुत्र नदति? 
उत्तरम् : 
क्रूरा शतघ्नी इह (भारतवर्षे) नदति। 

प्रश्न: 11. 
वक्षः स्थितेन सनातनेन हुताशेन कान् दहन् नटस्व?
उत्तरम् : 
वक्षः स्थितेन सनातनेन हुताशेन शत्रून् दहन् नटस्व।

प्रश्न: 12. 
सान्द्र, तमिस्रावृत्तम्, आर्तम्, अन्धं - एतानि विशेषणानि कस्य सन्ति? 
उत्तरम् : 
सान्द्रं, तमिस्रावृत्तम्, आर्तम्, अन्यं - एतानिविशेषणानि भारतमार्य खण्डस्य सन्ति।

श्लोकों का अन्वय, सप्रसङ्ग हिन्दी-अनुवाद/व्याख्या एवं सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या - 

1. सान्द्रं तमिस्त्रावृतः ............................................. भारतानाम्॥1॥ 

अन्वयः - रजन्याम् गूढा अरिभिः विनष्टा भारतानाम् माता सान्द्रम् तमित्रा आवृतम् आर्तम् अन्धम् आर्यखण्डम् तत् भारतम विलोक्य भशं क्रन्दति ॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • रजन्याम् = रात्रि में। 
  • गूढा = डूबी हुयी। 
  • अरिभिः = शत्रुओं से।
  • सान्द्रम् = सघन। 
  • तमिस्रा = अन्धकार से, 
  • आवृतम् = ढका हुआ। 
  • आर्तम् = दुःखी, पीड़ित। 
  • विलोक्य = देखकर। 
  • भृशं = बहुत अधिक। 
  • क्रन्दति = रोती है, विलाप करती है। 

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - रात्रि के समय छिपी हुई, शत्रुओं से विनष्ट भारत माता गहन अन्धकार से ढके हुये, दुःखी अन्धे से हुये आर्यखण्ड उस भारत को देखकर अत्यधिक विलाप कर रही है। 

विशेष - यहाँ भारत देश की परतन्त्रता काल का दुर्दशा का यथार्थ चित्रण किया गया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या - 

प्रसङ्गः - अयं पद्यांश: अस्माकं पाठ्यपुस्तक 'शाश्वती' प्रथम भागस्य 'सन्तति प्रबोधनम्' पाठात् अवतरितः। मूलतः अयं पाठः महर्षि अरविन्द प्रणीत 'भवानीभारती' खण्डकाव्यात् संकलितः। अस्मिन् पद्ये भारतजनन्याः वर्णनं कृतम् 

संस्कृत-व्याख्या - सान्द्रं = अन्द्रेण, सह = सघनमित्यर्थः, तमिस्त्रावृतम् = तिमिरावृतम् आर्तम् = पीडितं, अन्धं = अन्धकारयुक्तं, तत् भारतमार्यखण्डम् = भारत नाम्नः आर्यखण्डम्, विलोक्य = दृष्ट्वा, गूढा = निक्षिप्ता, रजन्याम् = रात्रौ, अरिभिः = शत्रुभिः, विनष्टा = विनाशं प्राप्ता, भारतनाम् = भारतीयानाम्, माता = भारत-माता इत्यर्थः भ्रशं = अत्यधिकं, क्रन्दति = विलपति, क्रन्दनं करोति।

विशेषः - 

  1. भारतमाता स्वदेशवासिनां दयनीयां स्थितिं दृष्ट्वा भ्रशं क्रन्दति-इत्यत्र प्रतिपादितम्। 
  2. अस्मिन् पद्ये उपजातिवृत्तं वर्तते। 
  3. व्याकरण-विलोक्य-वि + लोक् + ल्यप्। विनष्टा-वि + नश् + क्त + टाप्। गूढा-गुह् + क्त + टाप्। अरिभिर्विनष्टा-अरिभिः + विनष्टा (विसर्ग सन्धि)। तमिस्रावृत्तम्-तमिनेण- आवृतम् (तृतीया तत्पु.)। सान्द्रम्-सह अन्द्रेण। 

2. सनातनान्याहवय .................................................. सुप्तसिंहाः॥2॥ 

अन्वयः - भो सुप्तसिंहाः! युद्धाय उत्तिष्ठत उत्तिष्ठत। (अहं) जागृता अस्मि, धनुः क्व, खङ्गः क्व, भारतानां सनातनानि कुलानि आह्वय, भी: नो (अस्तु), जयः अस्तु॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • सुप्तसिंहा = सोये हुये शेरों। 
  • उत्तिष्ठत = उठो। 
  • जागृता अस्मि = (मैं) जाग गई हूँ। 
  • खङ्गः = तलवार। 
  • सनातनानि = पुरातन, पुराने। 
  • आह्वय = बुलाओ।
  • भीः = भय, डर।

प्रसंग - यह श्लोक 'सन्तति प्रबोधनम्' शीर्षक पाठ से लिया गया है। यहाँ भारत माता को महाकाली के रूप में चित्रित किया गया है। उसके माध्यम से सोये हुये भारतीयों को जागृत करने की प्रेरणा दी गई है - 

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - अरे सोये हुये शेरो! युद्ध करने के लिए उठो, उठो। मैं जाग गई हूँ। धनुष कहाँ है? तलवार के सनातन कलों को बलाओ, उनका आहवान करो। भयभीत मत हो (डरो मत), तुम्हारी विजय हो। विशेष - यहाँ शत्रुओं से भयभीत न होकर पराक्रमपूर्वक उनका मुकाबला करने हेतु भारत के लोगों का आह्वान किया गया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या - 

प्रसङ्ग - अयं पद्यः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'सन्तति प्रबोधनम्' इति पाठात् उद्धृतः। मूलतः अयं पाठः महर्षि अरविन्द विरचितात् 'भवानी भारती' इति खण्डकाव्यात् संकलितः। अस्मिन् पद्ये भारतमाता स्वकीयान् वीर पुत्रान् युद्धाय आह्वानं करोति सनातनकुलानि च आमन्त्रयति 

संस्कृत-व्याख्या - भो सुप्तसिंहाः = रे शयिताः केसरिणः। युद्धाय = समराय, उतिष्ठत उतिष्ठत् = उत्थानं कुरुत, उत्थानं कुरुत, (अहं = भारत माता) जागृता = त्यक्तनिन्द्रा अस्मि, धनु : वच = तव शरासनः कुत्र वर्तते? खङ्गः क्व = असि कुत्रास्ति? भारतानां = भारतीयानां, सनातनानि = पुरातनानि, कुलानि = वंशानि, आहवय = आकारथ, आमन्त्रय। भी: = भयः, नो = न, अस्तु = भवतु। जयः = विजयः, अस्तु = भवतु। 

विशेषः - 

  1. अस्मिन् पद्ये उपजातिवृत्तः। 
  2. व्याकरणम्-सुप्तसिंहाः-सुप्तः च असौ सिंहः सुप्तसिंहः ते सुप्तसिंहाः (कर्मधारय)। जागृतास्मि-जागृता + अस्मि (दीर्घ सन्धि)। सनातना न्याह्वय-सनातनानि + आह्वय (यण् सन्धि)। जयोऽस्तु-जयः अस्तु (पूर्वरूप)। 

3. माताऽस्मि भो! ..................................................नाशयितुं यमो वा॥3॥ 

अन्वयः - भोः पुत्रक! (अहं) सनातनानां त्रिदशप्रियाणाम् भारतानाम् माता अस्मि, पुत्र! यान् विपक्षः विधिः नाशयितुं न शक्तः, कालः यमः वा अपि नो (नाशयितुं शक्तः)॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • त्रिदशप्रियाणाम् = देवताओं के प्रियों का। 
  • विधिः = शासन। 
  • नाशयितुम् = नष्ट करने के लिए। 
  • शक्तः = समर्थ। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक 'सन्तति प्रबोधनम्' शीर्षक पाठ से अवतरित है। इस श्लोक में महाकाली के रूप में भारत माता कहती है कि भारतीयों को कोई भी नहीं मार सकता है 

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - हे पुत्र! मैं सनातन, देवताओं के प्रिय भारतवासियों की माता हूँ। पुत्र ! जिन भारतीयों को शत्रु पक्ष का शासन नष्ट करने में समर्थ नहीं है, उन्हें काल अथवा यम भी विनष्ट करने में समर्थ नहीं है। 

विशेष - यहाँ भारतीयों को देवताओं का प्रिय बतलाते हुए उनके बल एवं पराक्रम को प्रकट किया गया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -

प्रसङ्गः - अयं पद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तक 'शाश्वती' प्रथम भागस्य 'सन्तति प्रबोधनम्' पाठात् अवतरितः। मूलतः अयं पाठः महर्षि अरविन्द प्रणीत 'भवानी भारती' खण्डकाव्यात् संकलितः। अस्मिन् श्लोके महाकाली रूपे भारतमाता कथयति यत् भारतीयान् कोऽपि हन्तुं न शक्नोति - 

संस्कृत-व्याख्या - भो पुत्रक! = हे पुत्र ! (अहं) सनातनानाम् = शाश्वतानाम् सनातन धर्मानुयायिनाम् वा, त्रिदशप्रियाणाम् = देव-प्रियाणाम्, भारतानाम् = भारतीयानाम्, माताऽस्मि = जननी अस्मि। पुत्र! = हे तात! यान् = भारतीयान्, विपक्षः विधिः = शत्रो: शासनम्, नाशयितुं = विनाशयितुं न शक्तः = न समर्थः (तान् भारतीयान्) कालः = यमः, भयः = भीतिः, अपि नाशयितुं समर्थो नास्ति। 

विशेषः - 

  1. भारतमातुः कथनमस्ति यत् तस्याः पुत्राः अजेयाः सन्ति। तान् कोऽपि नाशयितु समर्थो नास्ति। 
  2. अत्र उपजाति छन्दः वर्तते। 

4. ते ब्रह्मचर्येण ........................................................ शुशुभुर्धरित्र्याम्॥4॥ 

अन्वयः - ते ब्रह्मचर्येण, ते ज्ञानेन भीमतपोभिः विशुद्धवीर्या : आर्या : ते भासुराः सहस्रसूर्याः इव समृद्धिमत्यां धरित्र्याम् शुशुभुः॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • भीमतपोभिः = अत्यधिक परिश्रमों से। 
  • विशुद्धवीर्याः = अत्यधिक पराक्रम वाले। 
  • भासुराः = दीप्तिमान। 
  • सहस्त्रसर्याः = हजारों सर्यों की तरह। 
  • धरित्र्याम = पृथ्वी पर। 
  • शशभः = सुशं भित हये। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक 'सन्तति प्रबोधनम्' शीर्षक पाठ से अवतरित है। मूलतः यह पाठ महर्षि अरविन्द कृत 'भवानी भारती' खण्डकाव्य से संकलित किया गया है। इस श्लोक में आर्यों की दीप्तिमत्ता का चित्रण किया गया है 

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - वे (भारतीय) ब्रह्मचर्य से, ज्ञान से, अत्यधिक परिश्रम से, अत्यधिक पराक्रम वाले श्रेष्ठ दीप्तिमान हजारों सूर्यों की भाँति समृद्धिशाली इस पृथ्वी पर सुशोभित हुये। 

विशेष - यहाँ भारतीय लोगों के वैशिष्ट्य को दर्शाया गया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या - 

प्रसङ्गः - अयं श्लोकः 'सन्ततिप्रबोधनम्' शीर्षक पाठात् अवतरितः। मूलतः अयं पाठः महर्षि अरविन्द विरचित 'भवानी भारती' खण्डकाव्यात् संकलितः। अस्मिन् श्लोके आर्याणाम् दीप्तिमत्तायाः चित्रणं कृतम् 

संस्कृत-व्याख्या - ते = भारतीयाः, ब्रह्मचर्येण = ब्रह्मचर्यव्रतेन, ज्ञानेन = स्वकीय ज्ञानेन, भीमतपोभिः = अतिपरिश्रमेण, विशुद्धवीर्याः = परिष्कृत पराक्रमाः, आर्याः = श्रेष्ठाः ते, भासुराः = भासमानाः = सहस्रसूर्या इव = सहस्रभानवः यथा, समृद्धिमत्यां = समृद्धिशालिन्यां, धरित्र्याम् = पृथिव्याम्, शुशुभुः = शोभायमानाः जाताः। 

विशेषः - 

  1. सहस्त्रसूर्या इव-अत्रोपमाऽलंकारः।
  2. छन्द उपजातिः।  
  3. व्याकरणम् -विशुद्धवीर्या :-विशुद्धं वीर्यं येषां ते (ब. व्री.)। भीमतपोभिः-भीमैः तपोभिः (तृतीया तत्पु.)। समृद्धिः- सम् + ऋध् + क्तिन्। भासुराः-भास् + घुरच् प्रत्यय। समृद्धिमत्याम-समृद्धि + मतुप् + ङीप् सप्तमी ए. व.। शुशुभुः-शुभ् लिट लकार प्र. पु. बहुवचन।। 

5. उत्तिष्ठ भो ............................................... दहन्नटस्व॥5॥

अन्वयः - भोः ! उत्तिष्ठ, जागर्हि, अग्नीन् सर्जय, हि (त्वं) परस्य शौरेः साक्षात् तेजः असि, वक्षः स्थितेन एव सनातनेन हुताशेन शत्रून् दहन नटस्व।। 


कठिन-शब्दार्थ : जागर्हि = जागो। सर्जय = उत्पन्न करो। शौरेः = कृष्ण के। हुताशेन = अग्नि के द्वारा। नटस्व = नष्ट करो, भगा दो। 

प्रसंग - यह श्लोक 'शाश्वती' प्रथम भाग के सप्तम पाठ 'सन्तति प्रबोधनम्' शीर्षक पाठ से लिया गया है। भारतमाता को महाकाली के रूप में कवि ने चित्रित किया है तथा भारतवासियों को प्रेरित किया है कि वे उठे, जागें 

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - हे भारतीयो ! उठो, जागो, अग्नि को पैदा करो क्योंकि तुम शत्रु संहारक कृष्ण के साक्षात् तेज हो। वक्षस्थल पर स्थित ही सनातन अग्नि के द्वारा शत्रुओं को जलाते हुये उन्हें नष्ट करो। उन्हें यहाँ से भगा दो।

विशेष - यहाँ भारतीय लोगों को शत्रु-संहारक श्रीकृष्ण के समान तेजस्वी बतलाते हुए उन्हें अपने तेज द्वारा शत्रुओं को नष्ट करने हेतु प्रेरित किया गया है।

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या - 

प्रसङ्गः - अयं श्लोकः अस्माकं पाठ्यपुस्तक 'शाश्वती' प्रथमभागस्य 'सन्तति प्रबोधनम्' शीर्षक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। अस्मिन् श्लोकं भारतमातरम् महाकालीरूपे कविता चित्रितम् भारतीयान् च प्रेरितं यत् ते उत्तिष्ठन्तु 

संस्कृत-व्याख्या - भोः = हे भारतीयाः! उत्तिष्ठ, जागर्हि अग्निम = अनलं, सर्जय = उत्पन्नं करु। हि = यतो हि (त्वं) परस्य = शत्रोः संहारकः शौरेः = कृष्णस्य, साक्षात् तेजः असि = पराक्रमोऽसि। वक्षः स्थितेन = वक्षःस्थल विद्यमानेन एव, सनातनेन हुताशेन = अग्निना, शत्रून् = रिपून्, दहन् = ज्वलयन्, नटस्व = विनष्टं कुरु। तान् अत्रतः पलायनं करोतु। 

विशेषः - 

  1. अस्मिन् पद्ये कविना भारतीयाः कृष्णस्य तेजः निगदितम्। 
  2. अस्मिन् पद्ये उपजाति वृत्तं वर्तते। 
  3. व्याकरणम् - शौरे: - शूर + इञ्। कृष्णस्य शौरि (ष. ए. व.)। सर्जय-सृज् धातु लोट् लकार म. पु. एकवचन। हुताशेन-हुतं अश्नाति, यः सः तेन। दहन्-दह् + शतृ। साक्षाद्धि-साक्षात् + हि (हल् सन्धि)। तेजोऽसि-तेजः + असि (पूर्व रूप)। 

6. अस्त्येव लोहं ......................................................... परहा भवार्यः॥6॥ 

अन्वयः - लोहं निशितः च खङ्ग अस्ति एव, इह क्रूरा मत्ता शतघ्नी नदति। (त्वं) कथं निरस्त्रः असि? शेषे मृतः असि, स्वजातिम् रक्ष, परहा आर्यः भव॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • निशितः = पैना किया हुआ। 
  • क्रूरा = भयंकर।
  • मत्ता = मदमस्त। 
  • शतघ्नी = तोप, बन्दूक। 
  • नदति = बोलती है।
  • निरस्त्रः = अस्त्रों से रहित। 
  • परहा = शत्रुओं को मारने वाला। 
  • रक्ष = रक्षा करो। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक 'सन्तति प्रबोधनम्' शीर्षक पाठ से अवतरित है। प्रस्तुत श्लोक में कवि का कथन है कि तुम्हारे पास अस्त्र हैं, अतः शत्रुघाती श्रेष्ठ आर्य बनकर अपनी जाति की रक्षा करो 

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - तुम्हारे लोहे से बने हुये अस्त्र हैं, पैनी की गई तलवार है (साथ ही) यहाँ भयंकर मतवाली तोप बोल रही है (तोप गरज रही है)। (तुम) कैसे शस्त्रहीन हो? मरे हुये के तुल्य हो, सो रहे हो। अपनी जाति की रक्षा करो तथा शत्रुओं को मारने वाले आर्य श्रेष्ठ बनो। 

विशेष - यहाँ परतन्त्रता काल में असहाय भारतीय लोगों के भीतर छिपे हुए पराक्रम का स्मरण कराते हुए उन्हें शत्रुओं का संहार करने की प्रेरणा दी गई है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या - 

प्रसङ्ग: - अयं श्लोकः अस्माकं पाठ्यपुस्तक 'शाश्वती' प्रथमभागस्य 'सन्तति प्रबोधनम्' शीर्षक पाठात् उद्धृतोऽस्ति। अस्मिन् श्लोके कवेः कथनमस्ति यत् हे भारतीयाः। तव समीपे अस्त्राणि सन्ति, अतः शत्रुघाती श्रेष्ठ आर्यो भूत्वा स्व जातिं रक्ष 

संस्कृत-व्याख्या - तव समीपे लोहं निशितः = आयस निर्मितं उद्दीप्तः, खड्ग अस्ति = कवालः वर्तते, इह = अत्र च क्रूरा = निष्ठुरा, मत्ताः = प्रमत्ताः, शत्रघ्नी = तोपनामाख्यं अस्त्रम्, नदति = गर्जति। (त्वं) कथं = कस्मात् कारणात् निरस्रः = शस्त्र विहीनः असि? शेषे मृतः असि = मृततुल्योऽसि। स्वजातिम् = स्वबन्धुबान्धवान्, रक्ष = तेषां रक्षां कुरु। परहा = परान् हन्ति इति परहा, शत्रुसंहारकः = आर्यः भव = श्रेष्ठ आर्यो भव।। 

विशेषः - 

  1. अस्मिन् पद्ये उपजाति वृत्तं वर्तते। 
  2. व्याकरणम्-अस्त्येव-अस्ति + एव (यण् सन्धि)। शतघ्नी-शतं हन्ति या सा (बहुव्रीहि)। नदतीह-नदति + इह (दीर्घ सन्धि)। मत्ता-मद् + क्त + टाप्। परहा-परान् हन्ति यः सः (बहुव्रीहि)। जातिम्-जन् + क्तिन्। 

7. भो भो अवन्त्यो ............................................. पञ्चनदेषु शूराः॥7॥ 

अन्वयः - भोः! भोः! अवन्त्यः, मगधाः च, बङ्गाः, अङ्गाः, कलिङ्गाः सिन्धवः च, भोः दाक्षिणात्याः। आन्ध्रचोलाः! शृणुत, ये पञ्चनदेषु शूराः (सन्ति) (ते अपि) शृण्वन्तु ॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • अवन्त्यः = अवन्ति प्रदेशवासियो। 
  • मगधाः = मगध में रहने वाले। 
  • सिन्धवः = सिन्धु प्रदेशवासियो। 
  • पञ्चनदेषु = पञ्जाब में रहने वालो। 
  • शूराः = वीर। 
  • शृण्वन्तु = सुनें। 
  • आन्ध्रचोलाः = आन्ध्र प्रदेश तथा चोल प्रदेश में रहने वालो। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक 'सन्तति प्रबोधनम्' शीर्षक पाठ से अवतरित है। प्रस्तुत पद्य में कवि ने समस्त देशवासियों को सम्बोधित करते हुये कहा है -

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - अरे! अरे! अवन्ति प्रदेश में रहने वालो! तथा मगधवासियो! बंगप्रदेश-वासियो! अंग प्रदेश में रहने वालो ! कलिंग तथा सिन्धु प्रदेशवासियो! हे दक्षिण प्रदेश में रहने वालो! आन्ध्र तथा चोल प्रदेशवासियो! तुम सब सुनो। (साथ ही) जो पंचनद (पंजाब) प्रदेश में रहने वाले वीर हैं, (वे भी) सुनें। 

विशेष - यहाँ भारतदेश के विभिन्न प्रदेशों का नामोल्लेख करते हुए सभी को एकतापूर्वक स्वतन्त्रता संग्राम हेतु प्रेरित किया गया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -

प्रसङ्ग - पद्योऽयं अस्माकं पाठ्यपुस्तक 'सन्तति-प्रबोधनम्' इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं महर्षि अरविन्दस्य भवानी भारती' इति खण्डकाव्यात् संकलितोऽस्ति। अस्मिन् पद्ये भारतमाता देशस्य सर्वेभ्यः प्रदेशवासिभ्यः सन्देशं ददाति 

संस्कृत-व्याख्या - भोः ! भोः ! = रे! रे! अवन्त्यः = मालवदेश वासिनः, मगधाः = मगधदेशवासिनः, बङ्गाः = बंगदेशवासिनः, अङ्गाः = अंगदेशवासिनः, कलिङ्गाः = कलिंगदेशवासिनः, सिन्धवः च = सिन्धदेशवासिनः, भोः दाक्षिणात्याः = रे दक्षिण देशवासिनः, आन्ध्राः = आन्ध्रदेशवासिनः, चोला: = तंजोरदेशवासिनः, शृणुत = आकर्णयत। ये पञ्चनदेशु = ये पञ्चाम्बु प्रदेशे, शूराः = वीराः वर्तन्ते, (तेऽपि) शृण्वन्तु = आकर्णयन्तु।। 

विशेष - 

  1. अस्मिन् पद्ये इन्द्रवज्रा छन्दः। 
  2. पद्येऽस्मिन् 'ग' वर्णस्यावृत्तिः, अत: अनुप्रासोऽलंकारः। . 
  3. व्याकरणम्-पञ्चनदः-पञ्चानां नदीनां समाहारः (द्विगु)। शृणुतान्ध्रचोला:-शृणुत + आन्ध्रचोलाः (दीर्घ सन्धि )। 

8. ये केचिदर्चन्ति .................................................... णुध्वम्॥8॥ 

अन्वयः - ये केचित् त्रिमूर्तिम् अर्चन्ति, ननु ये मदीयाः यवनाः च एकमूर्तिम् (अर्चन्ति) हि व: माता सर्वान् तनयान् आह्वये। अये शृणुध्वम्। निद्राम् विमुञ्चध्वम्॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • त्रिमूर्तिम् = त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की मूर्ति को। 
  • अर्चन्ति = पूजते हैं। 
  • मदीयाः = मेरे। 
  • एक मूर्तिम् = एक निराकार परमेश्वर को। 
  • वः = तुम्हारे।
  • तनयान् = पुत्रों को, 
  • आह्वये = पुकारती हूँ, आह्वान करती हूँ। 
  • शृणुध्वम् = सुनो। 
  • विमुञ्चध्वम् = छोड़ो।

प्रसंग - यह 'सन्तति प्रबोधनम्' शीर्षक पाठ का अन्तिम श्लोक है। इसमें भारत माता सभी उन भारतवासियों को बुलाकर कह रही है, जो परमेश्वर के किसी भी रूप के उपासक हैं -

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या - जो कोई त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की मूर्ति को पूजते हैं। निश्चय से जो मेरे यवन, एक निराकार परमेश्वर की अर्चना करते हैं, निश्चय ही सम्पूर्ण पुत्रों को मैं तुम्हारी भारत माता बुला रही हूँ, तुम्हारा आह्वान कर रही हूँ। तुम सब सुनो तथा निद्रा का त्याग करो। खड़े हो जाओ, अब सोने का समय नहीं है। 

विशेष - यहाँ भारतमाता के माध्यम से कवि ने सभी भारतीयों का स्वतन्त्रता हेतु आह्वान करके एकता की भावना को प्रकट किया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -

प्रसङ्गः - अयं 'सन्तति प्रबोधनम्' शीर्षक पाठस्य अन्तिमः श्लोकः वर्तते। अस्मिन् श्लोके भारतमाता तान् सर्वान् भारतीयान् आह्वये, ये परमेश्वरस्य कस्यचिदपि रूपस्य उपासकाः सन्ति - 

संस्कृत-व्याख्या - ये केचित् = ये केचित् भारतीयाः, त्रिमूर्तिम् = त्रिदेवम्, अर्चन्ति = पूजयन्ति। ननु = निश्चयेन, ये = भारतीयाः मदीयाः = मम, यवनाः = मुस्लिमबन्धवः सन्ति, ते एक मूर्तिम् = निराकार परमेश्वरं, अर्चन्ति = पूजयन्ति। कम्, माता = भारतमाता, सर्वान् = अखिलान्, तनयान् = पुत्रान्, आह्वये = आकारयामि, अये शृणुध्वम् = मम वचनं शृणु। निद्रां विमुञ्चध्वम् = त्यज। उत्तिष्ठत, अयं शयन समयो नास्ति। 

विशेषः -

(i) अस्मिन् पद्ये इन्द्रवज्रा छन्दः। 
(ii) व्याकरणम्-त्रिमूर्तिम्-तिसृणाम् मूर्तीनाम् समाहारः (द्विगु)। एकमूर्तिः-एक चासौ मूर्तिः (कर्मधारय)। वस्तनयान्-वः + तनयान् (विसर्ग सन्धि)। चैक-च एक (वृद्धि सन्धि)। 

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जयतु संस्कृतम्।