expr:class='"loading" + data:blog.mobileClass'>

शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

संज्ञा प्रकरणम्- माहेश्वर सूत्र

 संज्ञा प्रकरणम्- माहेश्वर सूत्र   

       नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नव पञ्चवारम्।
      उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्।।
 माहेश्वर सूत्र  भगवान् महेश्वर शिव की कृपा से प्राप्त होने के कारण महेश्वर सूत्र के नाम से जाना जाता है। अष्टाध्यायी के प्रणेता महर्षि पाणिनि एक बार अपने मित्र कात्यायन से शास्त्रार्थ में पराजित हो गये। शास्त्रार्थ में पराजित होकर वे तीर्थराज प्रयाग में जाकर के अक्षय वट के निकट कठिन तपस्या करने लगे। वहीं सनकादि मुनि भी तपस्या कर रहे थे ।उनकी तपस्या से आशुतोष भगवान् शंकर प्रसन्न हुए। वे प्रकट होकर तांडव नृत्य करते हुए 14 बार अपने डमरू को बजाया, इससे सनकादि मुनियों के साथ महर्षि पाणिनि का भी मनोरथ सिद्ध हुआ।भगवान शंकर के डमरु के इन ध्वनियों से माहेश्वर सूत्र की उत्पत्ति हुई।
          माहेश्वर सूत्र के अंतर्गत 14 लघु सूत्र हैं-    
          1.अइउण्

          2.ऋलृक्

          3.एओङ्

          4.ऐऔच्

          5.हयवरट्

          6.लण्

          7.ञमङणनम्

          8.झभञ्

          9.घढधष्

          10.जबगडदश्

         11.खफछठथचटतव्

         12.कपय्

         13.शषसर्

         14.हल्

          यह सूत्र आगे चलकर विश्व की दो प्राचीनतम भाषाओं संस्कृत और तमिल का आधार बना। इस सूत्र में प्रयुक्त वर्णों का प्रयोग करते हुए प्रत्याहार सूत्र का निर्माण हुआ।प्रत्याहार शब्द का अर्थ होता है-संक्षिप्त। इन 14 सूत्रों के द्वारा 281 प्रत्याहार सूत्रों का निर्माण कर सकते हैं, परंतु व्याकरण शास्त्र में 42 प्रत्याहार सूत्र प्रयुक्त हैं। इन सूत्रों के अंतिम वर्ण इत् कहलाते हैं ।उच्चारण और संक्षिप्त करने की सुविधा के लिए इन सूत्रों के अंत में एक इत् वर्ण दिए गए हैं। प्रत्याहार सूत्रों के वर्णों की गणना में इनका ग्रहण नहीं होता है। जैसे- अक् प्रत्याहार में 2 सूत्र हैं- 1.अइउण् 2.ऋलृक्।यहां प्रथम सूत्र का अंतिम  वर्ण 'ण्' है जो कि इत् संज्ञक है तथा द्वितीय सत्र का अंतिम वर्ण 'क्'  है जो कि  इत् संज्ञक है।  इत् संज्ञक होने के कारण इन दोनों वर्णों की गणना प्रत्याहार में  नहीं किया जाएगा। अतः अक् प्रत्याहार में वर्ण होते हैं-अ,इ,उ,ऋ,लृ।इसी प्रकार से जष् प्रत्याहार में 2 सूत्र हैं-1.झभञ् 2.घढधष्। यहां प्रथम सूत्र का अंतिम वर्ण है-ञ्'' जो कि इत् संज्ञक है तथा द्वितीय सत्र का अंतिम वर्णः 'ष्'  है जो कि इत् संज्ञक है।  इत् संज्ञक होने के कारण यहां भी इन दोनों वर्णों  की गणना प्रत्याहार में नहीं होगी।इस प्रकार जष् प्रत्याहार में वर्ण हैं-झ,भ,घ,ढ,ध। इसी प्रकार से अन्य प्रत्याहार सूत्र होते हैं।

         कुछ अन्य प्रमुख प्रत्याहार सूत्र हैं-

       *अट्-अ,इ,उ,ऋ,लृ,ए,ओ,ऐ,औ,ह,य,व,र।

       *अच्-अ,इ,उ,ऋ,लृ,ए,ओ,ऐ,औ।

       *अण्-अ,इ,उ,ऋ,लृ,ए,ओ,ऐ,औ,ह,य,व,र,ल।

       *अम्-अ,इ,उ,ऋ,लृ,ए,ओ,ऐ,औ,

              ह,य,व,र,ल,ञ,म,ङ,ण,न।

       *इक्-इ,उ,ऋ,लृ।

       *इच्-,इ,उ,ऋ,लृ,ए,ओ,ऐ,औ।

       *उक्-उ,ऋ,लृ।

        *एङ्-ए,ओ।

       *एच्-ए,ओ,ऐ,औ।

       *खर्-ख,फ,छ,ठ,थ,च,ट,त,क,प,श,ष,स।

       *जश्-ज,ब,ग,ड,द।

       *झल्-झ,भ,घ,ढ,ध,ज,ब,ग,ड,द,ख,फ,

                छ,ठ,थ,च,ट,त,क,प,श,ष,स,ह।

       *झश्-झ,भ,घ,ढ,ध,ज,ब,ग,ड,द।

       *झष्-झ,भ,घ,ढ,ध।

       *हल्-,ह,य,व,र,ल,ञ,म,ङ,ण,न,झ,

              भ,घ,ढ,ध,ज,ब,ग,ड,द,ख,फ,

               छ,ठ,थ,च,ट,त,क,प,श,ष,स,ह।




       

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जयतु संस्कृतम्।