क्षात्रधर्मरता धन्या विदुरा दीर्घदर्शिनी ।
विश्रुता राजसंसत्सु श्रुतवाक्या बहुश्रुता ॥ 1 ॥
अन्वयः - क्षात्रधर्मरता, दीर्घदर्शिनी, राज संसत्सु विश्रुता श्रुतवाक्या, बहुश्रुता विदुरा धन्या॥ शब्दार्थ/हिन्दी अनुवाद-
हिन्दी अर्थ- क्षात्र धर्म का पालन करने वाली, भविष्य के संदर्भ में चिन्तन-मनन करने वाली, राज्य सभाओं में प्रसिद्ध, न्याय पारंगत अथवा निपुण विदुषी विदुरा धन्य है।
कुन्ती उवाच-कुन्ती ने कहा-
क्षात्रधर्मरता=क्षात्र धर्म का पालन करने वाली,
दीर्घदर्शिनी=भविष्य के संदर्भ में चिन्तन-मनन करने वाली,
राज संसत्सु=राज्य सभाओं में
विश्रुता=प्रसिद्ध,
श्रुतवाक्या=न्याय पारंगत अथवा निपुण
बहुश्रुता=विदुषी
विदुरा=विदुरा धन्य है
धन्या=धन्य है
विदुरा नाम वै सत्या जगर्हे पुत्रमौरसम्।
निर्जितं सिन्धुराजेन शयानं दीनचेतसम् ।
अनन्दनमधर्मज्ञं द्विषतां हर्षवर्धनम् ॥ 2 ॥ अन्वयः - विदुरा नाम सत्या सिन्धुराजेन निर्जितम् शयानम् दीनचेतसम् अनन्दनम् अधर्मज्ञम् द्विषतां हर्षवर्धनम् औरसं पुत्रं जगर्हे।। हिन्दी अर्थ- निश्चय ही विदुरा नाम वाली, सत्य भाषण करने वाली माता ने सिन्धुराज से पराजित, सोते हुये, उदास मन वाले, दूसरों को अप्रसन्न करने वाले, धर्म को न जानने वाले, शत्रुओं को प्रसन्न करने वाले अपने पुत्र की निन्दा की। शब्दार्थ/हिन्दी अनुवाद-
(निश्चय ही)
विदुरा नाम=विदुरा नाम वाली,
सत्या= सत्य भाषण करने वाली माता ने
सिन्धुराजेन=सिन्धुराज से
निर्जितम्=पराजित,
शयानम्=सोते हुये,
दीनचेतसम्=उदास मन वाले,
अनन्दनम्=दूसरों को अप्रसन्न करने वाले,
अधर्मज्ञम्=धर्म को न जानने वाले,
द्विषतां=शत्रुओं को
हर्षवर्धनम्=प्रसन्न करने वाले
औरसं पुत्रं=अपने पुत्र की निन्दा की
जगर्हे=निन्दा की ।
उत्तिष्ठ हे कापुरुष मा शेष्वैवं पराजितः ।
अमित्रान्नन्दयन्सर्वान् निर्मानो बन्धुशोकदः || 3 ||
हिन्दी अर्थ- हे कायर पुरुष! (अपने) सम्पूर्ण शत्रुओं को हर्षित करते हुये, सम्मान रहित, बन्धु बान्धवों को शोक प्रदान करने वाले, पराजित (तुम) इस प्रकार मत सोओ, उठो।
अन्वयः - हे कापुरुष ! सर्वान् अमित्रान् नन्दयन् निर्मानः बन्धु शोकदः एवं पराजितः, मा शेष्व, उत्तिष्ठ।
शब्दार्थ/हिन्दी अनुवाद-
हे कापुरुष !=हे कायर पुरुष!
सर्वान्=(अपने) सम्पूर्ण
अमित्रान्=शत्रुओं को
नन्दयन्=हर्षित करते हुये,
निर्मानः= सम्मान रहित,
बन्धु शोकदः= बन्धु बान्धवों को शोक प्रदान करने वाले,
एवं पराजितः=पराजित (तुम) इस प्रकार
मा शेष्व=मत सोओ,
उत्तिष्ठ=उठो।
धर्मं पुत्राग्रतः कृत्वा किं निमित्तं हि जीवसि ॥4 ॥
हिन्दी अर्थ- हे पुत्र! धर्म को आगे करके या तो वीरता को प्रकट करो अथवा उस अटल या निश्चित गति को प्राप्त करो। निश्चय ही तुम किस कारण जी रहे हो? अर्थात् इस प्रकार का जीवन जीना व्यर्थ है।
अन्वयः - पुत्र! धर्मम् अग्रतः कृत्वा वीर्यं वा उद्भावयस्व, तां ध्रुवाम् वा गतिं गच्छ। हि किं निमित्तम् जीवसि ॥
पुत्र!= हे पुत्र!
धर्मम्=धर्म को
अग्रतः=आगे
कृत्वा=करके
वीर्यं वा=या तो वीरता को
उद्भावयस्व=प्रकट करो अथवा
तां ध्रुवाम् वा= उस अटल या निश्चित
गतिं= गति को
गच्छ=प्राप्त करो।
हि किं=(निश्चय) ही (तुम) किस
निमित्तम्= कारण
जीवसि=जी रहे हो? अर्थात् इस प्रकार का जीवन जीना व्यर्थ है।
कुरु सत्त्वं मानं च विद्धि पौरुषमात्मनः ।
उद्भावय कुलं मग्नं त्वत्कृते स्वयमेव हि ॥5॥
हिन्दी अर्थ- हे पुत्र! तुम स्वयं ही अपने पराक्रम एवं वीरता को व्यक्त करो, अपना सम्मान प्रकट करो एवं अपने पौरुष को जानो क्योंकि तुम्हारे ही कारण यह वंश अथवा कुल डूब रहा है। अतः तुम अपने पुरुषार्थ को प्रकट करो। अपने कुल की मर्यादा को समझो।
शब्दार्थ/हिन्दी अनुवाद-
अन्वयः - स्वयम् एव सत्त्वम् मानम् च कुरु, आत्मनः पौरुषम् विद्धि, हि तत्कृते मग्नम् कुलम् उद्भावय ।।
स्वयम् एव=(हे पुत्र! तुम) स्वयं ही
सत्त्वम्=(अपने) पराक्रम एवं वीरता को
मानम् च कुरु= तथा अपने सम्मान को प्रकट करो
आत्मनः=अपने
पौरुषम्=पौरुष को
विद्धि=जानो
हि तत्कृते=क्योंकि तुम्हारे कारण
कुलम्= यह वंश अथवा कुल को
मग्नम्=डूब गया है
उद्भावय=अतः इसे उठाओ ।
यस्य वृत्तं न जल्पन्ति मानवा महदद्भुतम् ।
राशिवर्धनमात्रं स नैव स्त्री न पुनः पुमान् ॥6॥
हिन्दी अर्थ- मनुष्य जिसके अत्यन्त विचित्र, मात्र संख्या बढ़ाने वाले वृत्तान्त को नहीं कहते हैं, वह न तो स्त्री है और न फिर पुरुष ही है। भाव यह है कि जिस पुरुष के वृत्तान्त को लोग मात्र संख्या बढ़ाने वाला समझते हैं, वह अत्यन्त अद्भुत वृत्त वाला व्यक्ति न तो स्त्री कहलाने योग्य है और न ही पुरुष। भाव यह है कि जिस पुरुष के वृत्तान्त को लोग मात्र संख्या बढ़ाने वाला समझते हैं, वह अत्यन्त अद्भुत वृत्त वाला व्यक्ति न तो स्त्री कहलाने योग्य है और न ही पुरुष।
अन्वयः - मानवाः यस्य महत् अद्भुतम् राशिवर्धन मात्रम् वृत्तं न जल्पन्ति, सः न एव स्त्री, न पुनः पुमान् (अस्ति)॥
शब्दार्थ/हिन्दी अनुवाद-
मानवाः= मनुष्य
यस्य महत्=जिसके अत्यन्त
अद्भुतम्=विचित्र,मात्रम्=मात्र
राशिवर्धन= संख्या बढ़ाने वाले
वृत्तं=वृत्तान्त को
न जल्पन्ति=नहीं कहते हैं,
सः न एव स्त्री= वह न तो स्त्री है
(अस्ति)=ही है।
य आत्मनः प्रियसुखे हित्वा मृगयते श्रियम् ।
अमात्यानामथो हर्षमादधात्यचिरेण सः ॥7॥
हिन्दी अर्थ- जो अपने प्रिय सुख को छोड़कर शोभा अथवा लक्ष्मी को खोजता है, वह शीघ्र ही अपने मंत्रियों को हर्ष पहुँचाता है अर्थात् वह राजा अपने मंत्रियों के लिए प्रसन्नता उत्पन्न करता है।
अन्वयः - यः आत्मनः प्रियं सुखं हित्वा श्रियम् मृगयते, अथो सः अचिरेण अमात्यानाम् हर्षं आदधाति॥
शब्दार्थ/हिन्दी अनुवाद-
यः आत्मनः=जो अपने
प्रियं सुखं=प्रिय सुख को
हित्वा=छोड़कर
श्रियम्= शोभा अथवा लक्ष्मी को
मृगयते=खोजता है,
अथो सः=वह
अचिरेण=शीघ्र ही
अमात्यानाम्=अपने मंत्रियों को
हर्षं=हर्ष
आदधाति=पहुँचाता है।
( अर्थात् वह राजा अपने मंत्रियों के लिए प्रसन्नता उत्पन्न करता है।)
पुत्र उवाच-पुत्र ने कहा -
किं नु मामपश्यन्त्याः पृथिव्या अपि सर्वथा ।
किमाभरणकृत्यं ते किं भोगैर्जीवितेन वा ॥8॥
हिन्दी अर्थ- निश्चय ही सर्वथा मुझको न देखते हुये तुम्हारी पृथ्वी का क्या लाभ? तुम्हारे आलंकारिक कार्य भी क्या? अर्थात् उनसे भी क्या प्रयोजन! भोगों से क्या अथवा इस जीवन से क्या? अर्थात् इन सबसे क्या लाभ?
विशेष - यहाँ विदुरा के पुत्र द्वारा भौतिक सुख-साधनों की सार्थकता जीवित रहने पर ही मानते हुए जिज्ञासा प्रकट की गई है।
अन्वयः - नु सर्वथा माम् अपश्यन्त्याः पृथिव्याः अपि ते किम्, ते आभरणकृत्यम् किम्, भोगैः जीवितेन वा किम्॥
शब्दार्थ/हिन्दी अनुवाद-
नु सर्वथा=निश्चय ही सर्वथा
माम्=मुझको
अपश्यन्त्याः=न देखते हुये तुम्हारी
पृथिव्याः=पृथ्वी का
अपि ते किम्=क्या लाभ?
ते आभरणकृत्यम्=तुम्हारे आलंकारिक
किम्,=कार्य भी क्या? अर्थात् उनसे भी क्या प्रयोजन?
भोगैः=भोगों से क्या
जीवितेन वा=अथवा इस जीवन से
किम्=क्या? अर्थात् इन सबसे क्या लाभ?
माता उवाच -माता ने कहा -
यमाजीवन्ति पुरुषं सर्वभूतानि संजय ! |
पक्वं द्रुममिवासाद्य तस्य जीवितमर्थवत् ॥9॥
हिन्दी अर्थ- हे (पुत्र) संजय! (संसार के) सभी प्राणी जिस पुरुष को पके हुये वृक्ष के समान प्राप्त कर उसका आश्रय ग्रहण करते हैं, उसका जीवन सफल होता है।
विशेष - यहाँ विदुरा ने परोपकारी एवं स्वाभिमानी व्यक्ति के ही जीवन को सार्थक माना है।
अन्वयः - संजय! सर्वभूतानि यम् पुरुषम् पक्वम् द्रुमम् इव आसाद्य आजीवन्ति, तस्य जीवितम् अर्थवत् (भवति)॥
शब्दार्थ/हिन्दी अनुवाद-
संजय!=हे (पुत्र) संजय!
सर्वभूतानि=(संसार के) सभी प्राणी
यम् पुरुषम्=जिस पुरुष को
पक्वम् द्रुमम्=पके हुये वृक्ष के
इव आसाद्य= समान प्राप्त कर
आजीवन्ति=उसका आश्रय ग्रहण करते हैं,
तस्य जीवितम्=उसका जीवन
अर्थवत् (भवति)=सफल होता है।
स्वबाहुबलमाश्रित्य योऽभ्युज्जीवति मानवः ।
स लोके लभते कीर्त्तिं परत्र च शुभां गतिम्॥10॥
हिन्दी अर्थ- जो मनुष्य अपनी भुजाओं की शक्ति का सहारा लेकर जीवित रहता है, वह इस लोक में यश को प्राप्त करता है तथा परलोक में श्रेष्ठ गति (सद्गति) को प्राप्त करता है।
विशेष - विदुरा के अनुसार पराक्रमी व्यक्ति ही इस लोक में यश एवं परलोक में परम गति को प्राप्त करता है।
अन्वयः-यः मानवःस्वबाहुबलम् आश्रित्य अभ्युज्जीवति सःलोके कीर्तिं लभते,परत्र च शुभाम् गतिम् (लभते)॥
शब्दार्थ/हिन्दी अनुवाद-
यः मानवः=जो मनुष्य
स्वबाहुबलम्=अपनी भुजाओं की शक्ति का
आश्रित्य=सहारा लेकर
अभ्युज्जीवति सः=जीवित रहता है, वह
लोके कीर्तिं=इस लोक में यश को
लभते=प्राप्त करता है
परत्र च=तथा परलोक में
शुभाम्=श्रेष्ठ गति (सद्गति)
गतिम् (लभते)= को प्राप्त करता है।
कुन्ती उवाच-कुन्ती ने कहा-
सदश्व इव स क्षिप्तः प्रणुन्नो वाक्यसायकैः ।
तच्चकार तथा सर्वं यथावदनुशासनम्॥॥11॥
हिन्दी अर्थ- वह (संजय) (अपनी माता विदुरा के) वाणी के बाणों से फेंके गये अच्छे घोड़े के समान प्रेरित किया गया । जैसा माता ने उसे उपदेश या आदेश दिया, उसने वैसा ही सब कुछ किया। अर्थात् कायरता को छोड़कर स्वाभिमानपूर्वक रहना प्रारंभ किया।व प्रेरक वचनों का उसके पुत्र सञ्जय पर पड़े प्रभाव को दर्शाया गया है.वह अपनी कायरता को त्यागकर स्वाभिमानी जीवन जीने को तत्पर हो जाता है।
अन्वयः - सः वाक्यसायकैः क्षिप्तः सत् अश्व इव प्रणुन्नः यथावत् अनुशासनम् तथा तत् सर्वम् चकार ॥
शब्दार्थ/हिन्दी अनुवाद-
सः वाक्यसायकैः=वह (संजय) (अपनी माता विदुरा के) वाणी के बाणों से
क्षिप्तः सत्= फेंके गये अच्छे
अश्व इव प्रणुन्नः=घोड़े के समान प्रेरित किया गया ।
यथावत्=जैसा माता ने उसे
अनुशासनम्=उपदेश या आदेश दिया,
तथा तत्=उसने वैसा ही
सर्वम् चकार=सब कुछ किया।
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरं संस्कृतेन देयम्
(क) 'मानो हि महतां धनम्' इत्ययं पाठः कस्मात् ग्रन्थात् संकलितः ?
उत्तरम् :
'मानो हि महतां धनम्' इत्ययं पाठः महाभारत ग्रन्थात् संकलितः।
उत्तरम् : विदुरायाः पुत्रः सिन्धुराजेन पराजितः अभवत्।
उत्तरम् :
मानवाः यस्य महदद्भुतम् वृत्तं न जल्पन्ति यश्च राशिवर्धनमात्रं सः नैव स्त्री न पुनः पुमान् भवति।
उत्तरम् :
यः आत्मनः प्रियसुखं न जहाति सः अमात्यानां हर्षं न आदधाति।
उत्तरम् :
अपुत्रया मात्रा पुत्रोपेक्षणम् आभरणकृत्यं न भवति।
उत्तरम् :
यं आश्रित्य सर्वभूतानि जीवन्ति, तस्य जीवितम् अर्थवत्।
'यः आत्मन:... अचिरेण सः' अस्य श्लोकस्य आशयं हिन्दी भाषया स्पष्टी कुरुत।
उत्तरम् :
हिन्दी भाषा में आशय-इस श्लोक का आशय यह है कि जो व्यक्ति अपनी सुख-सुविधा को त्याग कर सफलता अथवा समृद्धि की आशा करता है ऐसा व्यक्ति शीघ्र ही अपने मंत्रियों की प्रसन्नता की वृद्धि करता है। भाव यह है कि त्याग के बिना सफलता संभव नहीं है।
रिक्तस्थानम् पूर्तिः विधेया -
(क) विदुरा ओरसपुत्र ................।
उत्तरम् :
विदुरा ओरसपुत्रं जगहें।
उत्तरम् :
हे कापुरुष एवं पराजितः मा शेष्व।
उत्तरम् :
त्वत्कृते स्वयमेव मग्नं कुलम् उद्भावय।
उत्तरम् :
यः प्रियसुखे हित्वा श्रियम् मृगयते।
उत्तरम् :
मामपश्यन्त्याः पृथिव्या अपि सर्वथा किम्?
उत्तरम् :
सर्वभूतानि संजय यमाजीवन्ति।
स यथावत् अनुशासनं तथा तत् सर्वं चकार।
अधोलिखितानां शब्दानां विलोमान् लिखत विश्रुता, सत्या, अधर्मज्ञम्, अमित्रान्, कापुरुषः, अचिरेण, आसाद्य।
उत्तरम् :
शब्दाः - विलोम शब्दाः
- विश्रुता = अविश्रुता
- सत्या = असत्या
- अधर्मज्ञम् = धर्मज्ञम्
- अमित्रान् = मित्रान्
- कापुरुषः = वीरपुरुषः
- अचिरेण = चिरेण
- आसाद्य = अनासाद्य
उत्तरम् :
- विदुरा क्षात्रधर्मरता आसीत्।
- सा दीर्घदर्शिनी श्रुतवाक्या चासीत्।
- सा राजसंसत्सु विश्रुता आसीत्।
- सा बहुश्रुता आसीत्।
- सा सत्यवादिनी आसीत्।
उत्तरम् :
अन्वयः - सञ्जय! सर्वभूतानि यम् पुरुषम् पक्वम् द्रुमम् इव आसाद्य आजीवन्ति तस्य जीवितम् अर्थवत्।
अधोलिखितपदानां संस्कृत वाक्येषु प्रयोगं कुरुत विश्रुता, शयानम्, द्विषताम्, गतिम्, पक्वम्, क्षिप्तः।
उत्तरम् :
- विश्रुता-विदुरा राजसभासु विश्रुता आसीत्।
- शयानम्-सा शयानम् पुत्रं निनिन्द।
- द्विषताम्-रामः द्विषताम् हर्षवर्धनः आसीत्।
- गतिम्-भाग्यस्य गतिं कोऽपि न जानाति।
- पक्वम्-पक्वं फलं खादेत्।
- क्षिप्त:-धनुषा क्षिप्तः अयं शरः।
उत्तरम् :
मानो हि महतां धनमस्ति।
क्षात्रधर्मरता का आसीत?
उत्तरम् :
क्षात्रधर्मरता विदुरा आसीत्।
विदुरा कं जगहे?
उत्तरम् :
विदुरा ओरसपुत्रं जगहें ।
द्विषतां हर्षवर्धनम् कः आसीत्?
उत्तरम् :
द्विषतां हर्षवर्धनम् विदुरायः पुत्र आसीत् ।
विदुरा स्वपुत्रं किं उक्तवती?
उत्तरम् :
विदुरा स्वपुत्रं उक्तवती-'हे कापुरुष! उत्तिष्ठ एवं पराजितः मा शेष्व।'
विदुरयानुसारेण कः लोके कीर्तिं लभते?
उत्तरम् :
विदुरयानुसारेण यः मानवः स्वबाहुबलमाश्रित्य अभ्युज्जीवति सः लोके कीर्तिं लभते।
वाक्यसायकैः प्रणुन्नः सः किमिव क्षिप्तः?
उत्तरम् :
वाक्यसायकैः प्रणुन्नः सः सदश्व इव क्षिप्तः।
'मानो हि महतां धनम्' पाठे विदुरया स्वपुत्राय किं उपदिष्टम?
उत्तरम् :
'मानो हि महतां धनम्' पाठे विदुरया स्वपुत्राय कायरतां विहाय स्व स्वाभिमानं पुनः प्राप्तुं उपदिष्टम्।
परत्र शुभां गतिं कः लभते?
उत्तरम् :
यः स्वबाहुबलमाश्रित्य अभ्युज्जीवति परत्र सः शुभां गतिं प्राप्नोति।
विदुरायाः पुत्रस्य किं नाम आसीत्?
उत्तरम् :
विदुरायाः पुत्रस्य सञ्जयः नाम आसीत्।
दीर्घदर्शिनी श्रुतवाक्या का आसीत्?
उत्तरम् :
दीर्घदर्शिनी श्रुतवाक्या विदुरा आसीत्।
निर्मानो बन्धुशोकदः कस्य विशेषणे स्तः?
उत्तरम् :
निर्मानो बन्धुशोकदः सञ्जयस्य विशेषणे स्तः।
प्रश्न: 1.
(ख) विदुरा कुत्र विश्रुता आसी?
(ग) विदुरायाः पुत्रः केन पराजितः अभवत् ?
(घ) कः स्त्री पुमान् वा न भवति?
(ङ) कः अमात्यानां हर्ष न आदधाति ?
(च) अपुत्रया मात्रा किं आभरणकृत्यं न भवति?
(छ) कस्य जीवितम् अर्थवत् भवति?
प्रश्न: 2.
प्रश्न: 3.
(ख) हे कापुरुष ........................ मा शेष्व।
(ग) त्वत्कृते स्वयमेव मग्नं ....................... उद्भावय।
(घ) यः प्रियसुखे. श्रियम् मृगयते।
(ङ) मामपश्यन्त्याः... अपि सर्वथा किम्?
(च) सर्वभूतानि............. यमाजीवन्ति।
(छ) स यथावत् ................. चकार।
उत्तरम् :
प्रश्न: 4.
प्रश्नः 5.
प्रश्नः 6.
प्रश्नः 7.
संस्कृतभाषया उत्तरम् दीयताम् -
प्रश्न: 1.
प्रश्नः 2.
प्रश्न: 3.
प्रश्न: 4.
प्रश्न: 5.
प्रश्नः 6.
प्रश्नः 7.
प्रश्न: 8.
प्रश्न: 9.
प्रश्न: 10.
प्रश्न: 11.
प्रश्न: 12.
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जयतु संस्कृतम्।