पाठ-योजना की मानक संचालन प्रक्रिया (SOP of Lesson plan)
शिक्षक एक पाठ या अध्याय को पढ़ाने के लिए उसे छोटी-छोटी इकाईयों में बॉट लेते हैं, जिसे हम प्रकरण कहते हैं। एक इकाई की विषय-वस्तु को एक घंटी में पढ़ाया जाता है। इस विषय-वस्तु को पढ़ाने के लिए शिक्षक द्वारा एक विस्तृत रुपरेखा तैयार की जाती है, जिसे हम पाठ-योजना कहते हैं।
पाठ-योजना की आवश्यकता एवं उद्देश्य :-
1.जिस प्रकार एक इंजीनियर को भवन निर्माण के लिए नक्शा या योजना की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार शिक्षक को एक इकाई की विषय-वस्तु के अध्यापन के लिए पाठ-योजना का निर्माण करना आवश्यक होता है।
2.पाठ-योजना के माध्यम से कक्षा में शिक्षण की क्रियाओं और सहायक सामग्री की पूर्ण जानकारी हो जाती है।
3.प्रस्तुतीकरण के क्रम में निश्चितता आ जाती है।
4.इससे कक्षा-शिक्षण के समय शिक्षक की विस्मृति की संभावना कम होती है।
पाठ-योजना की रुपरेखा :-
1.सामान्य सूचना:-इसमें शिक्षक का नाम, माह, सप्ताह, दिनांक, कक्षा, घंटी, अवधि, अध्याय, प्रकरण एवं पृष्ठ संख्या आदि का उल्लेख होता है।
2.अधिगम उद्देश्य:-इसमें प्रकरण पूर्ण होने के पश्चात् विद्यार्थियों में विकसित होनेवाली दक्षताओं एवं कौशलों का उल्लेख किया जाता है।
3.अधिगम प्रतिफल :-अधिगम प्रतिफल ऐसे बिंदु होते हैं, जो उस ज्ञान या कौशल की व्याख्या करते हैं, जो विद्यार्थियों के पास एक पाठ्यक्रम या इकाई के अंत में होना चाहिए और जो विद्यार्थियों को यह समझने में मदद करते हैं कि वे ज्ञान और क्षमताएँ उनके लिए क्यों और किस प्रकार सहायक होंगी।
4.शिक्षण-विधि:-पाठ पढ़ाते समय शिक्षक कौन-से शिक्षण विधि का इस्तेमाल करेंगे, उसे यहाँ लिखा जाता है।
5.शिक्षण अधिगम सहायक सामग्री :-पाठ पढ़ाने में किस प्रकार की अधिगम सामग्री की आवश्यकता पड़ती है, उसका उल्लेख करना चाहिए। जैसे मॉडल, चार्ट, श्यामपट्ट, चॉक, डस्टर, ऑडियो, वीडियो, पेन ड्राईव, कम्प्यूटर, लैपटॉप इत्यादि।
6.पूर्व ज्ञान:-पूर्व ज्ञान में विद्यार्थियों से उस विषय-वस्तु से संबंधित कुछ सवाल पूछे जाते हैं, जिससे यह ज्ञात हो सके कि उन्हें उस विषय के बारे में पहले से कितनी जानकारी है।
7.प्रस्तुतीकरण : -पाठ-योजना के इस भाग में छात्रों के सम्मुख पाठ्य-वस्तु का शिक्षण बिंदु प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरणस्वरूप:-
क. शिक्षण / अध्यापन बिन्दु
ख. शिक्षक क्रियाशीलता
ग. छात्र क्रियाशीलता
घ. श्यामपट्ट-कार्य
ङ. मूल्यांकन
च. पुनरावृत्ति
पाठ-योजना के कार्यान्वयन के क्रम में विद्यार्थियों की पठित विषय-वस्तु पर बेहतर समझ सुनिश्चित करने के लिए उक्त प्रकरण की पुनरावृत्ति की जाती है।
9.गृह-कार्य:-पाठ-योजना में प्रकरण की समाप्ति के उपरांत विद्यार्थियों को रचनात्मक गृह-कार्य दिया जाता है। शिक्षक को पाठ-योजना लेखन एवं कक्षा में उसके कार्यान्वयन में गृह-कार्य को आवश्यकतानुसार अवश्य स्थान देना चाहिए।
10.अन्य बिंदु :-इसमें कक्षा समाप्ति के पूर्व विद्यार्थियों से कक्षा के संबंध में उनकी प्रतिक्रिया, शिक्षक का स्व-मूल्यांकन एवं पाठ-योजना में अपेक्षित सुधार आदि के संबंध में लिखा जाता है।
पाठ-योजना के निर्माण में अनुपालन हेतु आवश्यक निर्देश :-
कक्षा-शिक्षण की सफलता पाठ-योजना पर निर्भर करती है इसलिए शिक्षकों को पाठ-योजना बनाते समय निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए :-
* प्रत्येक शिक्षक, वर्ग-तालिका के अनुसार आवंटित कक्षा के विषय के अध्यापन के लिए अधिकृत होंगे। ससमय विषय के पाठों के अध्यापन की जवाबदेही उनकी होगी।
* प्रत्येक शिक्षक को उन्हे आवंटित कक्षा के संबंधित विषय के लिए एक पाठ-योजना पंजी संधारित करनी होगी, जिसे विद्यालय के प्रधानाध्यापक/प्राचार्य द्वारा सत्यापित किया जायेगा।
* प्रत्येक शिक्षक को कक्षा में अध्यापन के कम-से-कम एक दिन पूर्व पाठ-योजना तैयार करना होगा।
* कक्षा में अध्यापन के पूर्व उक्त पाठ-योजना को प्रधानाध्यापक/प्राचार्य द्वारा हस्ताक्षर कर सत्यापित किया जायेगा।
* शिक्षक को पाठ-योजना बनाते समय प्रकरण को एक या अधिक शिक्षण वि विभाजित करना चाहिए, परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि एक पाठ-योजना में शिक्षण बिंदुओं को समाहित किया जाए जितना शिक्षण बिंदु कक्षा अवधि में समाप्त हो जाए।
क.पाठ-योजना में प्रयुक्त होने वाली शिक्षण अधिगम सहायक सामग्री तथा उसके प्रयोग विधि को सुनिश्चित कर लेना चाहिए ताकि पाठ्य-वस्तु विद्यार्थियों के लिए सुगम एवं बोधगम्य हो।
कक्षा में शिक्षक द्वारा पाठ-योजना के प्रस्तुतीकरण में उचित शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाना चाहिए।
ख.शिक्षक को हमेशा शिक्षण बिन्दु को ध्यान में रखकर ही कक्षा में क्रियाकलाप को नियंत्रित करना चाहिए।
ग.कक्षा में शिक्षक एवं छात्र की क्रियाशीलता एक-दूसरे के पूरक हैं, इसका ध्यान शिक्षक को अवश्य रखना चाहिए, ताकि कक्षा में शिक्षक और छात्र की क्रियाशीलता आदर्श रहे।
घ.पाठ-योजना लेखन एवं शिक्षक द्वारा कक्षा में उसके कार्यान्वयन में श्यामपट्ट-कार्य का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका अनुपालन पाठ-योजना लेखन एवं उसके कार्यान्वयन में किया जाना चाहिए।
ङ.पाठ-योजना के कार्यान्वयन की समीक्षा छात्रों के मूल्यांकन के आधार पर किया जाता है, जो शिक्षक को कक्षा अध्यापन के दौरान रोचक ढंग से बीच-बीच में आवश्यकतानुसार करना चाहिए।
च.पाठ-योजना के कार्यान्वयन के क्रम में विद्यार्थियों की पठित विषय-वस्तु पर बेहतर समझ सुनिश्चित करने के लिए उक्त प्रकरण की पुनरावृत्ति की जानी चाहिए।
छ.पाठ-योजना के सफल कार्यान्वयन के उपरांत विद्यार्थियों को रचनात्मक गृह-कार्य दिया जाना चाहिए। शिक्षक को पाठ-योजना लेखन एवं कक्षा में उसके कार्यान्वयन में गृह-कार्य को आवश्यकतानुसार अवश्य स्थान देना चाहिए।