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मंगलवार, 13 मई 2025

संस्कृत प्रचार के लिए पंपलेट एक प्रभावी माध्यम हो सकता है। इसमें स्पष्ट, आकर्षक और भावनात्मक भाषा में जानकारी होनी चाहिए। नीचे एक पंपलेट का प्रारूप/डिज़ाइन-आइडिया दिया गया है, जिसे आप प्रिंट या डिजिटल दोनों रूपों में प्रयोग कर सकते हैं:


संस्कृतम् जीवति चेत् संस्कृतिः जीवति!
(यदि संस्कृत जीवित है तो संस्कृति जीवित है)

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संस्कृत को घर-घर पहुँचाना — सरल, रोचक, वैज्ञानिक और आधुनिक पद्धति से।

आप क्या पाएँगे यहाँ?

  • NCERT संस्कृत पुस्तकों का सरल मार्गदर्शन
  • संस्कृत व्याकरण एवं बोलचाल पाठ्यक्रम
  • संस्कृत साहित्य, दर्शन और शास्त्रों की व्याख्या
  • ऑनलाइन कक्षाएँ, विडियो, लेख, और लघु चलचित्र
  • छात्रों और शिक्षकों के लिए निःशुल्क संसाधन

हमारे विशेष कार्यक्रम:

  • श्लोक सप्ताहम् – हर सप्ताह एक नया श्लोक, अर्थ सहित
  • संस्कृत संवादशाला – संवादों द्वारा संस्कृत सीखें
  • दर्शने दर्शनम् – भारतीय दर्शनों की सरल व्याख्या
  • बाल संस्कृतम् – बच्चों के लिए रोचक सामग्री

आप कैसे जुड़ सकते हैं?

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  • यूट्यूब पर देखें: Sanskrit Darshanam
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संस्कृतं वदतु भारतम्!

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संस्कृतं वदतु भारतम्!

शुक्रवार, 2 मई 2025

संस्कृत साहित्य

 वैदिक साहित्य,दर्शन साहित्य,संस्कृत साहित्य,काव्यशास्त्र,छन्दशास्त्र, पुराणेतिहास,धर्मशास्त्र,अभिलेखशास्त्र, व्याकरण एवं भाषाविज्ञान से सम्बन्धित विषय।

*वैदिक-साहित्य-
(क) वैदिक-साहित्य का सामान्य परिचय-वेदों का काल, मैक्समूलर, ए. वेबर, जैकोबी, बालगंगाधर तिलक, एम. विण्टरनिट्ज, भारतीय परम्परागत विचार,संहिता साहित्य-संवाद सूक्त पुरुरवा-उर्वशी, यम यमी, सरमा-पणि,विश्वामित्र नदी,ब्राह्मण साहित्य,आरण्यक साहित्य,वेदांग शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।  (ख) वैदिक-साहित्य का विशिष्ट अध्ययन-सूक्तों का अध्ययन-ऋग्वेद-अग्नि (1.1),वरुण (1.25).सूर्य (1.25), इन्द्र (2.12)उषस् (3.61),पर्जन्य (5.83).अक्ष (10.34),ज्ञान (10.71),पुरुष(10.90),पुरुष (10.90). हिरण्यगर्भ (10.121),वाक्(10.125),नासदीय (10.129),शुक्लयजुर्वेद-शिवसंकल्प,अध्याय-34 (1-6),प्रजापति,अध्याय 23 (1-5)अथर्ववेद : राष्ट्राभिवर्धनम् (1.29) काल (10.53),पृथिवी (12.1)                                                         
 ब्राह्मण-साहित्य प्रतिपाद्य विषय, विधि एवं उसके प्रकार,अग्रिहोत्र, अग्रिष्टोम, दर्शपूर्णमास यज्ञ, पंचमहायज्ञ, आख्यान,(शुन:शेप वाङ्मनस)।     
 उपनिषद्-साहित्य : उपनिषदों की विषयवस्तु तथा प्रमुख अवधारणाओं का अध्ययन ईश, कठ, केन, बृहदारण्यक,तैत्तिरीय, श्वेताश्वतर।       
 वैदिक व्याकरण,निरुक्त एवं वैदिक व्याख्या पद्धति,ऋक्प्रातिशाख्य: परिभाषाएँ-समानाक्षर, सन्ध्यक्षर, अघोष, सोष्म, स्वरभक्ति, यम, रक्त,संयोग, प्रगृहा, रिफित।                                  
 निरुक्त (अध्याय 1 तथा 2)-चार पद-नाम विचार, आख्यात विचार, उपसर्गों का अर्थ,निपात की कोटियाँ,निरुक्त अध्ययन के प्रयोजन.निर्वचन के सिद्धान्त,शब्दों की व्युत्पत्ति-आचार्य, वीर, हद, गो, समुद्र, वृत्र, आदित्य, उषस्, मेघ,वाक्, उदक, नदी, अश्व, अग्नि, जातवेदस,वैश्वानार,निघण्टु, अध्याय 7 दैवत काण्ड-वैदिक स्वर उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित,वैदिक व्याख्या पद्धति प्राचीन एवं अर्वाचीन।                             
*दर्शन-साहित्य-
(क) प्रमुख भारतीय दर्शनों का सामान्य परिचय,प्रमाणमीमांसा, तत्त्वमीमांसा, आचारमीमांसा (चार्वाक, जैन, बौद्ध, न्याय, सांख्य, योग, वैशेषिक, मीमांसा के सन्दर्भ में)।
(ख) दर्शन-साहित्य का विशिष्ट अध्ययन-
ईश्वरकृष्ण;सांख्यकारिका-सत्कार्यवाद, पुरुषस्वरूप,प्रकृतिस्वरूप, सृष्टिक्रम, प्रत्ययसर्ग, कैवल्य,सदानन्द वेदान्तसार-अनुबन्ध-चतुष्ट्य, अज्ञान,अध्यारोप- अपवाद, लिंगशरीरोत्पत्ति,पंचीकरण, विवर्त, महावाक्य, जीवन्मुक्ति।
अन्नंभट्ट, तर्कसंग्रह / केशव मिश्र; तर्कभाषा-पदार्थ, कारण, प्रमाण (प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान, शब्द),प्रामाण्यवाद, प्रमेय।
लौगाक्षिभास्कर अर्थसंग्रह।
पतंजलि योगसूत्र, (व्यासभाष्य)-चित्तभूमि, चित्तवृत्तियाँ,ईश्वर का स्वरूप, योगाङ्ग, समाधि, कैवल्य।
बादरायण ब्रह्मसूत्र 1.1 (शांकरभाष्य)।
विश्वनाथपंचानन, न्यायसिद्धान्तमुक्तावली।
सर्वदर्शनसंग्रह, जैनमत, बौद्धमत(अनुमानखण्ड)।
 *व्याकरण एवं भाषाविज्ञान-
व्याकरणम्-
(क) सामान्य परिचय-आचार्यों का परिचय,पाणिनि, कात्यायन, पतंजलि, भर्तृहरि, वामनजयादित्य, भट्टोजिदीक्षित, नागेशभट्ट, जैनेन्द्र, कैय्यट, शाकटायन, हेमचन्द्रसूरि सारस्वतव्याकरणकार पाणिनीय शिक्षा।
(ख) व्याकरण का विशिष्ट अध्ययन-
संज्ञा प्रकरणम्-परिभाषाएँ संहिता, संयोग, गुण, वृद्धि, प्रातिपदिक, नदी, घि,उपधा,अपृक्त, गति, पद, विभाषा, सवर्ण, टि, प्रगृह्य,सर्वनामस्थान, भ, सर्वनाम, निष्ठा।
सन्धि प्रकरणम्-सन्धि अच् सन्धि, हल सन्धि, विसर्ग सन्धि(लघुसिद्धान्तकौमुदी के अनुसार) सुबन्त अजन्त राम, सर्व (तीनों लिंगों में), विश्वपा, हरि, त्रि (तीनों लिंगों में), सखि, सुधी, गुरु, पितृ गौ, रमा, मति, नदी, धेनु, मातृ, ज्ञान, वारि, मधु । हलन्त लिहू विश्ववाहू, चतुर् (तीनों लिंगों में), इदम् (तीनों लिंगों में), किम् (तीनों लिंगों में), तत् (तीनों लिंगों में) राजन, मघवन् पथिन्, विद्वस्, अस्मद्, युष्मद्।
समास प्रकरणम्-अव्ययीभाव, तत्पुरुष, बहुव्रीहि, द्वन्द्व, (लघुसिद्धान्तकौमुदी के अनुसार),तद्धित अपत्यार्थक एवं मत्वर्थीय (सिद्धान्तकौमुदी के अनुसार),तिङत भू, एध्, अद्, अस्, हु, दिव्, घुञ, तुद्, तन्, कृ. रु. क्रीञ, चुर। प्रत्ययान्त णिजन्त, सन्नन्त, यडन्त, यङ्लुगन्त; नामधातु,कृदन्त तव्य /तव्यत्, अनीयर् यत् ण्यत् क्यप्: शतृ शानच् क्त्वा क्त क्तवतु तुमुन् णमुल्स्त्री,प्रत्यय लघुसिद्धान्तकौमुदी के अनुसार।
कारक प्रकरणम्- सिद्धान्तकौमुदी के अनुसार,परस्मैपद एवं आत्मनेपद विधान सिद्धान्तकौमुदी के अनुसार,महाभाष्य (पस्पशाहिक)-शब्दपरिभाषा शब्द एवं अर्थ सम्बन्ध, व्याकरण अध्ययन के उद्देश्य,व्याकरण की परिभाषा,साधु शब्द के प्रयोग का परिणाम,व्याकरण पद्धति, वाक्यपदीयम् (ब्रह्मकाण्ड) स्फोट का स्वरूप, शब्दब्रह्म का स्वरूप, शब्द ब्रह्म की शक्तियाँ,स्फोट एवं ध्वनि का सम्बन्ध, शब्द- अर्थ सम्बन्ध, ध्वनि के प्रकार, भाषा के स्तर।
भाषाविज्ञानम्-भाषा की परिभाषा, भाषा का वर्गीकरण (आकृतिमूलक एवं पारिवारिक), ध्वनियों का वर्गीकरण स्पर्श, संघर्षी, अर्धस्वर, स्वर (संस्कृत ध्वनियों के विशेष सन्दर्भ में), मानवीय ध्वनियन्त्र, ध्वनि परिवर्तन के कारण, ध्वनि नियम (ग्रिम, ग्रासमान, वर्नर) अर्थ परिवर्तन की दिशाएँ एवं कारण, वाक्य का लक्षण व भेद, भारोपीय परिवार का सामान्य परिचय, वैदिक संस्कृत एवं लौकिक संस्कृत में अन्तर, भाषा तथा वाक् में अन्तर, भाषा तथा बोली में अन्तर।
*संस्कृत साहित्य,काव्यशास्त्र एवं छन्दपरिचय-
(क)सामान्य परिचय-भास, अश्वघोष, कालिदास, शुद्रक, विशाखदत्त, भारवि, माघ, हर्ष, बाणभट्ट, दण्डी, भवभूति, भट्टनारायण, बिल्हण, श्रीहर्ष, अम्बिकादत्तव्यास पण्डिता क्षमाराव वी. राघवन,श्रीधरमास्कर वर्णेकर काव्यशास्त्र रससम्प्रदाय अलंकारसम्प्रदाय, रीतिसम्प्रदाय, ध्वनिसम्प्रदासय, कोक्तिसम्प्रदाय, औचित्यसम्प्रदाय,पाश्चात्य काव्यशास्त्रः अरस्तु, लांजाइनस, क्रोचे
(ख)विशिष्ट अध्ययन- गद्य दशकुमारचरितम् (अष्टम-उच्छ्वास), हर्षचरितम् (पञ्चम-उच्छ्वास), कादम्बरी (शुकनासोपदेश) पद्य बुद्धचरितम् (प्रथम) रघुवंशम् (प्रथमसर्ग), किरातार्जुनीयम् (प्रथमसर्ग),शिशुपालवधम् (प्रथमसर्ग),नैषधीयचरितम् प्रथमसर्ग नाट्य स्वप्नवासवदत्तम्, अभिज्ञानशाकुन्तलम् वेणीसंहारम्,मुद्राराक्षसम्, उत्तररामचरितम्, रत्नावली, मृच्छकटिकम् चम्पूकाव्य नलचम्पू (प्रथम-उच्छ्वास)।
साहित्यदर्पण: काव्यपरिभाषा काव्य की अन्य परिभाषाओं का खण्डन, शब्दशक्ति- (संकेतग्रह, अमिधा, लक्षणा,
व्यंजना), काव्यभेद (चतुर्थ परिच्छेद) श्रव्यकाव्य (गद्य, पद्य,मिश्र काव्य-लक्षण)
काव्यप्रकाश-काव्यलक्षण, काव्यप्रयोजन काव्यहेतु काव्यमेद, शब्दशक्ति, अभिहितान्वयवाद,अन्विताभिधानवाद, रसस्वरूप एवं रससूत्र विमर्श, रसदोष, काव्यगुण,व्यंजनावृत्ति की स्थापना (पञ्चम उल्लास)
अलंकार-वक्रोक्ति, अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, रूपक उत्प्रेक्षा, समासोक्ति, अपह्नुति, निदर्शना, अर्थान्तरन्यास, दृष्टान्त, विभावना, विशेषोक्ति, स्वभावोक्ति, विरोधाभास, संकर, संसृष्टि।
ध्वन्यालोक (प्रथम उद्योत)
वक्रोक्तिजीवितम् (प्रथम उन्मेष)
भारत-नाट्यशास्त्रम् (द्वितीय एवं षष्ठ अध्याय)
दशरूपकम् (प्रथम तथा तृतीय प्रकाश)
छन्द परिचय-आर्या, अनुष्टुप, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, वसन्ततिलका, उपजाति,वंशस्थ, द्रुतविलम्बित, शालिनी, मालिनी, शिखरिणी, मन्दाक्रान्ता,हरिणी, शादूलविक्रीडित, स्रग्धरा
पुराणेतिहास, धर्मशास्त्र एवं अभिलेखशास्त्र-
(क)सामान्य परिचय- रामायण विषय-वस्तु, काल,रामायणकालीन समाज, परवर्ती ग्रन्थों के लिए प्रेरणास्रोत, साहित्यिक महत्त्व, रामायण में आख्यान,महाभारत विषय-वस्तु, काल महाभारतकालीन समाज, परवर्ती ग्रन्थों के लिए प्रेरणा स्रोत, साहित्यिक महत्त्व, महाभारत में आख्यान,पुराण पुराण की परिभाषा, महापुराण-उपपुराण, पौराणिक,सृष्टि-विज्ञान,पौराणिक आख्यान,प्रमुख स्मृतियों का सामान्य परिचय। अर्थशास्त्र का सामान्य परिचय।
लिपि: ब्राह्मी लिपि का इतिहास एवं उत्पत्ति के सिद्धान्त। अभिलेख का सामान्य परिचय।
(ख) ग्रन्थों का विशिष्ट अध्ययन-कौटिल्य अर्थशास्त्रम् (प्रथम-विनयाधिकारिक),मनुस्मृति (प्रथम, द्वितीय तथा सप्तम अध्याय),याज्ञवल्क्यस्मृति (व्यवहाराध्याय)।
लिपि तथा अभिलेख-गुप्तकालीन तथा अशोककालीन ब्राह्मी लिपि अशोक के अभिलेख प्रमुख शिलालेख, प्रमुख स्तम्भलेख मौर्योत्तरकालीन अभिलेख-कनिष्क के शासन वर्ष 3 का सारनाथ बौद्ध प्रतिमा लेख, रुद्रदामन का गिरनार शिलालेख, खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख,गुप्तकालीन एवं गुप्तोत्तरकालीन अभिलेख-समुद्रगुप्त का इलाहाबाद स्तम्भलेख, यशोधर्मन् का मन्दसौर शिलालेख, हर्ष का बांसखेड़ा ताम्रपट अभिलेख, पुलकेशिन द्वितीय
का ऐहोल शिलालेख। 

गुरुवार, 1 मई 2025


स्वागतम्! –संस्कृत दर्शनम्(Sanskrit Sight)में आपका स्वागत है

संस्कृत दर्शनम्(Sanskrit Sight)एक समर्पित प्रयास है, जहाँ हम संस्कृत भाषा, साहित्य, व्याकरण, श्लोक, सूक्तियाँ, और भारतीय ज्ञान परंपरा को सरल और आधुनिक रूप में प्रस्तुत करते हैं।

हम क्या प्रदान करते हैं?

  • संस्कृत भाषा सीखने की सरल विधियाँ
  • प्राचीन ग्रंथों का आधुनिक व्याख्यान
  •  श्लोक एवं उनका अर्थ
  • ऑनलाइन संस्कृत अभ्यास सामग्री

हमारा उद्देश्य

संस्कृत को केवल एक प्राचीन भाषा नहीं, बल्कि एक जीवंत संस्कृति के रूप में प्रस्तुत करना – ताकि आज की पीढ़ी भी इसका लाभ उठा सके और गर्व से कह सके, "संस्कृतं जीवति।"

शुभारंभ करें

नीचे दिए गए लिंक से आप विभिन्न विषयों तक पहुँच सकते हैं:


संस्कृत दर्शनम्(Sanskrit Sight) – ज्ञान की ओर एक कदम।
                          “सा विद्या या विमुक्तये”

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

झारखंड अधिविद्या परिषद, वार्षिक परीक्षा-2025 उत्तरम्-

                              झारखंड अधिविद्या परिषद,वार्षिक परीक्षा-2025
                                          वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर
1.(C) कल्पवृक्षः 
2.(B) जागरुका: 
3.(A) करोति
 4.(D) व्यापक: 
5.(C) कर्म
6.(C) मनोहरमण्डपः 
7.(A) समुद्रस्य 
8.(C) शिल्पिभिः
9.(D) गत्वा 
10.(A) ल्यप्
11.(B) अश्वः
12.(A)शष्पाणि 
13.(B) अजस्रम् 
14.(C) पश्चात् 
15.(A) लट् 
16.(A) सुगृहीतनामधेयस्य 
17.(D)अश्वः
18.(B)जनपदेषु
19.(A) बटवः
20.(C) तव्यत्
21.(B) कीदृश:
22.(C) केन
23.(A)कस्य
24.(A)कः
25.(D) काम्
26.(B)ईशावास्योपनिषदः
27.(A)रघुकौत्ससंवादः
28.(D) सिंहासनद्वत्रिंशिकायाः
29.(B) भवभूतेः
30.(C) 21 जून
                                               विषयनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर
31.भारतम् एकः विशालः प्राचीनः च देशः अस्ति।
32. भारतस्य नागरिकेषु एकता वर्तते ।
33.भारते जना भेदभावं विना वसन्ति ।
34. यथानिर्देशम् उत्तरत -
(1) 'सन्ति' इति क्रियापदस्य कर्तृपदम् अस्ति-सर्वे नागरिका:।
(ii) 'प्राचीनः' इति विशेषणस्य विशेष्य:अस्ति-भारतम्
(iii) 'अन्योऽन्यम्' इत्ति अर्थ कि पदम् अत्र प्रयुक्तम् अस्ति-विभिन्नानाम्।
(iv)'परतन्वाः' इति पदस्य कि विलोमपदम् अत्र प्रयुक्तम् अस्ति-स्वतन्त्राः
पूर्णवाक्येन उत्तरत -
35. युवा हयेन पर्वतश्रेण्याः उपरि गच्छति स्म।
36. निर्देशानुसारम् उत्तरत :
(1)'गच्छति स्म' इति क्रियापदस्य कर्तृपदम्-एकः षोडशवर्ष-देशीयो गौरो युवा अस्ति।
(ii) 'स्थूल' इति पदस्य सूक्ष्म विलोमपदद्मत्र प्रयुक्तम्।
(iii)'केशसमूहैः' इति पदस्य किं पर्यावपदम् अत्र प्रयुक्तम्-कुञ्चितकुञ्चितैः।
(iv) 'तस्यैव पत्रम् आदाय इति वाक्ये 'तस्य' इति सर्वनामपदं षोडशवर्ष-देशीयो गौरो युवा कृते प्रयुक्तम् ?
37.पूर्णवाक्येन उत्तरत -
(1)कोषगृहस्य मध्ये वृष्टिं शशंसुः।
(ii) हिरण्मयीं वृष्टि शशंसुः।
38. यथानिर्देशम् उत्तरत -
(i) 'शशंसुः' अस्य कर्तृपदं रघुः अस्ति।
(ii) 'वृष्टिम्' अस्य विशेषणं हिरण्मयीम् अस्ति।
खण्ड -ब
(लघु उत्तरीय प्रश्नः)
39.श्लोकस्य अन्वये रित्तस्थानपूर्ति-जगत्यां यत् किम् च (1)ईशावास्यम् 
इदम् सर्वम् (ii)जगत् तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः,कस्यस्वित् धनं मा (iii)गृधः
40.वाक्यशुद्धि-
(क)मया पत्रं लिख्यते
(ख)त्वं कुत्र गच्छसि ?
(ग)राजा दशरथस्य चत्वारः पुत्राः आसन्
41. उचितरूपैः रिक्तस्थानं पूरयत -
(क)मुनयः यज्ञं कुर्वन्ति ।(मुनि)
(ख)तानि कमलानि विकसन्ति । (तत्)
(ग)छात्राः विद्यालयं गच्छन्ति । (विद्यालय)
42. प्रत्ययं संयोज्य लिखत
(क) गम्+क्त्वा-गत्वा
(ख) कृ+तव्यत्-कर्त्तव्यम्
(ग) नर्तक+ङीप्-नर्तकी
43. अधः समस्तपदानां विग्रहाः दत्ताः, तानाश्रित्य समस्तपदानि रचयत
(क) वनस्य अन्तरे-वनान्तरे
(ख) गुणानां लुब्धाः-गुणलुब्धाः
(ग) प्रकृत्या सिद्धम्-प्रकृतिसिद्धम्
44. शब्दार्थं लिखत-
(क)अस्तेयम्-चोरी न करना
(ख) शौचम्-शुद्धि
(ग) जुगुप्सा-निंदा 
45. रेखाङ्कितपदस्य विभक्ति तत् कारणं च लिखत -
(क)चतुर्थी-नमःस्वास्तिस्वाहास्वधाSलंवषट्योगाच्च
(ख)द्वितीया-पृथग्विनानानाभिस्तृतीयान्यतरस्याम्
(ग)सप्तमी-यतश्च निर्धारणे
46. अधोलिखितपदानां सन्धि विच्छेदं वा कुरुत-
(क)सु+आगतम्
(ख)काल+अंशः
(ग) अतीव
खण्ड -स
47.श्लोकमेलनंम् -
'अ''                                  आ'
कर्मण्येवाधिकारस्ते    मा फलेषु कदाचन।
ददाति प्रतिगृह्णाति      गुह्यमाख्याति पृच्छति।
ईशावास्यमिदं सर्व      यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
अस्ति यद्यपि सर्वत्र     नीरं नीरज-राजितम्।
पापान्निवारयति          योजयते हिताय।
48.विद्यालयशुल्कक्षमापनार्थ स्वप्राचार्य प्रति एक पत्रम्। 
49.चम्पूकाव्यस्य वैशिष्ट्यं तथा चम्पूकाव्यस्य उदाहरणम्। 
50.लेखकानां नामानि (केवलं पञ्चानाम्)
(क) रामायणम्-वाल्मिकी
(ख)पाषाणी कन्या-दीनबन्धु नायरः 
(ग) महाभारतम्-वेदव्यासः 
(घ)किरातार्जुनीयम्-भारवि
(ङ)उत्तररामचरितम्-भवभूति
(च)कादम्बरी-बाणभट्ट
51.चित्रं दृष्ट्वा पञ्च वाक्यरचना-
52.कथालेखनम्-
(1)असत्यवादनम्
(2)त्वमेव
(3)गर्वेण
(4)दास्यति
(5)सम्मानितवान्


झारखंड अधिविद्या परिषद,वार्षिक परीक्षा-2025

झारखंड अधिविद्या परिषद,
वार्षिक परीक्षा-2025
भाग-अ
(बहुविकल्पीय प्रश्नः )
प्रश्नसङ्ख्या १ तः ३० पर्यन्तं बहुविकल्पप्रकारः भवति।प्रत्येकस्य प्रश्नस्य चत्वारः विकल्पाः सन्ति । सम्यक् विकल्पं चित्वा उत्तरपत्रे लिखन्तु। प्रत्येकं प्रश्नः १ अङ्कस्य अस्ति। -1 x 30 = 30
प्रश्न संख्या 1-30 वस्तुनिष्ठप्रश्नाः सन्ति ।
सर्वे प्रश्नाः समानाङ्काः ।
सर्वे प्रश्नाः अनिवार्याः ।
प्रदत्तेषु विकल्पेषु समुचितम् उत्तरं चिनुत ।
अपठितांश-अवबोधनम्-
निर्देश-अधोलिखितं अनुच्छेदं पठित्वा प्रदत्तप्रश्नान् विकल्पेभ्यः उत्तरत-
अनुच्छेदः-
संगणकं तु विज्ञानस्य अत्यधिकं विकसितं बुद्धिमत् च यन्त्रस्ति। मुद्रण सञ्चार-सैन्य-चिकित्सा-विज्ञानादिक्षेत्रेषु अस्य व्यापकः प्रभावः दृश्यते । असाधारणी अस्ति गणनशक्तिः स्मरणशक्तिः च।अनलसम् अविरतं च कर्म करोति इदम्। आधुनिकयुगस्य तु कल्पवृक्षः अयम्। परमद्यतनीयाः जनाः अलसाः भूत्वा लघुकार्याय अपि सङ्गणकाश्रिताः भवन्ति। 'बुद्धेः विकासः अवरुद्धः न भवेत्' अतः जागरुकाः भूत्वा अस्य प्रयोगः कर्तव्यः। बाला: अपि दिनानुदिनम् क्रीडा-कारणेन अस्य वशीभूताः जायमानाः सन्ति। ते बहिः क्रीडितुं न इच्छन्ति येन शारीरिकविकासः सम्पक्त्या न जायमानो वर्तते।
प्रश्नाः
1.अद्यतनीयुगस्य कल्पवृक्ष: किं मन्यते?
(A) स्मरणशक्ति: 
(B) सड्गणकम् 
(C) कल्पवृक्षः 
(D) विकास: 
2. सड्गणकस्य स्मरणशक्ति: कीदृशी ?
 (A) अनलसम्
 (B) जागरुका:
 (C) असाधारणी
 (D) चिकित्सा
 3. 'अनलसम् अविरतं च कर्म करोति इदम् ।' अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम् ?
 (A) करोति
 (B) अविरतं 
(C) अनलसम्
 (D) कर्म 
4. 'व्यापकः प्रभावः' अत्र विशेषणपदं किम् ? 
(A) पक: 
(B) भाव: 
(C) प्रभाव:
 (D) व्यापक:
 5. 'कार्यम्' इति पदस्य समानार्थकं पदम् अनुच्छेदात् चित्चा लिखत । 
(A) क्रीडितुं 
(B) अविरतं 
(C) कर्म 
(D) असाधारणी
पठितावबोधनम्- 
निर्देश : 
अधोलिखितं गद्यांशं, पद्यं, नाट्य च पठित्वा प्रदत्तप्रश्नान् विकल्पेभ्यः- 
गद्यांशः-
 'इत्येवं विचार्य सर्वस्वदक्षिणं यज्ञं कर्तुमुपक्रान्तवान् । ततः शिल्पिभिरतीव मनोहरो मण्डपः कारितः। सर्वापि यज्ञसामग्री समाहृता। देवमुनिगन्धर्वसिद्धाश्च समुद्राह्वानार्थं कश्चिद् ब्राह्यणः समुद्रतीरे प्रेषितः। गन्धपुष्पादिषोडशोपचारं विधायाSब्रवीत्।" 
6. शिल्पिभिः कः कारितः ? 
(A) गृहम् 
(B) मूर्ति:
(C) मनोहरमण्डपः 
(D) विद्यालय: 
7. कस्य आह्वानार्थं ब्राह्मणः प्रेषितः ?
 (A) समुद्रस्य
 (B) देवस्य 
(C) पुत्रस्य 
(D) असुरस्य 
8. 'कारुभिः' अस्य क: पर्याय: ?
 (A) लताभि: 
(B) मातृभिः 
(C) शिल्पिभि: 
(D) सर्वाभिः
9. 'आगत्य' अस्य विलोमपदं किम् ?
 (A) आगम्य 
(B) प्रणम्य 
(C) अवगम्य 
(D) गत्वा 
10. 'विचार्य' पदे कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
 (A) ल्यप् 
(B) अनीयर्
 (C) क्त्वा
 (D) शतृ 
पद्यम्-
 "पश्चात्पुच्छं वहति विपुलं तच्च धूनोत्यजस्रम, 
दीर्घग्रीव: स भवति, खुरास्तस्य चत्वार एव।
 शष्पाण्यत्ति प्रकिरति शकृत्पिण्डकानाप्रमात्रान्,
 किं व्याख्यानैव्रजति स पुनर्दूरमेहपेहि यामः ॥"
11. दीर्घग्रीवः क: भवति ? 
(A) अज:
(B) अश्व: 
(C) कपोतः 
(D) वराह:
12. अश्वः कानि अत्ति ? 
(A)शष्पाणि 
(B) आम्राणि 
(C)कमलानि 
(D) नेत्राणि 
13. 'सततम्' अस्य केः पर्यायः ? 
(A)सत्यम् 
(B) अजस्रम् 
(C) असत्यम् 
(D) खुराः 
14.'अग्रे' अस्य विलोमपदं किम् ? 
(A)विपुलम् 
(B) दीर्घग्रीवः 
(C) पश्चात् 
(D) तच्च 
15. 'भवति' पदे कः लकारः ? 
(A) लट् 
(B) लृट् 
(C) लोट् 
(D) लङ्
नाट्यांशः- 
"कौसल्या जात ! अस्ति ने माता ? स्मरसि वा तातम् ? 
लवः-नहि । 
कौसल्या-ततः कस्य त्वम् ? 
लवः-भगवतः सुगृहीतनामधेयस्य वाल्मीकेः. । 
कौसल्या-अयि जात । कथयितव्यं कथय। 
लवः-एतावदेव जानामि । (प्रविश्य सम्भ्रान्ताः) 
वटवः-कुमार! कुमार! अश्वोऽश्व इति कोऽपि भूतविशेषो जनपदेष्वनुश्रूयते,सोऽयमधुनाऽस्माभिः स्वयं प्रत्यक्षीकृतः।" 
16. 'वाल्मीकेः' अस्य किं विशेषणम् ? 
(A) सुगृहीतनामधेयस्य 
(B) कुमारः 
(C) भूतविशेषो 
(D) कोऽपि 
17. अस्माभिः कः भूतविशेषः प्रत्यक्षीकृतः ?
(A) अजः
(B) चित्रकः
(C)व्याघ्रः
(D)अश्वः
18. भूतविशेषोऽश्व कुत्र अनुश्रूयते ?
(A) ग्रामेषु
(B)जनपदेषु
(C) वनेषु
(D)गृहेषु
19. 'अनुश्रूयते' अस्य कर्तृपदं किम् ?
(A) बटवः
(B) लवः
(C) कौसल्या
(D) जनकः
20, 'कथयितव्यं' पदे कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(A) क्त्त्वा
(B) क्त
(C) तव्यत्
(D) ल्यप्
निर्देश: रेखांकित पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत।
21. श्रीनायार: स्वल्पभाषी आसीत् ।
(A) कः
(B) कीदृश:
(C)केन
(D) कुत्र
22. तस्य राज्येन सह कश्चित् सम्पर्कः नास्ति ।
(A) कः
(B) कीदृशः
(C) केन
(D) कुत्र
23. पत्रस्य अर्घाधिकं भागं अनुधारा आर्द्राकरोति स्म ।
(A)कस्य
(B) कीदृशः
(C) केन
(D) कुत्र
24. श्रीदासः तत्पत्रमुद्घाटितवान् ।
(A)कः
(B) कीदृशः
(C) केन
(D) कुत्र
25 भगवान् त्वां दीर्घजीवनं कारयतु ।
(A) कः
(B) कीदृशः
(C) केन
(D) काम्
निर्देशः निर्देशानुसारम् उत्तरं चिनुत-
26. विद्ययाऽमृतमश्नुते' पाठः कस्मात् ग्रंथात् संकलितः ?
(A) तैत्तिरीयोपनिषदः
(B)ईशावास्योपनिषदः
(C) मुंडकोपनिषदः
(D) मांडूक्योपनिषदः
27. रघुवंशात् कः पाठः संकलितः ?
(A)रघुकौत्ससंवादः
(B) बालकौतुकम्
(C) सूक्ति-सुधा
(D) दीनबंधुश्रीनायारः
28. 'विक्रमस्यौदार्यम्' पाठः कस्मात् ग्रंथात् संकलितः ?
(A) रामायणात्
(B) मेघदूतात्
(C) महाभारतात्
(D) सिंहासनद्वत्रिंशिकायाः
29. 'बालकौतुकम्' इति पाठः कस्य रचना ?
(A)कालिदासस्य
(B) अवभूतेः
(C) बाणभट्टस्य
(D) सुश्रुतस्य
30. अन्तरराष्ट्रिययोगदिवसः कदा समायोज्यते ?
(A) 19 जून
(B) 20 जून
(C) 21 जून
(D) 22 जून
भाग-B
( विषयनिष्ठ प्रश्न)
खण्ड -अ
( अति लघु उत्तरीय प्रश्नः)
कस्यापि षट् प्रश्नस्य उत्तरं ददातु।
निर्देश: अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा प्रदत्तान् प्रश्नान् निर्देशानुसारम् उत्तरत -2x6-12
भारतम् एकः विशालः प्राचीनः च देशः अस्ति। एतद् उत्तरे कश्मीरप्रदेशात् दक्षिणे कन्याकुमारी पर्यन्तम्, पूर्व असमप्रदेशात् पश्चिमे कच्छप्रदेशपर्यन्तं च विस्तृतम् अस्ति । अस्माकं भारते विभिन्नानां वर्णानां, जातीनां, धर्माणां च जनाः परस्परं मिलित्वा वसन्ति । भारते भाषा-परम्परा-धर्मवैभिन्ये अधि अत्रत्येषु नागरिकेषु एकता बर्तते । स्वतन्त्रता भारतीयनागरिकाणां मौलिक अधिकारः अस्ति। सर्वं नागरिकाः कमपि धर्म स्वीकर्तुं स्वतन्त्राः सन्ति । सर्वे धर्मा अस्मभ्यं नम्रता दया परोपकाराणाम् उपदेशं यच्छन्ति। अत एवभारते सर्वेषां धर्माणां जना भेदभावं विना निवसन्ति ।
प्रश्नाः
पूर्णवाक्येन उत्तरत -
31.भारतम् कीदृशः देशः अस्ति ?
32. भारतस्य नागरिकेषु का वर्तते ?
33.भारते जना कथं वसन्ति ?
34. यथानिर्देशम् उत्तरत -
(1) 'सन्ति' इति क्रियापदस्य कर्तृपद किम् ?
(ii) 'प्राचीनः' इति विशेषणस्य विशेष्य किम् ?
(iii) 'अन्योऽन्यम्' इत्ति अर्थ कि पदम् अत्र प्रयुक्तम् ?
(iv)'परतन्वाः' इति पदस्य कि विलोमपदम् अत्र प्रयुक्तम् ?
अधोलिखितं गद्यांश, पद्यं च पठित्वा प्रदत्तप्रश्नान् संस्कृतेन उत्तरत -
गद्यांशः-
"अस्मिन् समये एकः षोडशवर्ष-देशीयो गौरो युवा हयेन पर्वतश्रेणीरुपर्युपरि गच्छति स्म । एष सुगठितदृढशरीरः श्यामश्यामैर्गुच्छगुच्छः कुञ्चितकुञ्चितैः कचकलापैः दूरागमनायासवशेन सूक्ष्म-मौक्तिक-पटलेनेव स्वेदबिन्दु ब्रजेन समाच्छादितललाट-कपोल नासाग्रोत्तरोष्ठः कोऽपि शिववीरस्य विश्वासपात्रः सिंहदुर्गात् तस्यैव पत्रमादाय तोरणदुर्गं प्रयाति ।"
प्रश्नाः
पूर्णवाक्येन उत्तरत -
35. युवा केन पर्वतश्रेण्याः उपरि गच्छति स्म ?
36. निर्देशानुसारम् उत्तरत :
(1)'गच्छति स्म' इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम् ?
(ii) 'स्थूल' इति पदस्य किम् विलोमपदद्मत्र प्रयुक्तम् ?
(iii)'केशसमूहैः' इति पदस्य किं पर्यावपदम् अत्र प्रयुक्तम् ?
(iv) 'तस्यैव पत्रम् आदाय इति वाक्ये 'तस्य' इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
पद्यम् -
प्रातः प्रयाणाभिमुखाय तस्मै
सविस्मयाः कोषगृहे नियुक्ताः।
हिरण्मयीं कोषगृहस्य मध्ये
वृष्टिं शशंसुः पतितां नभस्तः।।
37. पूर्णवाक्येन उत्तरत -
(1) कस्य मध्ये वृष्टिं शशंसुः ?
(ii) कीदृशीं वृष्टि शशंसुः ?
38. यथानिर्देशम् उत्तरत -
(i) 'शशंसुः' अस्य कर्तृपदं किम् ?
(ii) 'वृष्टिम्' अस्य विशेषणं किम् ?
खण्ड -ब
(लघु उत्तरीय प्रश्नः)
कस्यापि षट् प्रश्नस्य उत्तरं ददातु। प्रत्येकं प्रश्नस्य उत्तरं अधिकतमं १५० शब्देषु ददातु।
39. अधोलिखितस्य श्लोकस्य अन्वये रित्तस्थानपूर्ति कुरुत
ईशावास्यमिदं सर्व यत्किंच जगत्यां जगत् । 
तेन व्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद् धनम् ।।
जगत्यां यत् किम् च (1)..... इदम् सर्वम् (ii)....... तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः,कस्यस्वित् धनं मा (iii)...........।
40.वाक्यं शुद्ध कुरुत-
(क)मया पत्रं लिखामि ।
(ख)त्वं कुत्र गच्छति ?
(ग)राजा दशरथस्य चत्वारः पुत्राः आसीत् ।
41. उचितरूपैः रिक्तस्थानं पूरयत -
(क).......यज्ञं कुर्वन्ति ।(मुनि)
(ख).......कमलानि विकसन्ति । (तत्)
(4)छात्रा........ गच्छन्ति । (विद्यालय)
42. प्रत्ययं संयोज्य लिखत
(क) गम्+क्त्वा-
(ख) कृ+तव्यत् -
(ग) नर्तक+ङीप् -
43. अधः समस्तपदानां विग्रहाः दत्ताः, तानाश्रित्य समस्तपदानि रचयत
यथा-कुलस्य व्रतं कुलव्रतम् ।
(क) वनस्य अन्तरे-
(ख) गुणानां लुब्धाः-
(ग) प्रकृत्या सिद्धम्-
44. शब्दार्थं लिखत-
(क)अस्तेयम् -
(ख) शौचम् -
(ग) जुगुप्सा-
45. रेखाङ्कितपदस्य विभक्ति तत् कारणं च लिखत -
(क) गणेशाय नमः ।
(ख) जलं विना जीवनं शून्यः ।
(ग) कविषु कालिदासः श्रेष्ठः ।
46. अधोलिखितपदानां सन्धि विच्छेदं वा कुरुत-
(क) स्वागतम्-.............+................
(ख) कालांश-.............+.................
(ग) अति+इव-...............................
खण्ड -स
(दीर्घ उत्तरीय प्रश्नः)-5x4-20
चतुर्णां प्रश्नानाम् उत्तरं ददातु। प्रत्येकं प्रश्नस्य उत्तरं अधिकतमं २५० शब्देषु ददातु।
47.श्लोकमेलनं कुरुत -
'अ''                                  आ'
कर्मण्येवाधिकारस्ते    यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
ददाति प्रतिगृह्णाति      मा फलेषु कदाचन ।
ईशावास्यमिदं सर्व      गुह्यमाख्याति पृच्छति ।
अस्ति यद्यपि सर्वत्र     योजयते हिताय ।
पापान्निवारयति          नीरं नीरज-राजितम् ।
48.विद्यालयशुल्कक्षमापनार्थ स्वप्राचार्य प्रति एक पत्र लिखत ।
49.चम्पूकाव्यस्य वैशिष्ट्यं प्रतिपादयत । चम्पूकाव्यस्य उदाहरणम् अपि लिखत ।
50.अधोलिखित्तरचनानां लेखकानां नामानि लिखत । (केवलं पञ्चानाम् )
(क) रामायणम्-
(ख) पाषाणी कन्या-
(ग) महाभारतम्-
(घ)किरातार्जुनीयम्-
(ङ)उत्तररामचरितम्-
(च) कादम्बरी-
51. मञ्जूषासहायतया चित्रं दृष्ट्वा पञ्च चाक्यानि रचयत -

मन्जूषाः-पर्वताः,हरिताः,नदी,वृक्षाः,गृहाणि,वर्षाकाले,मेघा,सुन्दरम्,जलमग्नाः
52. मञ्जूषातः उचितसङ्केतान् गृहीत्या अधोलिखितां कथां पूरयित्वा पुनः लिखत-
मन्जूषाः-गर्वेण, दास्यति, त्वमेव, सम्मानितवान्, असत्यवादनम् ।
एकः अहङ्कारी राजा पण्डितान् आहूय अपृच्छत् । कः श्रेष्ठः अहं वा ईश्वरः वा ?" व्याकुलाः पण्डिताः अचिन्तयन् किं कुर्मः? इतः प्राणहानिः ततः,,,,,,,,,,,,,,,(1),,,,,,,,,,,,,,,।एकः वृद्धः प्रणम्य अवदत् "राजन् । निस्संदेह,,,,,,,,,,,,,,,(2),,,,,,,,,,,,,,,, श्रेष्ठः न ईश्वरः।राजा,,,,,,,,,,,,,,, (3),,,,,,,,,,,,,,, मस्तकम् उन्नयन् अपृच्छत् तत् कथम्?" वृद्धपण्डितः अवदत् -"राजन् । त्वम् अस्मान् राज्यात् निष्कासयितुं क्षमः न तु ईश्वरः । निष्कासयति चेत् कुत्र स्थानं,,,,,,,,,,,,,,, (4),,,,,,,,,,,,,,,?" राजा स्वमूर्खताम् अवगतवान् वृद्धं च,,,,,,,,,,,,,,, (5),,,,,,,,,,,,,,,।



शनिवार, 22 मार्च 2025

पाठ योजना

पाठ योजना

 1.सामान्य सूचना:-
शिक्षक का नाम-संजय कुमार कुशवाहा
 माह-अप्रैल2025 
सप्ताह-पहला 
दिनांक-01/04/2025
 कक्षा-ग्यारहवीं
 घंटी-पहली 
अवधि-45 मिनट 
अध्याय-पहला 
प्रकरण-
पृष्ठ संख्या-
2.अधिगम उद्देश्य:-
3.अधिगम प्रतिफल :-
4.शिक्षण-विधि:-
5.शिक्षण अधिगम सहायक सामग्री :-
6.पूर्व ज्ञान:-
7.प्रस्तुतीकरण : -
क. शिक्षण / अध्यापन बिन्दु- 
ख. शिक्षक क्रियाशीलता-
ग. छात्र क्रियाशीलता- 
घ. श्यामपट्ट-कार्य- 
ङ. मूल्यांकन-
च. पुनरावृत्ति- 
9.गृह-कार्य:-
10.अन्य बिंदु :-
कक्षा समाप्ति के पूर्व विद्यार्थियों की प्रतिक्रिया-
शिक्षक का स्व-मूल्यांकन-
पाठ-योजना में अपेक्षित सुधार- 

पाठ-योजना की मानक संचालन प्रक्रिया

 पाठ-योजना की मानक संचालन प्रक्रिया (SOP of Lesson plan)

शिक्षक एक पाठ या अध्याय को पढ़ाने के लिए उसे छोटी-छोटी इकाईयों में बॉट लेते हैं, जिसे हम प्रकरण कहते हैं। एक इकाई की विषय-वस्तु को एक घंटी  में पढ़ाया जाता है। इस विषय-वस्तु को पढ़ाने के लिए शिक्षक द्वारा एक विस्तृत रुपरेखा तैयार की जाती है, जिसे हम पाठ-योजना कहते हैं।
पाठ-योजना की आवश्यकता एवं उद्देश्य :-
1.जिस प्रकार एक इंजीनियर को भवन निर्माण के लिए नक्शा या योजना की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार शिक्षक को एक इकाई की विषय-वस्तु के अध्यापन के लिए पाठ-योजना का निर्माण करना आवश्यक होता है।
2.पाठ-योजना के माध्यम से कक्षा में शिक्षण की क्रियाओं और सहायक सामग्री की पूर्ण जानकारी हो जाती है।
3.प्रस्तुतीकरण के क्रम में निश्चितता आ जाती है।
4.इससे कक्षा-शिक्षण के समय शिक्षक की विस्मृति की संभावना कम होती है।
पाठ-योजना की रुपरेखा :-
1.सामान्य सूचना:-इसमें शिक्षक का नाम, माह, सप्ताह, दिनांक, कक्षा, घंटी, अवधि, अध्याय, प्रकरण एवं पृष्ठ संख्या आदि का उल्लेख होता है।
2.अधिगम उद्देश्य:-इसमें प्रकरण पूर्ण होने के पश्चात् विद्यार्थियों में विकसित होनेवाली दक्षताओं एवं कौशलों का उल्लेख किया जाता है।
3.अधिगम प्रतिफल :-अधिगम प्रतिफल ऐसे बिंदु होते हैं, जो उस ज्ञान या कौशल की व्याख्या करते हैं, जो विद्यार्थियों के पास एक पाठ्यक्रम या इकाई के अंत में होना चाहिए और जो विद्यार्थियों को यह समझने में मदद करते हैं कि वे ज्ञान और क्षमताएँ उनके लिए क्यों और किस प्रकार सहायक होंगी।
4.शिक्षण-विधि:-पाठ पढ़ाते समय शिक्षक कौन-से शिक्षण विधि का इस्तेमाल करेंगे, उसे यहाँ लिखा जाता है।
5.शिक्षण अधिगम सहायक सामग्री :-पाठ पढ़ाने में किस प्रकार की अधिगम सामग्री  की आवश्यकता पड़ती है, उसका उल्लेख करना चाहिए। जैसे मॉडल, चार्ट, श्यामपट्ट, चॉक, डस्टर, ऑडियो, वीडियो, पेन ड्राईव, कम्प्यूटर, लैपटॉप इत्यादि।
6.पूर्व ज्ञान:-पूर्व ज्ञान में विद्यार्थियों से उस विषय-वस्तु से संबंधित कुछ सवाल पूछे जाते हैं, जिससे यह ज्ञात हो सके कि उन्हें उस विषय के बारे में पहले से कितनी जानकारी है।
7.प्रस्तुतीकरण : -पाठ-योजना के इस भाग में छात्रों के सम्मुख पाठ्य-वस्तु का शिक्षण बिंदु प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरणस्वरूप:-
क. शिक्षण / अध्यापन बिन्दु 
ख. शिक्षक क्रियाशीलता
ग. छात्र क्रियाशीलता 
घ. श्यामपट्ट-कार्य 
ङ. मूल्यांकन
च. पुनरावृत्ति 
पाठ-योजना के कार्यान्वयन के क्रम में विद्यार्थियों की पठित विषय-वस्तु पर बेहतर समझ सुनिश्चित करने के लिए उक्त प्रकरण की पुनरावृत्ति की जाती है।
9.गृह-कार्य:-पाठ-योजना में प्रकरण की समाप्ति के उपरांत विद्यार्थियों को रचनात्मक गृह-कार्य दिया जाता है। शिक्षक को पाठ-योजना लेखन एवं कक्षा में उसके कार्यान्वयन में गृह-कार्य को आवश्यकतानुसार अवश्य स्थान देना चाहिए।
10.अन्य बिंदु :-इसमें कक्षा समाप्ति के पूर्व विद्यार्थियों से कक्षा के संबंध में उनकी प्रतिक्रिया, शिक्षक का स्व-मूल्यांकन एवं पाठ-योजना में अपेक्षित सुधार आदि के संबंध में लिखा जाता है।
पाठ-योजना के निर्माण में अनुपालन हेतु आवश्यक निर्देश :-
कक्षा-शिक्षण की सफलता पाठ-योजना पर निर्भर करती है इसलिए शिक्षकों को पाठ-योजना बनाते समय निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए :-
* प्रत्येक शिक्षक, वर्ग-तालिका के अनुसार आवंटित कक्षा के विषय के अध्यापन के लिए अधिकृत होंगे। ससमय विषय के पाठों के अध्यापन की जवाबदेही उनकी होगी।
* प्रत्येक शिक्षक को उन्हे आवंटित कक्षा के संबंधित विषय के लिए एक पाठ-योजना पंजी संधारित करनी होगी, जिसे विद्यालय के प्रधानाध्यापक/प्राचार्य द्वारा सत्यापित किया जायेगा।
* प्रत्येक शिक्षक को कक्षा में अध्यापन के कम-से-कम एक दिन पूर्व पाठ-योजना तैयार करना होगा।
* कक्षा में अध्यापन के पूर्व उक्त पाठ-योजना को प्रधानाध्यापक/प्राचार्य द्वारा हस्ताक्षर कर सत्यापित किया जायेगा।
* शिक्षक को पाठ-योजना बनाते समय प्रकरण को एक या अधिक शिक्षण वि विभाजित करना चाहिए, परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि एक पाठ-योजना में शिक्षण बिंदुओं को समाहित किया जाए जितना शिक्षण बिंदु कक्षा अवधि में समाप्त हो जाए।
क.पाठ-योजना में प्रयुक्त होने वाली शिक्षण अधिगम सहायक सामग्री तथा उसके प्रयोग विधि को सुनिश्चित कर लेना चाहिए ताकि पाठ्य-वस्तु विद्यार्थियों के लिए सुगम एवं बोधगम्य हो।
कक्षा में शिक्षक द्वारा पाठ-योजना के प्रस्तुतीकरण में उचित शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाना चाहिए।
ख.शिक्षक को हमेशा शिक्षण बिन्दु को ध्यान में रखकर ही कक्षा में क्रियाकलाप को नियंत्रित करना चाहिए।
ग.कक्षा में शिक्षक एवं छात्र की क्रियाशीलता एक-दूसरे के पूरक हैं, इसका ध्यान शिक्षक को अवश्य रखना चाहिए, ताकि कक्षा में शिक्षक और छात्र की क्रियाशीलता आदर्श रहे।
घ.पाठ-योजना लेखन एवं शिक्षक द्वारा कक्षा में उसके कार्यान्वयन में श्यामपट्ट-कार्य का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका अनुपालन पाठ-योजना लेखन एवं उसके कार्यान्वयन में किया जाना चाहिए।
ङ.पाठ-योजना के कार्यान्वयन की समीक्षा छात्रों के मूल्यांकन के आधार पर किया जाता है, जो शिक्षक को कक्षा अध्यापन के दौरान रोचक ढंग से बीच-बीच में आवश्यकतानुसार करना चाहिए।
च.पाठ-योजना के कार्यान्वयन के क्रम में विद्यार्थियों की पठित विषय-वस्तु पर बेहतर समझ सुनिश्चित करने के लिए उक्त प्रकरण की पुनरावृत्ति की जानी चाहिए।
छ.पाठ-योजना के सफल कार्यान्वयन के उपरांत विद्यार्थियों को रचनात्मक गृह-कार्य दिया जाना चाहिए। शिक्षक को पाठ-योजना लेखन एवं कक्षा में उसके कार्यान्वयन में गृह-कार्य को आवश्यकतानुसार अवश्य स्थान देना चाहिए।

संस्कृत के छात्र-

 संस्कृत के छात्र-

लक्ष्मी कुमारी-7070611872
चांदनी कुमारी-9341291099
संगीता कुमारी-9227796979
अंजू कुमारी-9934399676
पलक कुमारी-7488511033
नमिता कुमारी-7903207995
संजू कुमारी-9279267272
रुबी कुमारी-9155843089
राखी कुमारी-9973780446
कुंदन कुमार-6205308329
अमित कुमार-6206650674
योग क छात्र-
रूपेश कुमार यादव-9241370223
पुनीत कुमार पांडेय-9006598995

संस्कृत व्याकरण तथा अनुवाद का पाठ्यक्रम

                     संस्कृत व्याकरण तथा अनुवाद का पाठ्यक्रम

१.वर्ण प्रकरण
२.सन्धि प्रकरण
३.समास प्रकरण
४.प्रत्यय प्रकरण                                         
.संस्कृत अनुवाद
१.पुरुष तथा वचन २.कर्ता तथा क्रिया .कर्ता का कोष्ठक .क्रिया का कोष्ठक .कर्ता तथा क्रिया का समन्वय .लट् लकार की प्रमुख क्रियाएं ७.प्रथम पुरुष की संज्ञा .कर्म का प्रयोग .म् के बदले अनुस्वार का प्रयोग १०.स्म का प्रयोग ११.च एवं तथा का प्रयोग १२.वा तथा अथवा का प्रयोग १३.अस् धातु लट् लकार की क्रिया १४.अस् धातु लङ् लकार की क्रिया१५.प्रथम पुरुष के सर्वनाम १६.विशेषण का प्रयोग १७.संख्यावाचक शब्द १८.प्रश्नवाचक अव्यय १९.स्थान वाचक अव्यय २०.समय वाचक अव्यय २१.नकारात्मक अव्यय २२.बलबोधक(अपि,एव,तु) अव्यय २३.तुमुन् प्रत्यय की क्रिया २४.इच्छ् धातु लट् लकार की क्रिया २५.शक् धातु लट् लकार की क्रिया २६.ज्ञा धातु लट् लकार की क्रिया २७.क्त्वा प्रत्यय की क्रिया २८.ल्यप् प्रत्यय की क्रिया २९.कृ धातु लट् लकार की क्रिया ३०.ल्युट् प्रत्यय का प्रयोग ३१.श्रु धातु लट् लकार की क्रिया ३२.क्री धातु लट् लकार की क्रिया ३३.दा धातु लट् लकार की क्रिया३४.ग्रह् धातु लट् लकार की क्रिया३५.हन् धातु लट् लकार की क्रिया ३६.भूतकाल की क्रिया ३७.भविष्यत् काल की क्रिया ३८.लोट् लकार की क्रिया ३९.विधि लिङ् लकार की क्रिया ४०.लृङ् लकार की क्रिया ४१.आत्मनेपदी धातु का परिचय ४२.सेव् धातु लट् लकार की क्रिया ४३.लभ् धातु लट् लकार की क्रिया ४४.वृत् धातु लट् लकार की क्रिया ४५.आ+रभ् धातु लट् लकार की क्रिया ४६.कर्म वाच्य और भाव वाच्य ४७.शतृ प्रत्यय की क्रिया ४८.शानच् प्रत्यय की क्रिया ४९..क्त प्रत्यय की क्रिया५०.क्तवतु प्रत्यय की क्रिया .तव्यत् प्रत्यय की क्रिया .अनीयर् प्रत्यय की क्रिया .णिच् प्रत्यय की क्रिया-प्रेरणार्थक क्रिया। 
६.कारक प्रकरण
१.कारक परिचय २.प्रथमा विभक्ति का परिचय ३.प्रथमा विभक्ति के शब्द रूप ४.प्रथमा विभक्ति के नियम .क्तवतु प्रत्यय का प्रयोग .द्वितीया विभक्ति का परिचय .द्वितीय विभक्ति के शब्द रूप ८.द्वितीय विभक्ति के नियम .तृतीया विभक्ति का परिचय ०.तृतीया विभक्ति के शब्द रूप १.तृतीया विभक्ति के नियम .लट् लकार आत्मनेपदी क्रियाएँ ३.लङ् लकार आत्मनेपदी क्रियाएँ .क्त प्रत्यय का प्रयोग ५.तव्यत् प्रत्यय का प्रयोग .अनीयर् प्रत्यय का प्रयोग ७..चतुर्थी विभक्ति का परिचय ८.चतुर्थी विभक्ति के शब्द रूप ९.चतुर्थी विभक्ति के नियम .पंचमी विभक्ति का परिचय .पंचमी विभक्ति के शब्द रूप २.पंचमी विभक्ति के नियम .षष्ठी विभक्ति का परिचय ४.षष्ठी विभक्ति के शब्द रूप .षष्ठी विभक्ति के नियम .सप्तमी विभक्ति का परिचय .सप्तमी विभक्ति के शब्द रूप .सप्तमी विभक्ति के नियम।
७.वाच्य प्रकरण