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मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

भू-विभागाः

 भू-विभागाः

        जेसीईआरटी तथा एनसीईआरटी के कक्षा-12 के संस्कृत पाठ्यपुस्तक-शाश्वती भाग 2 के  अष्टम: पाठ: भू-विभागाः  का शब्दार्थ सहित हिन्दी अनुवाद एवं भावार्थ तथा उस पर आधारित प्रश्नोत्तर सीबीएसई सत्र-2022-2023 के लिए यहाँ दिए गए हैं।यहाँ दिए गए हिंदी अनुवाद तथा भावार्थ की मदद से विद्यार्थी पूरे पाठ को आसानी से समझकर अभ्यास के प्रश्नों को स्वयं कर सकते हैं।                                                      प्रस्तुत पाठ मुगलसम्राट शाहजहाँ के विद्वान् पुत्र दाराशिकोह द्वारा विरचित ग्रन्थ 'समुद्रसङ्गमः' से संकलित किया गया है। दाराशिकोह संस्कृत तथा अरबी भाषा के तत्कालीन विद्वानों में अग्रगण्य थे। 'समुद्रसङ्गमः' ग्रन्थ में 'पृथिवी निरूपण' के अन्तर्गत उन्होंने पर्वतों, द्वीपों, समुद्रों आदि का विशिष्ट शैली में वर्णन किया है। उसी वर्णन के अंश यहाँ “भू-विभागाः' शीर्षक के अन्तर्गत प्रस्तुत किये गये हैं। दाराशिकोह मुगलसम्राट शाहजहाँ के सबसे बड़े पुत्र थे। उनका जीवनकाल 1615 ई० से 1659 ई. तक है। शाहजहाँ उनको राजपद देना चाहते थे पर उत्तराधिकार के संघर्ष में उनके भाई औरंगजेब ने निर्ममता से उनकी हत्या कर दी। दाराशिकोह ने अपने समय के श्रेष्ठ संस्कृत पण्डितों, ज्ञानियों और सूफी सन्तों की सत्संगति में वेदान्त और इस्लाम के दर्शन का गहन अध्ययन किया और उन्होंने फारसी और संस्कृत में इन दोनों दर्शनों की समान विचारधारा को लेकर विपुल साहित्य लिखा। फारसी में उनके ग्रन्थ हैं- सारीनतुल् औलिया, सकीनतुल् औलिया, हसनातुल् आरफीन (सूफी सन्तों की जीवनियाँ), तरीकतुल् हकीकत, रिसाल-ए-हकनुमा, आलमे नासूत, आलमे मलकूत (सूफी दर्शन के प्रतिपादक ग्रन्थ), सिर्र-ए-अकबर (उपनिषदों का अनुवाद) उनके फारसी ग्रन्थ हैं। श्रीमद्भगवद्गीता और योगवासिष्ठ के भी फारसी भाषा में उन्होंने अनुवाद किये। 'मज्म-उल्-बहरैन्' फारसी में उनकी अमर कृति है, जिसमें उन्होंने इस्लाम और वेदान्त की अवधारणाओं में मूलभूत समानताएँ बतलायी हैं। इसी ग्रन्थ को दाराशिकोह ने 'समुद्रसङ्गमः' नाम से संस्कृत में लिखा।

अथ पृथिवीनिरूपणम्-पृथिव्याः सप्तभेदाः। ते च भेदाः सप्तपुटान्युच्यन्ते। तानि च पुटानि-अतल-वितल-सुतल-तलातल-रसातल-पातालाख्यानि। अस्मन्मतेऽपि सप्तभेदाः। यथाऽस्मद्वेदे श्रूयते परमेश्वरो यथा सप्तगगनानि तद्वत् पृथिव्याः सप्तविभागान् कृतवान्।

अब पृथिवी का निरूपण किया जाता है-पृथिवी के सात भेद हैं और उन्हें 'सप्तपुट' कहा जाता है। उन पुटों के नाम हैं-(1) अतल, (2) वितल, (3) सुतल, (4) प्रतल, (5) तलातल, (6) रसातल, (7) पाताल। हमारे मत में भी सात भेद हैं। जैसे कि हमारे वेद (कुरान शरीफ) में सुना जाता है; जैसे परमेश्वर ने सात प्रकार के आकाश बनाए हैं उसी प्रकार पृथिवी के सात भेद किए गए हैं। .. 

अथ पृथिव्याः विभागनिरूपणं यत्र लोकास्तिष्ठन्ति। तस्याः दार्शनिकैः सप्तधा विभागः कृतस्तान् विभागान् सप्त अअक्लिम इति वदन्ति। पौराणिकास्तु सप्त द्वीपानि वदन्ति। एतान् खण्डान् पलाण्डुत्वग्वदुपर्यधो भावेन न ज्ञायन्ते, “किन्तु' निःश्रेणी सोपानवज्जानन्ति।

  अब पृथिवी के विभागों का निरूपण किया जाता है, जहाँ लोग रहते हैं। उस पृथिवी के दार्शनिकों ने सात विभाग किए हैं, उन विभागों को सात अअक्लिम = अकूलीन = खण्ड कहते हैं। पौराणिक उन्हें सात द्वीप कहते हैं। इन खण्डों को प्याज के छिलके की तरह ऊपर-नीचे के भाव से नहीं समझना चाहिए, परन्तु सीढ़ी में लगने वाले काष्ठ-दण्ड की भाँति समझ सकते हैं। 

सप्त पर्वतान् सप्त कुलाचलान् वदन्ति, तेषां पर्वतानां नामान्येतानि प्रथमः सुमेरुमध्ये, द्वितीयो हिमवान्, तृतीयो हेमकूटः, चतुर्थो निषधः एते सुमेरोरुत्तरतः। माल्यवान् पूर्वस्यां, गन्धमादनः पश्चिमायां कैलासश्च मर्यादापर्वतेभ्योऽतिरिक्तः। यथाऽस्मद्वेदे श्रूयते- “अस्माभिः पर्वताः शंकवः कृताः।

सात पर्वतों को सात कुलाचलन कहते हैं। उन पर्वतों के नाम ये हैं- पहला सुमेरु पर्वत (जो) मध्य में है। दूसरा हिमालय, तीसरा हेमकूट, चौथा निषध-ये सुमेरु पर्वत की उत्तर दिशा में हैं। (पाँचवाँ) मूल्यवान् पूर्व दिशा में (छठा) गन्धमादन पश्चिम दिशा में और (सातवाँ) कैलास पर्वत मर्यादा पर्वतों से अलग है। जैसा हमारे वेद (कुरान शरीफ) में सुना जाता है-"हमने पर्वतों को शकु (कीलें) बना दिया।"

  एतेषां सप्तद्वीपानां प्रत्येकमावेष्टनरूपाः सप्तसमुद्राः। लवणो जम्बुद्वीपस्यावरकः। इक्षुरसः प्लक्षद्वीपस्य दधिसमुद्रः क्रौञ्चद्वीपस्य, क्षीरसमुद्रः शाकद्वीपस्य, स्वादुजलसमुद्रः पुष्करद्वीपस्यावरकः इति। समुद्राः सप्त अस्मद्वेदेऽपि प्रकटाः भवन्ति।

इन सात द्वीपों में प्रत्येक द्वीप के आवरण रूप सात समुद्र हैं। लवण (समुद्र) जम्बुद्वीप का आवरण है। इक्षुरस (सुरा) प्लक्षद्वीप का, दधिसमुद्र क्रौञ्चद्वीप का, क्षीर सागर शाकद्वीप का (और) स्वादु जल समुद्र पुष्कर द्वीप का आवरक है। हमारे वेद (कुरान शरीफ़) में भी सात समुद्र प्रकट होते हैं। 

वृक्षाः लेखनी भवेयुः समुद्रोऽपि मसी भवेत्, परं भगवद्वाक्यानि समाप्तानि न भवन्ति। प्रतिद्वीपं प्रतिपर्वतं प्रतिसमुद्र नानाजातयोऽनन्ता जन्तवस्तिष्ठन्ति। या पृथिवी ये पर्वताः ये समुद्रा सर्वाभ्यः पृथिवीभ्यः सर्वेभ्यः पर्वतेभ्यः सर्वेभ्यः समुद्रेभ्यः उपरि तिष्ठन्ति तान् ‘स्वर्ग' इति वदन्ति। या पृथिवी ये पर्वताः ये समुद्राः सर्वाभ्यः पृथिवीभ्यः सर्वेभ्यः पर्वतेभ्यः सर्वेभ्यः समुद्रेभ्योऽधो भागे तिष्ठन्ति स 'नरक' इति वदन्ति। निश्चितं किल सिधैः स्वर्गनरकादिकं सर्वं ब्रह्माण्डान्न किञ्चिबहिरस्तीति। ते सप्तगगनाश्रिताः सप्त ग्रहाः स्वर्गं परितो मेखलावत् परिभ्रमन्तीति वदन्ति; न स्वर्गस्योपरि। अथ स्वर्गस्य यदि 911 मन आकाशं जानन्ति अस्मदीयास्तमर्श इति वदन्ति। स्वर्गभूमिं कुर्शीति वदन्ति।"

सभी वृक्ष लेखनी बन जाएँ, समुद्र स्याही बन जाए, परन्तु भगवद्-वचन समाप्त नहीं होते (अर्थात् भगवान् की महिमा लिखने के लिए ये सब अपर्याप्त ही होते हैं)। प्रत्येक द्वीप में प्रत्येक पर्वत पर, प्रत्येक समुद्र में विविध जाति वाले अनन्त प्राणी रहते हैं। जो पृथिवी, जो पर्वत, जो समुद्र सभी पृथिवियों से, सभी पर्वतों से, सभी समुद्रों से ऊपर विद्यमान हैं उन्हें 'स्वर्ग' कहते हैं। जो पृथिवी, जो पर्वत, जो समुद्र सभी पृथिवियों से, सभी पर्वतों से तथा समुद्रों से निचले भाग में स्थित हैं उन्हें 'नरक' कहते हैं। सिद्ध पुरुषों ने निश्चित मत बनाया है कि स्वर्ग-नरक आदि (सब यहाँ पर ही हैं) ब्रहमाण्ड से कछ भी बाहर नहीं है। सात आकाशों के आश्रित रहने वाले (जो) सात ग्रह हैं, वे स्वर्ग के चारों ओर मेखला की भाँति भ्रमण करते हैं, स्वर्ग के ऊपर नहीं। अब यदि स्वर्ग का मन आकाश को समझते हैं (तो) हमारे लोग उसे 'अर्श' कहते हैं। स्वर्गभूमि को 'कुर्शी' कहते हैं। 

प्रश्न 1. 
संस्कृतेन उत्तरं दीयताम् 
(क) पृथिव्याः कति भेदाः ? 
(ख) पृथिव्याः सप्तपुटानां नामानि कानि सन्ति ?
(ग) पर्वताः कति सन्ति ? 
(घ) समुद्राः कति सन्ति ? 
(ङ) दधिसमुद्रः कस्य द्वीपस्यावरकः ? 
(च) 'अर्श' इति पदं कस्मै प्रयुक्तम् ? 
(छ) 'कुर्शी' इति पदं कस्मिन्नर्थे प्रयुक्तम् ? 
(ज) 'अस्मद्वेद' इति शब्द: दाराशिकोहेन कस्य ग्रन्थस्य कृते प्रयुक्तः ? 
उत्तरम् :
(क) पृथिव्याः सप्त भेदाः ? 
(ख) पृथिव्याः सप्तपुटानां नामानि सन्ति 1. अतल: 2. वितलः, 3. सुतलः, 4. प्रतलः, 5. तलातलः, 6. रसातल, 7. पातालः। 
(ग) पर्वताः सप्त सन्ति ?
(घ) समुद्राः सप्त सन्ति ? 
(ङ) दधिसमुद्रः क्रौञ्च-द्वीपस्यावरकः ? 
(च) 'अर्श' इति पदम् आकाशाय प्रयुक्तम् ? 
(छ) 'कुर्शी' इति पदं परमेश्वस्य सिंहासने अर्थे प्रयुक्तम् ? 
(ज) 'अस्मद्वेद' इति शब्द: दाराशिकोहेन 'कुरानशरीफ़' ग्रन्थस्य कृते प्रयुक्तः ? 

प्रश्न 2. 
हिन्दीभाषया आशयं लिखत - 
एतान् खण्डान् पलाण्डुत्वग्वदुपर्यधोभावेन न ज्ञायन्ते, किन्तु निःश्रेणी-सोपानवजानन्ति। सप्तपर्वतान् सप्तकुलाचलान् वदन्ति, तेषां पर्वतानां नामान्येतानि-प्रथमः सुमेरुमध्ये, द्वितीयो हिमवान्, तृतीयो हेमकूटः, चतुर्थो निषधः एते सुमेरोरुत्तरतः। 

प्रसंग: - प्रस्तुत गद्यांश 'शाश्वती-द्वितीयो भागः' के 'भू-विभागाः' नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ दाराशिकोह रा रचित 'समुद्रसङ्गमः' नामक ग्रन्थ से लिया गया है। प्रस्तुत गद्यांश में भूलोक के सात विभागों तथा सप्त पर्वतों की चर्चा की है। 

व्याख्या - पृथिवी जिस पर सब लोगों का निवास है, दार्शनिकों ने उसके सात खण्ड माने हैं, इन्हें सप्तद्वीप भी कहा जाता है। ये खण्ड प्याज के छिलकों की तरह एक के नीचे एक-एक के नीचे एक नहीं होते, अपितु जैसे सीढ़ी में अलग-अलग समान दूरी पर लकड़ी/बाँस में डण्डे लगे होते हैं उसी प्रकार इन सप्तद्वीपों की स्थिति भी समझनी चाहिए। सप्तपर्वतों को 'सप्तकुलाचल' नाम से भी जाना जाता है। इन सात पर्वतों के नाम और उनकी स्थिति इस प्रकार है। पृथिवी के मध्य में सुमेरु नामक पहला पर्वत है। दूसरा हिमालय, तीसरा हेमकूट और चौथा निषध नामक पर्वत है ये तीनों सुमेरु पर्वत की उत्तर दिशा में स्थित हैं। इन सबके अतिरिक्त माल्यवान्, गन्धमादन तथा कैलास पर्वत हैं। इन्हें जोड़कर ही सात समुद्रों की संख्या पूर्ण होती है। प्रस्तुत गद्यांश में इन तीनों का उल्लेख नहीं है।

प्रश्न 3. 
अधोलिखितानां पदानां स्वसंस्कृतवाक्येषु प्रयोगं कुरुत 
पुटानि, कृतवान्स, आवेष्टनरूपा, सर्वेभ्यः ब्रह्माण्डात्, परिभ्रमन्ति। 
उत्तरम् : 
(वाक्यप्रयोगः) 
(क) पुटानि-पृथिव्याः सप्त विभागाः ‘सप्तपुटानि' अपि कथ्यन्ते। 
(ख) कृतवान्–दाराशिकोहः श्रीमद्भगवद्गीतायाः अनुवादं फारसीभाषायां कृतवान्। 
(ग) आवेष्टनरूपा:-सप्तद्वीपाः सप्तसमुद्राणाम् आवेष्टनरूपाः सन्ति। 
(घ) सर्वेभ्य:-सर्वेभ्यः शिक्षकेभ्यः नमः। 
(ङ) ब्रहमाण्डात-स्वर्गनरकादिकं ब्रहमाण्डात बहिः नास्ति। 
(च) परिभ्रमन्ति-सप्त ग्रहाः गगने परिभ्रमन्ति। 

प्रश्न 4. 
अधोलिखितानां पदानां सन्धिच्छेदं कुरुत - 
पुटान्युच्यन्ते, अस्मन्मते, पलाण्डुत्वग्वदुपर्यधोभावेन, सोपानवजानन्ति, सुमेरोरुत्तरतः, समुद्रोऽपि, किञ्चिद्वहिरस्तीति, अस्मदीयास्तमर्श। 
उत्तरम् : 
(क) पुटान्युच्यन्ते = पुटानि + उच्यन्ते। 
(ख) अस्मन्यते = अस्मत् + मते। 
(ग) पलाण्डुत्वग्वदुपर्यधोभावेन = पलाण्डुत्वग्वत् + उपरि + अधः + भावेन। 
(घ) सोपानवज्जानन्ति = सोपानवत् + जानन्ति। 
(ङ) सुमेरोरुत्तरतः = सुमेरोः + उत् + तरतः। 
(च) समुद्रोऽपि = समुद्रः + अपि।
(छ) किञ्चिदहिरस्तीति = किञ्चित् + बहिः + अस्ति + इति। 

5. अधोलिखितानां पदानां पर्यायवाचिपदानि लिखत -  
पृथिवी, पर्वतः, समुद्रः, गगनम्, स्वर्ग: 
उत्तरम् : 
(पर्यायवाचिपदानि) 
(क) पृथिवी = भूमिः, भू, पृथ्वी, धरणी, धरा। 
(ख) पर्वतः = गिरिः, अचलः, भूधरः, धरणीधरः। 
(ग) समुद्रः = सागरः, जलधिः, वारिधिः, रत्नाकरः। 
(घ) गगनम् = आकाशः, खः, क्षितिजः, नभः। 
(ङ) स्वर्गः = दिवम्, 'अर्श' इति फारसीभाषायाम्। 

6. रिक्तस्थानानाम् पूर्तिः विधेया - 
(क) पौराणिकास्तु ............... द्वीपानि वदन्ति। 
(ख) सप्त ............... सप्त कुलाचलान् वदन्ति। 
(ग) ............. जम्बुद्वीपस्यावरकः। 
(घ) स्वर्गभूमिं ............... वदन्ति। 
उत्तरम् :
(क) पौराणिकास्तु सप्त द्वीपानि वदन्ति। 
(ख) सप्त पर्वतान् सप्त कुलाचलान् वदन्ति। 
(ग) लवण: जम्बुद्वीपस्यावरकः। 
(घ) स्वर्गभूमिम्: कुर्शी इति वदन्ति। 

बहुविकल्पीया प्रश्नाः

I. पुस्तकानुसारं समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत - 

(i) पृथिव्याः कति भेदा: ? 
(A) अष्ट 
(B) सप्त 
(C) षड् 
(D) नव। 
उत्तरम् :
(B) सप्त

(ii) पर्वता: कति सन्ति ? 
(A) नव 
(B) सहस्रम् 
(C) अष्ट 
(D) सप्त।
उत्तरम् :
(A) सप्त

(iii) समुद्राः कति सन्ति ? 
(A) सप्त 
(B) अष्ट 
(C) नव 
(D) चत्वारः। 
उत्तरम् :
(D) चत्वारः। 

(iv) दधिसमुद्रः कस्य द्वीपस्यावरक: ? 
(A) सुमेरुद्वीपस्य 
(B) मालद्वीपस्य 
(C) सिंहद्वीपस्य 
(D) क्रौञ्चद्वीपस्य। 
उत्तरम् :
(A) सुमेरुद्वीपस्य 

(v) 'अर्श' इति पदं कस्मै प्रयुक्तम् ? 

(A) आकाशाय 
(B) द्वीपाय 
(C) समुद्राय 
(D) पर्वताय। 
उत्तरम् :
(A) आकाशाय 

II. रेखाङ्कितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत - 

(i) परमेश्वरः पृथिव्याः सप्तविभागान् कृतवान्। 
(A) किम् 
(B) कः 
(C) कस्याः 
(D) काः। 
उत्तरम् :
(C) कस्याः

(ii) पौराणिकाः सप्त द्वीपानि वदन्ति। 
(A) काम् 
(B) के 
(C) कः 
(D) कति। 
उत्तरम् :
(B) के 

(iii) सप्तद्वीपानाम् आवेष्टनरूपाः सप्त समुद्राः। 
(A) कः 
(B) कस्मात् 
(C) कति 
(D) केषाम्।
उत्तरम् :
(D) केषाम्।

(iv) सप्त ग्रहाः स्वर्गं परितः मेखलावत् परिभ्रमन्ति। 
(A) कथम् 
(B) कति 
(C) केन 
(D) कया। 
उत्तरम् :
(A) कथम् 


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जयतु संस्कृतम्।