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मंगलवार, 13 सितंबर 2022

परोपकाराय सतां विभूतयः

 

 परोपकाराय सतां विभूतयः

            जेसीईआरटी तथा एनसीईआरटी के कक्षा-11 के संस्कृत पाठ्यपुस्तक-शाश्वती भाग-1 के द्वितीय: पाठ: परोपकाराय सतां विभूतयः  का शब्दार्थ सहित हिन्दी अनुवाद एवं भावार्थ तथा उस पर आधारित प्रश्नोत्तर यहाँ दिए गए हैं।यहाँ दिए गए हिंदी अनुवाद तथा भावार्थ की मदद से विद्यार्थी पूरे पाठ को आसानी से समझकर अभ्यास के प्रश्नों को स्वयं कर सकते हैं।
         संस्कृत साहित्य में जातक कथाओं का अपना विशेष महत्त्व है। ये कथाएँ मूलतः पालि में हैं, जिनकी संख्या 547 है। बोधिसत्त्व के कर्म दिव्य और अद्भुत हैं। उनका जीवन अलौकिक और आदर्श है। इसी से प्रेरणा लेकर आर्यशूर ने जातकमाला ग्रन्थ की रचना की । यह ग्रन्थ गद्य-पद्य मिश्रित संस्कृत में है। प्रस्तुत पाठ इसी ग्रन्थ के पन्द्रहवें जातक ‘मत्स्यजातकम्' का संक्षेप है।
        इसमें बताया गया है कि सत्य तपोबल के आधार पर किस प्रकार मत्स्याधिपति के रूप में बोधिसत्त्व अपने साथी मत्स्यों की प्राण रक्षा करने में समर्थ होते हैं। वस्तुतः सत्त्वगुण से परिपूर्ण आचरण देवताओं को भी वश में कर सकता है।इस पाठ का शब्दार्थ सहित हिन्दी अनुवाद एवं भावार्थ तथा उस पर आधारित प्रश्नोत्तर देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें-https://www.sanskritsight.in/2022/09/blog-post_28.html
        बोधिसत्त्वः किल कस्मिंश्चित् नातिमहति कमलकुवलयादि- विभूषितसलिले हंसचक्रवाकादिशोभिते तीरान्ततरुकुसुमावकीर्णे सरसि मत्स्याधिपतिः बभूव । बहुषु जन्मान्तरेषु परोपकाराभ्यासवशात् तत्रस्थः अपि परहितसुखसाधने व्यापृतः अभवत्। इष्टानामिव च स्वेषाम् अपत्यानाम् उपरि सौहार्दत्वाद् महासत्त्वः तेषां मीनानां दानप्रिय- वचनादिक्रमैः परमनुग्रहं चकार ।
 अर्थ-निश्चित रूप से बोधिसत्व किसी छोटे, कमलों, नील कमलों आदि से सुशोभित जल वाले, हंस, चकवा आदि पक्षियों से शोभित, जिसके किनारे के प्रान्तों पर वृक्षों एवं पुष्पों से परिपूर्ण तालाब में मत्स्याधिपति  के रूप में अवतीर्ण हुए बहुत से जन्म-जन्मान्तरों में परोपकार करने के अभ्यासवश, वहाँ, उस जन्म में स्थित होते हुये भी दूसरों की भलाई एवं सुख साधने में वे तल्लीन हुये। अपने इष्ट लोगों की भाँति अपनी सन्तानों के ऊपर सौहार्द भाव के कारण महान् उदार प्राणी के रूप में उन मछलियों पर दान, प्रिय वचन आदि के क्रम में अत्यन्त कृपा की।
शब्दार्थ और वाक्यार्थ-
 किल= निश्चित रूप से
बोधिसत्त्वः=बोधिसत्व 
कस्मिंश्चित्=किसी  
नातिमहति=छोटे,
कमलकुवलयादि-=कमलों,नील कमलों आदि से  
विभूषितसलिले=सुशोभित जल वाले, 
हंसचक्रवाकादिशोभिते=हंस चक्रवाक आदि पक्षियों से सुशोभित,
तीरान्ततरु=किनारे के प्रान्तों पर वृक्षों
कुसुमावकीर्णे= एवं पुष्पों से परिपूर्ण, 
सरसि= तालाब में 
मत्स्याधिपतिः=मछलियों के स्वामी के रूप में 
बभूव=अवतीर्ण हुए। 
बहुषु जन्मान्तरेषु=बहुत से जन्म-जन्मान्तरों में 
परोपकाराभ्यासवशात्=परोपकार करने के अभ्यासवश 
तत्रस्थः अपि=वहाँ,उस जन्म में स्थित होते हुये भी 
परहितसुखसाधने=दूसरों की भलाई एवं सुख साधने में 
व्यापृतः अभवत्=वे तल्लीन हुये।
 इष्टानामिव च=तथा अपने इष्ट लोगों की भाँति  
स्वेषाम्=अपनी 
अपत्यानाम्=सन्तानों के 
उपरि=ऊपर 
सौहार्दत्वाद्=सौहार्द भाव के कारण 
महासत्त्वः =महान् उदार प्राणी के रूप में
तेषां मीनानां=उन मछलियों पर 
दानप्रियवचनादिक्रमैः=दान,प्रिय वचन आदि के क्रम में 
परमनुग्रहं=अत्यन्त कृपा  
चकार=की। 
अथ कदाचित् सत्त्वानां भाग्यवैकल्यात् प्रमादाच्च सम्यग् देवो न ववर्ष। वृष्टेः अभावे तत् सरः कदम्बकुसुमगौरेण नवसलिलेन यथापूर्वं न परिपूर्णम् जातम्। क्रमेण च उपगते निदाघकाले दिनकरकिरणैः अभितप्तया धरण्या, ज्वालानुगतेनेव मारुतेन पिपासावशादिव प्रत्यहम् आपीयमानं तत् सरः लघुपल्वलमिवाभवत्। तत्रस्थिताः मीनाश्च जलाभावात् मृतप्रायाः इव सञ्जाताः।
अर्थ- इसके बाद कभी प्राणियों के भाग्य के अनकल न होने के कारण तथा लापरवाही के कारण देवता ने अच्छी तरह वर्षा नहीं की अर्थात् अच्छी वर्षा नहीं हुई। वर्षा के न होने पर वह तालाब कदम्ब के पुष्यों के समान गौरवर्ण (श्वेत) नये पानी से पहले की तरह परिपूर्ण नहीं हुआ अर्थात् वर्षा के अभाव में तालाब में स्वच्छ नवीन, जल का आगमन नहीं हुआ। इसके बाद क्रमश: गर्मी की ऋतु आने पर सूर्य की तेज किरणों से तपी हुई धरती से, ज्वाला से परिपूर्ण वायु से प्यास के कारण प्रतिदिन चारों ओर से पीया जाता हुआ वह तालाब एक छोटे तालाब (पोखर) के समान हो गया और वहाँ स्थित मछलियाँ जल की कमी के कारण मानो मृतप्राय हो गई। 
शब्दार्थ और वाक्यार्थ- 
अथ कदाचित्=इसके बाद कभी 
सत्त्वानां= प्राणियों के
भाग्यवैकल्यात्=भाग्य के अनुकूल न होने के कारण, 
प्रमादाच्च=तथा लापरवाही के कारण,
 देवो=देवता ने 
सम्यग्=अच्छी तरह
न ववर्ष=नहीं वृष्टि की 
वृष्टेः अभावे=वर्षा के न होने पर  
तत् सरः=वह तालाब
कदम्बकुसुमगौरेण= कदम्ब के पुष्यों के समान गौरवर्ण (श्वेत) 
नवसलिलेन=नये (ताजे) पानी से 
यथापूर्वं=पहले की तरह  
न परिपूर्णम् जातम्=परिपूर्ण नहीं हुआ।
 क्रमेण च=इसके बाद क्रमश: 
 निदाघकाले=ग्रीष्म ऋतु के
उपगते=समीप होने पर 
दिनकरकिरणैः=सूर्य की किरणों से 
अभितप्तया=तपी हुई 
धरण्या=पृथ्वी से, 
ज्वालानुगतेनेव=ज्वाला से परिपूर्ण
मारुतेन=वायु से,  
पिपासावशादिव=प्यास के कारण 
 प्रत्यहम्=प्रतिदिन 
आपीयमानं=चारों ओर से पीया जाता हुआ
 तत् सरः= वह तालाब
लघुपल्वलमिवाभवत्=छोटे तालाब के समान हो गया
जलाभावात्=तथा जल के अभाव से
तत्रस्थिताः मीनाश्च=उसमें स्थित मछलियाँ  
मृतप्रायाः इव=मृतप्राय के समान
सञ्जाताः=हो गयीं। 
 सलिलतीरवासिनः पक्षिणः वायसगणाः च यावत् तान् मत्स्यान् भक्षयितुं चिन्तयन्ति स्म तावद् विषाददैन्यवशगं मोनकुलमवेक्ष्य बोधिसत्त्वः करुणायमानः चिन्तामापेदे । कष्टा व्रत इयम् आपद् आपतिता मीनानाम्।
अर्थ- जल के किनारे पर रहने वाले पक्षी एवं कौए जब तक उन मछलियों को खाने के लिए विचार कर रहे थे, तब तक दुःख एवं दीनता के वशीभूत मछलियों के समूह को देखकर बोधिसत्त्व करुणायुक्त होकर चिन्ता को प्राप्त हो गये अर्थात् अत्यन्त चिन्तित हो गये। (वे विचार करने लगे) हाय! यह आपत्ति जो मछलियों पर आ पड़ी है, वह अत्यन्त कष्टप्रद है।
शब्दार्थ और वाक्यार्थ-
सलिलतीरवासिनः=जल के किनारे पर रहने वाले
 पक्षिणः=पक्षी 
वायसगणाः च=तथा कौओं के समूह
 यावत् तान्=जब तक उन 
मत्स्यान्=मछलियों को  
भक्षयितुं=खाने के लिए 
चिन्तयन्ति स्म=विचार कर रहे थे 
तावद्=तब तक 
विषाददैन्यवशगं=विषाद एवं दीनता के वशीभूत
 मीनकुलमवेक्ष्य=मछलियों के समुह को देखकर
 बोधिसत्त्वः=बोधिसत्त्व 
करुणायमानः=दयाभाव से युक्त होकर 
चिन्तामापेदे=चिन्ता को प्राप्त हो गये
(वे विचार करने लगे हाय!)   
मीनानाम्=जो मछलियों पर
इयम् आपद्=यह आपत्ति
आपतिता=आ पड़ी है,
कष्टा व्रत=अत्यन्त कष्टप्रद है।  
                  अद्यापि च   चिरेणैव लक्ष्यते    जलदागमः ॥ 
                 अपयानक्रमो नास्ति  नेताप्यन्यत्र को   भवेत्।
                 अस्मद्व्यसनसङ्कृष्टाः समायान्ति च नो द्विषः॥
                   प्रत्यहं   क्षीयते    तोयं स्पर्धमानमिवायुषा । 
 अर्थ- प्रतिदिन आयु से स्पर्धा करता हुआ मानो जल (आयु की तरह) क्षीण हो रहा है। (क्रमशः घट रहा है) तथा आज भी बादलों का आगमन दूर ही दिखाई देता है अर्थात् बादलों के आगमन की निकट भविष्य में संभावना नहीं है। बाहर जाने का भी मार्ग नहीं है। दूसरे स्थान पर नेता भी कौन बने? साथ ही हमारे दुःखों से खिंचे हुये हमारे शत्रुगण भी आ रहे हैं। भाव यह है कि इस बड़ी मुसीबत में कोई भी मार्ग दिखाई नहीं दे रहा है।   
अन्वय,शब्दार्थ और वाक्यार्थ-
 प्रत्यहम्=प्रतिदिन 
स्पर्धमानम् इव=स्पर्धा करता हुआ 
अद्य अपि च=तथा आज भी  
चिरेण =विलम्ब से 
अस्मद्व्यसनसकृष्टाः=हमारे दुःखों से खिंचे हुए 
समायान्ति=आ रहे हैं।  
आयुषा= आयु से
तोयम्=जल 
क्षीयते=कम हो रहा है।
जलद-आगमः=बादलों का आगमन 
एव लक्ष्यते=ही दिखाई देता है।
अपयानक्रमः=बाहर जाने का मार्ग 
न अस्ति=नहीं है। 
अन्यत्र नेता=दूसरे स्थान पर नेता  
अपि कः भवेत्=भी कौन बने?
च न द्विषः=शत्रुगण
 तत्किमत्र प्राप्तकालं स्यादिति विमृशन् स महात्मा स्वकीय- सत्यतपोबलमेव तेषां रक्षणोपायम् अमन्यत । करुणया समापीड्यमानहृदयो दीर्घं निःश्वस्य नभः समुल्लोकयन् उवाच -
अर्थ- तो इस विषय में समयोचित क्या हो? इस प्रकार विचार करते हुये उस महात्मा (बोधिसत्व) ने अपनी सत्यता एवं तपस्या के बल को ही उन मछलियों की रक्षा का उपाय माना। करुणा से संवेदनशील हृदय वाले वे लम्बी साँस लेकर आकाश की ओर देखते हुये बोले।  
शब्दार्थ और वाक्यार्थ-
तत्किमत्र=तो इस विषय में 
 प्राप्तकालं=समयोचित
 स्यादिति= क्या हो?
विमृशन् स= इस प्रकार विचार करते हुये उस 
महात्मा=महात्मा (बोधिसत्व) ने   
स्वकीय-=अपनी   
सत्यतपोबलमेव=सत्यता एवं तपस्या के बल को ही  
तेषां रक्षणोपायम्=उन मछलियों की रक्षा का 
अमन्यत=उपाय माना। 
करुणया=करुणा से 
समापीड्यमानहृदयो= संवेदनशील हृदय वाले वे 
दीर्घं निःश्वस्य नभः=लम्बी साँस लेकर आकाश की ओर
समुल्लोकयन्= देखते हुये बोले।  
उवाच -= बोले-
स्मरामि न प्राणिवधं यथाहं सञ्चिन्त्य कृच्छ्रे परमेऽपि कर्तुम् । 
अनेन      सत्येन   सरांसि    तोयैरापूरयन्   वर्षतु देवराजः ॥
अर्थ-जैसे मैं बड़े कष्ट के समय में भी (किसी) प्राणी का वध करने की बात स्मरण नहीं करता अर्थात् मैंने अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में भी आज तक किसी प्राणी का वध नहीं किया। मेरे इस सत्य के सन्दर्भ में सोचकर देवराज इन्द्र तालाबों को पानी से भरने के लिए वर्षा करें। 
अन्वय,शब्दार्थ और वाक्यार्थ-
यथा अहम्= जैसे मैं 
परमे कृच्छ्रे अपि=बड़े कष्ट के समय में भी 
 प्राणिवधम्=(किसी) प्राणी का वध करने की बात
स्मरामि=स्मरण 
कर्तुम् न= नहीं करता। 
 अनेन सत्येन=मेरे इस सत्य के सन्दर्भ में  
 सञ्चिन्त्य=सोचकर 
देवराजः=देवराज इन्द्र  
सरांसि=तालाबों को पानी से भरने के लिए वर्षा करें।
तोयैः=पानी से 
 आपूरयन्=भरने के लिए    
वर्षतु=वर्षा करें।  
अथ तस्य महात्मनः पुण्योपचयात् सत्याधिष्ठानबलात् च समन्ततः तोयपरिपूर्णाः गम्भीरमधुरनिर्घोषा अकाला अपि कालमेघाः विद्युल्लताऽलङ्कृताः प्रादुरभवन् । बोधिसत्त्वः समन्ततोऽभिप्रसृतैः सलिलप्रवाहैरापूर्यमाणे सरसि, धारानिपातसमकालेन विद्रुतवाया पक्षिगणे, लब्धजीविताशे च प्रमुदिते मीनगणे प्रीत्याभिसार्यमाणहृदयो वर्षानिवृत्तिसाशङ्कः पुनः पुनः पर्जन्यमाबभाषे -
 अर्थ-इसके बाद उस महात्मा के पुण्यों की वृद्धि से तथा सत्य पर दृढ़ रहने की शक्ति से चारों ओर जल से परिपूर्ण गंभीर तथा मधुर ध्वनि करने वाले, असमय प्रकट होने वाले होते हुये भी प्रलयकाल के समान बादल बिजली रुपी लता से अलंकृत होकर प्रकट हो गये। बोधिसत्त्व, चारों ओर फैले पानी के प्रवाह से परिपूर्ण तालाब के होने पर, मूसलाधार वर्षा पड़ने के समय के साथ ही कौए आदि पक्षियों के वहाँ से भाग जाने पर तथा जीवन की आशा प्राप्त होने पर, मछलियों के प्रसन्न हो जाने पर, प्रसन्नता से प्रसन्न किये जाते हुये हृदय वाले वर्षा की समाप्ति की आशंका वाले (बोधिसत्त्व) बार-बार बादल से बोले (कहने लगे)।
शब्दार्थ और वाक्यार्थ-
अथ तस्य=इसके बाद उस
 महात्मनः= महात्मा के
पुण्योपचयात्=पुण्यों की वृद्धि से 
सत्याधिष्ठानबलात् च =तथा सत्य पर दृढ़ रहने की शक्ति से 
समन्ततः=चारों ओर
तोयपरिपूर्णाः=जल से परिपूर्ण 
गम्भीरमधुरनिर्घोषा=गंभीर तथा मधुर ध्वनि करने वाले 
अकाला अपि=असमय प्रकट होने वाले होते हुये भी 
कालमेघाः=प्रलयकाल के समान बादल  
विद्युल्लताऽलङ्कृताः=बिजली रुपी लता से अलंकृत 
प्रादुरभवन्=प्रकट हो गये। 
बोधिसत्त्वः= बोधिसत्त्व, 
समन्ततोऽभिप्रसृतैः=चारों ओर फैले
 सलिलप्रवाहैरापूर्यमाणे=पानी के प्रवाह से परिपूर्ण 
सरसि=तालाब के होने पर,
धारानिपातसमकालेन=मूसलाधार वर्षा पड़ने के समय के साथ ही 
विद्रुतवाया पक्षिगणे=कौए आदि पक्षियों के वहाँ से भाग जाने पर 
लब्धजीविताशे च=तथा जीवन की आशा प्राप्त होने पर,
 प्रमुदिते मीनगणे=मछलियों के प्रसन्न हो जाने पर,
 प्रीत्याभिसार्यमाणहृदयो=प्रसन्नता से प्रसन्न किये जाते हुये हृदय वाले 
वर्षानिवृत्तिसाशङ्कः=वर्षा की समाप्ति की आशंका वाले (बोधिसत्त्व) 
पुनः पुनः=बार-बार 
पर्जन्यमाबभाषे =बादल से बोले-                                                                                                                        उद्गर्ज    पर्जन्य    गभीरधीरं     प्रमोदमुद्वासय वायसानाम्। 
रत्नायमानानि पयांसि वर्षन् संसक्तविद्युज्ज्वलितद्युतीनि ॥
अर्थ-हे मेघ ! निरन्तर चमकती हुई बिजली के प्रकाश से युक्त होने के कारण रत्नों के समान दिखाई पड़ने वाले जल की वर्षा करते हुये (तुम) कौओं की प्रसन्नता को समाप्त करो तथा गंभीर धीर आवाज में गर्जना करो। 
अन्वय,शब्दार्थ और वाक्यार्थ- 
 पर्जन्य=हे मेघ !  
संसक्त=निरन्तर चमकती हुई 
विद्युत-ज्वलित,=बिजली के प्रकाश से युक्त होने के कारण  
द्युतीनि रत्नायमानानि =रत्नों के समान दिखाई पड़ने वाले
पयांसि वर्षन्,=जल की वर्षा करते हुये (तुम) 
वायसानाम् =कौओं की 
प्रमोदम्=प्रसन्नता को तथा गंभीर धीर आवाज में गर्जना करो।  
उद्वासय = समाप्त करो 
गंभीर धीरं (च) =तथा गंभीर धीर आवाज में
उद्गर्ज=गर्जना करो। 
 तदुपश्रुत्य देवानाम् इन्द्रः शक्रः परमविस्मितमनाः साक्षात् अभिगम्यैनम् अभिसंराधयन् उवाच-
अर्थ-यह (बात) सुनकर देवताओं के अधिपति इन्द्र अत्यन्त आश्चर्यचकित मन वाले साक्षात् बोधिसत्त्व के पास आकर उनकी स्तुति करते हुये कहने लगे।
शब्दार्थ और वाक्यार्थ-
तदुपश्रुत्य= यह (बात) सुनकर
देवानाम्=देवताओं के अधिपति
इन्द्रःशक्रः=इन्द्र 
परमविस्मितमनाः=अत्यन्त आश्चर्यचकित मन वाले 
साक्षात्=साक्षात्    
अभिगम्यैनम्=बोधिसत्त्व के पास आकर 
अभिसंराधयन्=उनकी स्तुति करते हुये 
उवाच=कहने लगे।
आवर्जिता यत्कलशा इवेमे क्षरन्ति रम्यस्तनिताः पयोदाः ॥
अर्थ-हे महापुरुष! मत्स्याधिपति! निश्चय ही यह आपके सत्य का अत्यधिक प्रभाव है कि उंडेले गये घड़ों के समान ये सुन्दर ध्वनि वाले मेघ बरस रहे हैं। 
   इत्येवं प्रियवचनैः संराध्य तत्रैवान्तर्दधे। तच्च सरः तोयसमृद्धिमवाप । तदेवं शीलवताम् इह एव कल्याणा: अभिप्रायाः वृद्धिम् आप्नुवन्ति प्रागेव परत्र च । अतः शीलविशुद्धौ प्रयतितव्यम्।
अर्थ-इस प्रकार प्रिय वचनों से स्तुति करके इन्द्र वहीं पर अन्तर्ध्यान हो गये तथा वह तालाब जल से परिपूर्ण हो गया। तो इस प्रकार चरित्रवान् इस लोक में ही तथा परलोक में भी कल्याणकारी मनोरथों को बढ़ाते रहते हैं। इसलिए शील (चरित्र) की विशुद्धि का प्रयास करना चाहिए। अर्थात् चरित्रवान बनने का सदैव प्रयास करना चाहिए। 
शब्दार्थ और वाक्यार्थ-
इत्येवं=इस प्रकार 
प्रियवचनैः=प्रिय वचनों से
संराध्य= स्तुति करके इन्द्र   
तत्रैवान्तर्दधे=वहीं पर अन्तर्ध्यान हो गये 
तच्च सरः=तथा वह तालाब 
तोयसमृद्धिमवाप=जल से परिपूर्ण हो गया। 
तदेवं शीलवताम्=तो इस प्रकार चरित्रवान्   
इह एव कल्याणा:=इस लोक में ही तथा परलोक में भी कल्याणकारी
अभिप्रायाः= मनोरथों को  
वृद्धिम्=बढ़ाते 
आप्नुवन्ति=रहते हैं    
प्रागेव परत्र च=पहले तथा बाद में। 
तवैव खल्वेष महानुभाव ! मत्स्येन्द्र ! सत्यातिशयप्रभावः । 
अतः शीलविशुद्धौ=इसलिए शील (चरित्र) की विशुद्धि का 
प्रयतितव्यम्=प्रयास करना चाहिए। 
अन्वय,शब्दार्थ और वाक्यार्थ-
महानुभाव!=हे महापुरुष!
 मत्स्येन्द्र != मत्स्याधिपति!
खलु एषः= निश्चय ही यह 
तव एव= आपके ही 
सत्यातिशय=सत्य का अत्यधिक 
प्रभावः (वर्तते)=प्रभाव है
यत् आवर्जिताः= कि उंडेले गये 
कलशाः इव=घड़ों के समान
इमे रम्यस्तनिताः= ये सुन्दर ध्वनि वाले 
पयोदाः=मेघ 
क्षरन्ति= बरस रहे हैं। 
                                         अभ्यास
प्रश्न: 1. संस्कृतभाषया उत्तरत - 
(क) जातकमालायाः लेखकः कः? 
उत्तरम्-जातकमालायाः लेखकः आर्यशूरः वर्तते।
(ख) कथायां वर्णिते जन्मनि बोधिसत्त्वः कः बभूव ?
उत्तरम् : कथायां वर्णिते जन्मनि बोधिसत्त्वः मत्स्याधिपतिः बभूव।
(ग) महासत्त्वः मीनानां कैः परमनुग्रहम् अकरोत् ?
उत्तरम् : महासत्त्वः मीनानाम् स्वकीय सत्य तपोबलेन परमनुग्रहम् अकरोत्।
(घ) सरः लघुपल्वलमिव कथमभवत् ?
उत्तरम् : उपगते निदाघकाले दिनकरकिरणैः अभितप्तया धरित्र्या, ज्वालानुगतेनेव मारुतेन पिपासा वशादिव प्रत्यहम् आपीयमानः तद् सरः लघुपल्वलमिवाभवत्। 
(ङ) बोधिसत्त्वः किमर्थं चिन्तामकरोत् ?
उत्तरम् : विषाददैन्यवशगं मीनकुलमवेक्ष्य बोधिसत्त्वः करुणायमानः चिन्तामापेदे।
(च) तोयं प्रतिदिनं केन स्पर्धमानं क्षीयते स्म?
उत्तरम् : तोयं आयुषा स्पर्धमानभिव प्रत्यहं क्षीयते स्म।
(छ) आकाशे अकाला अपि के प्रादुरभवन् ?  
उत्तरम् : आकाशे अकाला अपि कालमेघाः प्रादुर्भवन्।
(ज) कया आशङ्कया बोधिसत्त्वः पुनः पुनः पर्जन्यं प्रार्थितवान्?
उत्तरम् : वर्षानिवृत्ति आशंकया बोधिसत्त्वः पुनः पुनः पर्जन्यं प्रार्थितवान्।
(झ) शक्रः केषां राजा आसीत्?
उत्तरम् : शक्रः देवानाम् राजा आसीत्।
(ञ) अस्माभिः कुत्र प्रयतितव्यम् ?  
उत्तरम् : अस्माभिः शीलविशुद्धौ प्रयतितव्यम्। 
2.रिक्त स्थानानि पूरयत- 
(क) बोधिसत्त्वः परहितसुखसाधने.......अभवत्। 
उत्तरम् :  व्याप्तः
(ख).तत्रस्थिताः मीनाः जलाभावात् .................. इव संजाताः। 
उत्तरम् :मृतप्रायाः 
(ग)विषाददैन्यवशगं मीनकुलमवेक्ष्य बोधिसत्त्वः करुणायमानम् .................... आपेदे। 
उत्तरम् : चिन्ताम्
(घ)स महात्मा स्वकीय सत्यतपोबलमेव तेषां..................अमन्यत।
उत्तरम् : रक्षणोपायम्  
सप्रसङ्ग व्याख्या कार्या- 
(ङ) तत्...............................तोयसमृद्धिमवाप।
उत्तरम् :सरः
3.सप्रसङ्ग व्याख्या कार्याः
 (क)बहुषु जन्मान्तरेषु परोपकार-अभ्यासवशात् तत्रस्थः अपि परहितसुखसाधने व्यापृतः अभवत्। 
उत्तरम् : 
प्रसङ्गः - पंक्तिरियं अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'परोपकाराय सतां विभूतयः' इति पाठात् उद्धृतः। मूलतः अयं पाठः आर्यशूर विरचितात् 'जातकमाला' इति कथाग्रन्थात् संकलितः। अत्र लेखकः बोधिसत्त्वस्य परहित दयार्द्रतां वर्णयति 
(यह पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक के 'परोपकाराय सतां विभूतयः' पाठ से ली गई है। मूलतः यह पाठ आर्यशूर विरचित 'जातकमाला' कथाग्रन्थ से संकलित किया गया है। यहाँ लेखक बोधिसत्त्व की परहित दयार्द्रता का वर्णन करता है -
(अनेक पूर्व जन्मों में परहित कार्य अनवरत रूप से सम्पादित करने के कारण अभ्यस्त हुये ये बोधिसत्त्व, उस जन्म में अर्थात् मत्स्याधिपति के जन्म में रहकर परोपकाररत हो गये तथा उनके (मछलियों के) सुख साधन जुटने में संलग्न हो गये।) 
(ख)अस्मद् व्यसनसकृष्टाः समायान्ति नो द्विषः।। 
उत्तरम् : 
प्रसङ्गः - पंक्तिरियं अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'परोपकाराय सतां विभूतयः' पाठात् अवतरितः। मूलतोऽयं पाठः आर्यशूर विरचितात् 'जातकमाला' इति कथाग्रन्थात् संकलितः। अस्मिन् वाक्ये बोधिसत्त्वः कथयति यत् मानवः स्वकर्मणां फलं अवश्यमेव भुङ्क्ते। 
(यह पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक के 'परोपकाराय सतां विभूतयः' पाठ से ली गई है। मूल रूप से यह पाठ आर्यशूर विरचित 'जातकमाला' कथाग्रन्थ से संकलित है। इस वाक्य में बोधिसत्व कहता है कि मनुष्य अपने कर्मों के फल अवश्य भोगता है।) 
(हमारे पापकर्मों से ही खींचे हुये हमारे शत्रु इति भीति आदि (दु:ख) सभी ओर से आते हैं। अर्थात् मानव अपने किये हुये कर्मों का फल अवश्य भोगता है।)
 (ग)शीलवताम् इह एव कल्याणा: अभिप्रायाः वृद्धिम् आप्नुवन्ति। 
उत्तरम् : 
प्रसङ्गः - इयं पंक्तिः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'परोपकाराय सतां विभूतयः' पाठात् अवतरिता। अस्यां पंक्तौ बोधिसत्वः मानवेभ्यः उपदिशति 
(यह पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक के 'परोपकाराय सतां विभूतयः' पाठ से ली गई है। इस पंक्ति में बोधिसत्त्व मनुष्यों को उपदेश दे रहे हैं।) 
(जो मनुष्य चरित्रवान् हैं, सदाचारशील हैं, वे इस संसार में ही कल्याणकारी मनोरथों की वृद्धि को प्राप्त करते हैं। भाव यह है कि मानव अपने कर्मों का फल यहीं पर इसी जन्म में तथा इसी लोक में प्राप्त करता है।) 
4.अधोलिखित शब्दानां ल्यबन्तेषु शतृ प्रत्ययान्तेषु शानच प्रत्ययान्तेषु च विभज्य लिखत 
आपीयमानम्, अवेक्ष्य, स्पर्धमानम्, समापीड्यमानम्, नि:श्वस्य, रत्नायमानानि, अभिगम्य, संराधयन्, विमृशन्, समुल्लोकयन्।
उत्तरम् : 
ल्यबन्त -अवेक्ष्य = अव + ईक्ष् + ल्यप् निःश्वस्य 
निः + श्वस् + ल्यप् 
अभिगम्य = अभि + गम् + ल्यप्। 
संराधयन् = सम् + राध् + शतृ 
विमृशन् = वि + मृश् + शतृ 
समुल्लोकयन् = सम् + उत् + लोक् + शतृ 
आपीयमानम् = आ + पा + शानच्। 
स्पर्धमानम् = स्पर्ध + शानच्। 
समापीड्यमानम् = सम् + आङ् + पीड् + शानच्। 
रत्नायमानानि = रत्नाय + शानच्। 
5.विशेषणानि विशेष्यै सह योजयत 
(क) सरसि - इष्टानाम् 
(ख) धरण्या - कदम्बकुसुमभारेण 
(ग) अपत्यानाम् - हंसचक्रवाकादि शोभिते 
(घ) नवसलिलेन - अभितप्तया 
(ङ) पक्षिणः - ज्वालानुगतेन
(च) बोधिसत्त्वः - तत्रस्थाः 
(छ) मीनाः - सलिलतीरवासिनः 
(ज) मारुतेन - करुणायमानः 
उत्तरम् :  
(क) सरसि - हंसचक्रवाकादि शोभिते 
(ख) धरण्या - अभितप्तया 
(ग) अपत्यानाम् - इष्टानाम् 
(घ) नवसलिलेन - कदम्बकुसुमगौरेण 
(ङ) पक्षिणः - सलिलतीरवासिनः 
(च) बोधिसत्त्वः - करुणायमानः 
(छ) मीनाः - तत्रस्थाः 
(ज) मारुतेन - ज्वालानुगतेन 
6.अधोलिखित पदानि संस्कृत वाक्येषु प्रयुध्वम् - 
कस्मिंश्चित्, भाग्यवैकल्यात्, आपीयमानम्, लक्ष्यते, विमृशन्, अभिगम्य, प्रयतितव्यम्। 
उत्तरम् : 
 कस्मिंश्चित् वने एकः सिंहः वसति स्म।
 प्राणिनाम् भाग्यवैकल्यात् देवो न ववर्ष।
 प्रत्यहम् आपीयमानम् तत् सरः शुष्कमभवत्। 
अस्मात् स्थानात् तत् चित्रं न लक्ष्यते। 
अस्मिन् विषये विमृशन् सः सुप्तः। 
देवराजः साक्षात् अभिगम्य बोधिसत्त्वं उवाच। 
अस्माभिः अस्मिन् विषये प्रयतितव्यम्।
प्रश्न: 4. 
शतृ प्रत्ययान्त -
शानच् प्रत्ययान्त -
प्रश्नः 5. 
प्रश्नः 6. 
प्रश्नः 7. पर्यायवाचकं लिखत 
मीनः, पक्षी, प्रत्यहम्, आपद्, पजेन्यः।
उत्तरम् :  
शब्द - पर्याय 
  • मीनः = मत्स्यः, झषः। 
  • पक्षी = खगः, शकुन्तः। 
  • प्रत्यहम् = प्रतिदिनम्। 
  • आपद् = विपद्, विपत्तिः। 
  • पर्जन्यः = मेघः, वारिधरः, वारिदः। 

प्रश्नः 8. 
अधोलिखित वाक्येषु उपमानानि योजयत -
(क) .......... इव मीनानां परमानुग्रहं चकार। 
(ख) ........... इव तोयं प्रत्यहं क्षीयते। 
(ग) ............. इव इमे पयोदाः क्षरन्ति। 
(घ) .......... इव नवसलिलेन सरः प जातम्। 
(ङ) सरः ग्रीष्मकाले ............... इव सञ्जातम्। 
उत्तरम् : 
(क) इष्टानाम् 
(ख) आयुषा 
(ग) आवर्जिताः कलशाः 
(घ) कदम्बकुसुमगौरेण 

(ङ) लघुपल्वलम्।
संस्कृतभाषया उत्तरम् दीयताम् -
प्रश्न: 1. जातककथाः मूलतः कस्यां भाषायां सन्ति? 
उत्तरम् : जातककथा: मूलतः पालिभाषायां सन्ति। 
प्रश्नः 2. 'परोपकाराय सतां विभूतयः पाठः कस्य जातकस्य संक्षेपः वर्तते? 
उत्तरम् :'परोपकाराय सतां विभूतयः पाठः 'मत्स्यजातकस्य' संक्षेपः वर्तते। 

प्रश्न: 3. 
बोधिसत्त्वस्य जीवनं कीदृशं अस्ति? 
उत्तरम् : 
बोधिसत्त्वस्य जीवनं अलौकिकं आदर्शश्चास्ति। 

प्रश्न: 4. 
सत्त्वानां भाग्यवैकल्यात् किं अभवत्? 
उत्तरम् : 
सत्त्वानां भाग्यवैकल्यात् प्रमादाच्च देवो सम्यक् न ववर्ष। 

प्रश्नः 5. 
जलाभावात् तत्रस्थिताः मीनाः कथं संजाता? 
उत्तरम् : 
जलाभावात् तत्रस्थिताः मीनाः मृतप्रायाः इव संजाताः। 

प्रश्नः 6.
सः महात्मा तेषां मीनानां रक्षणोपायं किं अमन्यत? 
उत्तरम् : 
सः महात्मा तेषां मीनानां रक्षणोपायं स्वकीयसत्यतपोबलमेव अमन्यत। 

प्रश्नः 7. 
सत्त्वगुणैः परिपूर्णं आचरणं कान् अपि वशीकर्तुम् शक्यते? 
उत्तरम् : 
सत्त्वगुणैः परिपूर्णं आचरणं देवान् अपि वशीकर्तुं शक्यते। 

प्रश्न: 8. 
बोधिसत्त्वस्य प्रार्थनां श्रुत्वा तत्र को आगतवान्? 
उत्तरम् : 
बोधिसत्त्वस्य प्रार्थनां श्रुत्वा तत्र देवानां इन्द्रः शक्रः आगतवान्। 

प्रश्नः 9. 
प्रियवचनैः संराध्य तत्रैव को अन्तर्दधे? 
उत्तरम् : 
प्रियवचनैः संराध्य तत्रैव इन्द्रः अन्तर्दधे। 

प्रश्न: 10.
केषां इह एव कल्याणा: अभिप्रायाः वृद्धिम् आप्नुवन्ति? 
उत्तरम् : 
शीलवताम् इह एव कल्याणा: अभिप्रायाः वृद्धिम् आप्नुवन्ति। 

प्रश्न: 11. 
विषाद दैन्यवशगं मीनकुलमवेक्ष्य कः चिन्तामापेदे? 
उत्तरम् : 
विषाद दैन्यवशगं मीनकुलमवेक्ष्य बोधिसत्त्वः करुणायमानः चिन्तामापेदे। 

प्रश्न: 12. 
संस्कृतसाहित्ये कासां विशेषमहत्त्वमस्ति? 
उत्तरम् : 
संस्कृतसाहित्ये जातककथानां विशेषमहत्त्वमस्ति। 


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जयतु संस्कृतम्।