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गुरुवार, 17 नवंबर 2022

सन्धि-प्रकरणम्-सहायक

                                                          सन्धि-प्रकरणम्

     दो वर्णों के मिलने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे सन्धि कहते हैं-द्वयोः वर्णयोः मेलनेन यःविकारः उत्पन्नः 
भवति, सः सन्धिः कथ्यते।यथा -गण+ईशः-गणेशः,दिक्+अम्बर-दिगम्बरः,निः+मलः-निर्मसंधि के तीन प्रकार हैं- (क).स्वर सन्धि  (ख).व्यञ्जन सन्धि   (ग).विसर्ग सन्धि।   
 (क).स्वर सन्धि-दो स्वर वर्णों के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है,उसे स्वर संधि कहते हैं-द्वयोः स्वरवर्णयोः मेलनेन यः विकारः उत्पन्नः भवति,सः स्वर सन्धिः कथ्यते।जैसे- हिम+आलयः-हिमालयः,सूर्य+उदयः-सूर्योदयः,सदा+एव-सदैव,प्रति+एकः-प्रत्येकः, ने+अनम्-नयनम् इत्यादि। 
      स्वर सन्धि के मुख्यतः 5 प्रकार हैं- 1.दीर्घ सन्धि  2.गुण सन्धि  3.वृद्धि सन्धि  4.यण् सन्धि 5.अयादि सन्धि ।(ख).व्यञ्जन सन्धि-व्यञ्जन वर्ण का स्वर या व्यञ्जन वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है,उसे व्यञ्जन सन्धि कहते हैं-व्यंजनेन सह  स्वरस्य व्यंजनस्य वा  मेलनेन यः विकारः उत्पन्नः भवति सः  व्यञ्जन सन्धिः कथ्यते। इस संधि में दो वर्णों में से एक वर्ण  व्यंजन या दोनों वर्ण व्यजन हो सकते  हैं, किन्तु दोनों वर्ण स्वर नहीं हो सकतेजैसे-दिक्+गजः=दिग्गजः,जगत्+आनन्दः=जगदानन्दः इत्यादि। 
(ग).विसर्ग सन्धि-विसर्ग का स्वर या व्यंजन वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे  विसर्ग संधि कहते हैं-
विसर्गेण सह स्वरस्य व्यंजनस्य वा  मेलनेन यः विकारः उत्पन्नः भवति सःविसर्ग सन्धिः कथ्यतेजैसे- नि: + संदेहः -निस्संदेहः, मनः + भाव:- मनोभावः इत्यादि
1.दीर्घ सन्धि-
दो स्वर वर्णों के मिलने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। संस्कृत में इसे अच् सन्धि भी कहा जाता है, क्योंकि माहेश्वर सूत्र के आधार पर इसमें अच् प्रत्याहार के वर्णों का प्रयोग किया जाता है। स्वर संधि के मुख्यतः पांच प्रकार हैं, जिनमें से एक प्रकार  दीर्घ सन्धि का यहां परिचय कराया जायेगा।दो समान स्वरों के मिलने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे  दीर्घ संधि कहते हैं।माहेश्वर सूत्र के आधार पर इसकी परिभाषा या सूत्र है- अकः सवर्णः दीर्घः अर्थात् अक् प्रत्याहार के किसी स्वर के बाद उसी प्रत्याहार का समान स्वर आता है तो दोनों मिलकर दीर्घ स्वर बन जाते हैं अर्थात् अ, आ, इ, ई, उ,ऊ, ऋ वर्णों के बीच होने वाली संधि दीर्घ संधिकहलाती है। 
 नियम-1.जब दो शब्दों की संधि करते समय अ या आ के बाद अ या आ ही आता है तो ‘आ‘ बन  जाता है-अ +अ =आ,अ + आ = आ,आ + अ = आ,आ + आ = आ।
उदाहरण-
अ + अ = आ के आधार पर-सुर + अरि: = सुरारि:,स्व + अधीनः=स्वाधीनः,सर्व +अधिकः =सर्वाधिकः, परम + 
अर्थः = परमार्थः।अ + आ = आ के आधार पर- हिम + आलयः = हिमालयः,अंड + आकारः=अंडाकारः ,अल्प + आयुः=अल्पायुः।
आ + अ = आ के आधार पर-आत्मा+अवलंबनम् =आत्मावलंबनम्,विद्या + अर्थी = विद्यार्थी,विद्या + अभ्यासःविद्याभ्यासः,दया + अर्णव: = दयार्णव:।
आ + आ = आ के आधार पर-महा+आशयः=महाशयः,दुर्भगा+आभरणम्=दुर्भगाभरणम्,महा+आकारः=महाकारः।
नियम-2-जब दो शब्दों की संधि करते समय इ या ई के बाद इ या ई ही आता है तो ‘ई‘ बन जाता है- इ + इ = 
ई,इ + ई = ई,ई + इ = ई,ई + ई = ई ।
उदाहरण-
इ + इ = ई के आधार पर-रवि + इन्द्रः = रवीन्द्रः,मुनि + इन्द्रः = मुनीन्द्रः, गि‍रि + इन्‍द्र: = गिरीन्‍द्र:
इ + ई = ई के आधार पर-गिरि + ईशः = गिरीशः,मुनि + ईशः = मुनीशः , कवि + ईश्वरः = कवीश्वरः, हरि + ईशःहरीशः,क्षिति + ईश: = क्षितीश:।
ई + इ = ई के आधार पर-मही + इन्द्रः = महींद्रः,नारी + इन्दुः = नारीन्दुः,सुधी + इन्‍द्र: = सुधीन्‍द्रः ।
ई + ई = ई के आधार पर-नदी + ईशः = नदीशः,मही + ईशः = महीशः,श्री + ईश: = श्रीश: ।
नियम-3-जब दो शब्दों की संधि करते समय उ या ऊ के बाद उ या ऊ ही आता है तो ‘ऊ‘ बन जाता है- उ + उ =ऊ ,उ + ऊ = ऊ, ऊ + उ = ऊ,ऊ + उ = ऊ,ऊ + ऊ = ऊ। 
उदाहरण-
उ + उ = ऊ के आधार पर- भानु + उदयः = भानूदयः,विधु + उदयः = विधूदयः,लघु+उत्तर-लघूत्तर।
उ + ऊ = ऊ के आधार पर-लघु + ऊर्मिः = लघूर्मिः,सिंधु + ऊर्मिः = सिंधूर्मिः।
ऊ + उ = ऊ के आधार पर- वधू + उत्सवः = वधूत्सवः,वधू + उल्लेखः = वधूल्लेखः।
ऊ + ऊ = ऊ के आधार पर- भू + ऊर्ध्वः = भूर्ध्वः,वधू + ऊर्जा = वधूर्जा,भू + उत्तमम् = भूत्तमम्।
नियम-4-जब दो शब्दों की संधि करते समय ऋ या ऋृ के बाद ऋ या ऋृ  ही आता है तो ‘ऋृ‘ बन जाता है। 
उदाहरण- ऋ + ऋ = ऋृ के आधार पर-पितृ + ऋणम् = पितृृृणम्,होतृ+ऋकारः =होतृकारः।
 2. गुण सन्धि- 
 यदि अ या आ के बाद इ, ई, उ, ऊ,ऋ,ऋृ और लृ में से कोई एक स्वर आने से जो विकार उत्पन्न होता है,तो उसे गुण
 सन्धि कहते हैं-अदेङ्गुणः अथवा आद्गुणःगुण का अर्थ यहाँ पर ए, ओ, अर् और अल् से है।
नियम-1-अ या आ के बाद इ या ई आने से ए हो जाता है- अ+इ = ए,अ+ई = ए,आ+इ = ए, आ+ई = ए  ।
उदाहरण-
अ+इ = ए के आधार पर-देव+इन्द्रः = देवेन्द्रः,नर + इन्द्रः = नरेन्द्रः,नृप + इन्द्रः = नृपेन्द्रः। 
अ+ई = ए के आधार पर-गण+ईशः = गणेशः,धन + ईशः = धनेशः, परम + ईश्वरः=परमेश्वरः।
आ+इ = ए के आधार पर-महा + इन्द्रः = महेन्द्रः,यथा + इच्छा = यथेच्छा,यथा + इष्ठः = यथेष्ठः।
आ+ई = ए के आधार पर-महा+ईशः = महेशः,उमा + ईशः = उमेशः, रमा + ईशः = रमेशः।
नियम-2-अ या आ के बाद उ या ऊ आने से ओ हो जाता है-अ+उ = ओ,अ+ऊ = ओ,आ+उ = ओ,आ+ऊ = 
ओ।
अ+उ=ओ के आधार पर-सूर्य+उदयः=सूर्योदयः,नर+उत्तमः=नरोत्तमः,प्रश्न+उत्तरः=प्रश्नोत्तरः।
अ+ऊ=ओ के आधार पर-जल + ऊष्मा = जलोष्मा,समुद्र + ऊर्मिः = समुद्रोर्मिः, जल + ऊर्जा = जलोर्जा।
आ+उ = ओ के आधार पर-महा+उदयः=महोदयः,महा+उत्सवः=महोत्सवः,मया+उद्भाव्यः=मयोद्भाव्यः।
आ+ऊ = ओ के आधार पर-महा+ऊष्मा=महोष्मा,गंगा + ऊर्मिः=गंगोर्मिः, महा + ऊर्जा=महोर्जा।
नियम-3-अ या आ के बाद ऋ या ऋृ आने से अर् हो जाता है-अ+ऋ = अर्,आ+ऋ = अर् 
अ+ऋ = अर् के आधार पर-कण्व + ऋषिः=कण्वर्षिः,उत्तम + ऋणः=उत्तमर्णः,देव + ऋषिः=देवर्षिः।
आ+ऋ = अर् के आधार पर-महा + ऋषिः = महर्षिः, महा + ऋणः = महर्णः।
नियम-4-अ या आ के बाद लृ आने से अल्  हो जाता है-अ+लृ = अल्,आ+लृ = अल् ।
अ+लृ = अल् के आधार पर- तव+लृकारः=तवल्कारः।
आ+लृ = अल् के आधार पर-महा+लृकारः=महाल्कारः 
3.वृद्धि सन्धि-
वृद्धिरेचि अथवा वृद्धिरादैच्-यदि अ या आ के बाद ए,ऐ,ओ,और औ में से कोई एक स्वर आने से जो विकार उत्पन्न
होता है,तो उसे वृद्धि सन्धि कहते हैं।अंतिम स्वर में वृद्धि हो जाने के कारण ही इसे वृद्धि संधि कहते हैं ।
नियम 1-अ या आ के बाद ए या ऐ आता है तो ऐ हो जाता है-अ/आ+ए/ऐ=ऐ । 
अ+ए=ऐ के आधार पर-अद्य + एव = अद्यैव,एक + एकः = एकैकः,अनेक + एकः = अनेकैकः।
अ+ऐ=ऐ के आधार पर- मत + ऐक्यः = मतैक्यः,देव + ऐश्‍वर्यम् = देवैश्‍वर्यम्,राज + ऐश्वर्यम्‌= राजैश्वर्यम् ।
+ए=ऐ के आधार पर- तथा + एव = तथैव,सदा + एव = सदैव, सा + एषा= सैषा।
+ऐ-ऐ के आधार पर-  विद्या + ऐश्‍वर्यम् = विद्यैश्‍वर्यम्,महा + ऐश्र्वर्यम्=महैश्र्वर्यम् ,महा+ऐरावतः=महैरावतः।
नियम-2-अ या आ के बाद ओ या औ आता है तो औ हो जाता है-अ/आ+ओ/औ=औ।
 + ओ = औ के आधार पर- तण्‍डुल + ओदनम् = तण्‍डुलौदनम्,वन + ओषधिः = वनौषधिः,परम + ओजस्वी 
=परमौजस्वी।
आ + ओ = औ के आधार पर- महा + ओषधिः = महौषधिः,महा + ओजस्वी =महौजस्वी, महा + ओजः= महौज:   
अ + औ = औ के आधार पर-  परम + औषधः = परमौषधः,न + औघः= नौघः,परम+औदार्यः = परमौदार्यः।
आ + औ = औ के आधार पर-  महा + औषधः = महौषधः,महा+औदार्यः = महौदार्यः,तदा + औषधम् = तदौषधम्।
 4. यण् संधि-
 यदि इ, ई, उ, ऊ, ऋ,ऋृ,और लृ के आगे कोई भिन्न स्वर आने से जो विकार उत्पन्न होता है,तो उसे  यण् 
सन्धि कहते हैं-इकोयणचि 
यण् संधि के चार नियम होते हैं-
नियम-1. इ, ई के आगे कोई असमान स्वर होने पर इ, ई का 'य्' हो जाता है-इ, ई + भिन्न स्वर = य् ,
उदाहरण-
इ + अ = य के आधार पर-अति + अल्पम् = अत्यल्पम्,अति + अधिकम् = अत्यधिकम्,प्रति + अक्षम् = प्रत्यक्षम्,अति + अन्तम्= अत्यन्तम् ,यदि + अपि= यद्यपि
ई + अ = य् के आधार पर-देवी + अर्पणम् = देव्यर्पणम्। 
इ+आ=या के आधार पर-प्रति + आघातम् = प्रत्याघातम्,अति + आवश्यकम्= अत्यावश्यकम् ।
ई+आ=या के आधार पर-नदी+आगम्=नद्यागम्।
इ+उ= यु के आधार पर-अति+उत्तमम्= अत्युत्तमम्।
इ+ऊ=यू के आधार पर-अति+ऊष्मम्= अत्यूष्मम्।
इ+ए=ये के आधार पर-प्रति+एकम्= प्रत्येकम् इत्यादि
नियम-2. उ, ऊ के आगे किसी असमान स्वर के आने पर उ ऊ का 'व्' हो जाता है-उ,ऊ+भिन्न स्वर=व् । 
उदाहरण-
+अ=व के आधार पर-अनु+अयम्= अन्वयम्
उ+आ के आधार पर=वा-सु+आगतम् = स्वागतम्
+आ के आधार पर=वा-वधू+आगमनम्= वध्वागमनम्  
उ +इ के आधार पर=वि-अनु+इतम्= अन्वितम्
ऊ+इ के आधार पर=वि-वधू+इच्छा-वध्विच्छा
उ+ए के आधार पर=वे-अनु + एषणम्= अन्वेषणम्
उ+ओ के आधार पर=वो-गुरु + ओदनम्= गुर्वोदनम्
उ+औ के आधार पर=वौ-गुरु+औदार्यम्= गुरवौदार्यम् इत्यादि
नियम-3.ऋ,ऋृ के आगे किसी असमान स्वर के आने पर ऋ को 'र्' हो जाता है-ऋ,ऋृ + भिन्न स्वर = र् ।
उदाहरण-
+अ =र के आधार पर-पितृ+अर्थम्-पित्रर्थम्।
ऋ+आ के आधार पर=रा-पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा इत्यादि
नियम-4.लृ के आगे किसी असमान स्वर के आने पर लृ को 'ल्' हो जाता है-लृ+ भिन्न स्वर = ल्। 
उदाहरण- 
लृ+अ= के आधार पर-लृ+अर्थम्=लर्थम्।
लृ+आ=ला के आधार पर-लृ+आकृति= लाकृति इत्यादि।
5.अयादि संधि-
यदि ए, ऐ, ओ और औ के बाद दूसरा स्वर आता है तो  जो विकार उत्पन्न होता है, तो उसे अयादि संधि कहा जाता है।जब ए, ऐ, ओ और औ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है तो ‘ए’ का अय, ‘ऐ’ का आय्, ‘ओ’ का अव् और ‘औ’ का  आव् हो जाता है- एचोऽयवायाव:।
इसके चार नियम हैं-
नियम-1.'' के आगे किसी असमान स्वर के आने पर '' को 'अय्' हो जाता है-ए + भिन्न स्वर=अय्।
उदाहरण-ने+अनम्=नयनम्,चे+अनम्=चयनम्,शे+अनम्=शयनम् इत्यादि।
नियम-2.'' के आगे किसी असमान स्वर के आने पर '' को 'आय्' हो जाता है-ऐ + भिन्न स्वर=आय् ।
उदाहरण-नै+अकः=नायकः,गै+अकः=गायकः,विधै+अकः=विधायक:इत्यादि।
नियम-3.'ओ' के आगे किसी असमान स्वर के आने पर 'ओ' को 'अव्' हो जाता है-ओ + भिन्न स्वर = अव्।
उदाहरण-पो+अनम्=पवनम्,भो+अनम्=भवनम् ,श्रो+अनम्-श्रवणम् इत्यादि।
नियम-4.'औ' के आगे किसी असमान स्वर के आने पर 'औ' को 'आव्' हो जाता है-औ+भिन्न स्वर = आव्।
उदाहरण-पौ + अकः=पावकः,भौ+उकः=भावुकः,शौ+अक:=शावकः इत्यादि।  
स्वर संधि के अन्य विविध प्रकार-
1.वैकल्पिक स्वर सन्धि- यह अयादि सन्धि का वैकल्पिक सन्धि या अपवाद है। महान् वैयाकरण महर्षि शाकल्य 
के मतानुसार  पहले पद के अंतिम वर्ण ए,ऐ,ओ,औ से पहले अवर्ण अर्थात् अ या आ हो तो यहां अयादि सन्धि 
नहीं होता है,परंतु महर्षि पाणिनि के मतानुसार यहां अयादि सन्धि होता है। इस प्रकार पहले पद के अंतिम वर्ण
ए,ऐ,ओ,औ से ठीक पहले  यदि अवर्ण अर्थात् अ या आ हो  तथा बाद में अश् प्रत्याहार अर्थात् स्वर वर्ण या किसी 
वर्ग का तीसरा,चौथा और पांचवां वर्ण अथवा ह,य,व,र,ल में से कोई वर्ण आता हो तो य् और व् का लोप हो जाता है। 
यह लोप शाकल्य के मतानुसार होता है- लोपः शाकल्यस्य। इस कारण इसे शाकल्य स्वर संधि कह सकते हैं।परंतु 
पाणिनि के मतानुसार यह लोप नहीं होता है। यथा-हरे+इह-हरयिह/हर इह,तस्यै+इमानि-तस्यायिमानी/
तस्याइमानि,रात्रौ+आगतः-रात्रावागतः/रात्रा आगतः,ऋतौ+अन्नम्-ऋतावन्नम्/ऋता अन्नम्,विष्णो+इह-विष्णविह/
विष्णइह इत्यादि।
2. पूर्व रूप सन्धि- यदि किसी पद के अन्त में स्थित  'ए या ओ' के बाद 'अ' आता है तो 'अʼ के स्थान 
पर लुप्ताकर या अवग्रह हो जाता है-एङःपदान्तादति।यथा-  सर्वे+अपि-सर्वेЅपि,वने+अत्र-वनेЅत्र,बालो+अवदत्-
बालोЅवदत्,लोको+अयम्-लोकोSयम्,ते+अपि = तेऽपि  इत्यादि।
3.पररूप सन्धि-यदि किसी उपसर्ग  अन्त में 'अ'हो तथा उसके बाद ए अथवा ओ से प्रारंभ होने वाली धातु से बनी 
कोई क्रिया आती हो तो पहले वाला 'अ' बाद वाले 'ए' या'ओ'के रूप में बदल जाता है। इस कारण इसे पररूप 
संधि कहते हैं।यथा- प्र+एजते-प्रेजते, उप+ओषति-उपोषति,मार्त+अण्डः-मार्तण्डः इत्यादि।
4.प्रगृह्य सन्धियदि द्बिवचन वाले शब्दों के अन्त में ई,ऊ अथवा ए हो तथा उसके बाद कोई भी स्वर हो तो दोनों में 
से कोई भी सन्धि  नहीं होती।इस कारण इसे संधि के नियमों से मुक्त अर्थात् प्रगृह्य सन्धि अथवा अपने रूप में ही 
रह जाने वाला प्रकृतिभाव सन्धि  कहते हैं।यथा- कवी + इच्‍छत:,विष्‍णू + इमौ,बालिके + आगच्‍छत: इत्यादि।
व्यंजन सन्धि-
व्यंजन वर्ण का स्वर या व्यंजन वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है,उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं। यथा-
अच्+अन्तः-अजन्तः,दिक्+गजः-दिग्गजः,सम्+कृतम्-संस्कृतम् इत्यादि।
सूत्र या नियम-
नियम-1.स्तोःश्चुना श्चुः-श्चुत्व सन्धि-'स्' वर्ण या तवर्ग के वर्णों के बाद में 'श्' वर्ण अथवा चवर्ग का 
कोई वर्ण आता है,तो 'स्' वर्ण 'श्' वर्ण में बदल जाता है तथा चवर्ग  का वर्ण क्रमशः तवर्ग के वर्ण में बदल 
जाता है। 
(ख). तवर्ग के किसी वर्ण के साथ में 'श' या चवर्ग का कोई वर्ण आता है, तो तवर्ग के वर्ण के स्थान पर 
क्रमशः चवर्ग का वर्ण हो जाता है। यथा-उत्+चारणम्=उच्चारणम्,सत्+चरित्रम्=सच्चरित्रम्,जगत्+जननी=जगज्जननी,सत्+चित्=सच्चित्, एतत्+जलम्=एत
ज्जलम्,बृहत्+झरः=बृहज्झरः,सत्+जनः=सज्जन:,उत्+ज्वलः=उज्ज्वलः,याच्+नायाञ्चा, सन्+जयः=सञ्जयः,सन्+श
म्भुः=सञ्शम्भुः,शार्ङ्गिन्+जय=शार्ङ्गिञ्जय इत्यादि।
नियम-2.ष्टुना ष्टुः-ष्टुत्व सन्धि- सवर्ण अथवा तवर्ण के बाद में षवर्ण अथवा टवर्ग का कोई वर्ण आता है तो 
सवर्ण, षवर्ण में तथा तवर्ग टवर्ग  में बदल जाता है। 
(क).'स्' या 'ष्' अथवा विसर्ग के बाद 'ष्' या तवर्ग का कोई वर्ण आता है तो 'स्' या 'ष्' के स्थान पर 'ष्' हो जाता है।
यथा-बालस्+षष्ठः-बालष्षष्ठः,बालः+षष्ठः-बालष्षष्ठः,रामस्+षष्ठः-रामष्षष्ठः,रामः+षष्ठः-रामष्षष्ठः,रामस्+टीकते-रामष्टीकते,रामः+टीकते-रामष्टीकते,इष्+तः-इष्टः,कृष्+नः-कृष्णः,विष्+नुः-विष्णुः,आकृष्+तः-आकृष्टः इत्यादि।
 (ख).तवर्ग के किसी वर्ण के बाद टवर्ग का कोई वर्ण आता है, तो तवर्ग का वर्ण  टवर्ग के वर्ण में बदल जाता है।यथा-
तत्+टीका-तट्टीका,तत्+ठकारः-तट्ठकारः,तत्+डमरुः-तड्डमरुः,उत्+डयनम्-उड्डयनम्.चक्रिन्+ढौकसे-चक्रिण्ढौकसे इत्यादि।    
नियम-3.झलां जशोSन्ते-जश्त्व सन्धि- झल् प्रत्याहार अर्थात् वर्गों के  पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे तथा श,ष,स,ह
 वर्ण  के बाद किसी भी वर्ग का पहला, तीसरा चौथा और पांचवां वर्ण या कोई स्वर वर्ण आता है, तो पहले 
झल् प्रत्याहार के वर्ण के स्थान पर जश् प्रत्याहार अर्थात् उसी वर्ग का तीसरा वर्ण अर्थात् ग्,ज्,ड्,द्,ब् हो जाता है।यथा-वाक्+ईशः-वागीशः,चौरात्+भयम्-चौराद्भयम्,अच्+अन्तः-अजन्तः,षट्+दर्शनम्-षड्दर्शनम्,जगत्+ईशः-
जगदीशः, दिक्+अम्बरः-दिगम्बरः इत्यादि।  
नियम-4.झलां जश झशि- झल् प्रत्याहार अर्थात् वर्गों के पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे तथा श,ष,स,ह वर्ण  के बाद
 झश् प्रत्याहार अर्थात्  किसी भी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण आता है, तो झल् प्रत्याहार के वर्ण के स्थान पर जश्प्रत्याहार अर्थात् उसी वर्ग का तीसरा वर्ण अर्थात् ग्,ज्,ड्,द्,ब्  हो जाता है। यथा-धनात्+धर्मः-धनाद्धर्मः, तिर्यक्+
 गच्छति- तिर्यग्गच्छति, लभ्+धः-लब्धः,सिध्+धिः-सिद्धिः,अप्+जः-अब्जः,आरभ्+धम्-आरब्धम् इत्यादि।  नियम-5.तोर्लिः-यदि तवर्ग के किसी वर्ण के बाद 'ल्' आता है, तो तवर्ग के स्थान पर 'ल्' हो जाता है तथा यदि 
'न्' वर्ण के बाद 'ल्' आता है, तो तवर्ग के स्थान पर अनुनासिक 'ल्ँ' हो जाता है।यथा-उत्+लंघनम्-उल्लंघनम्, तत्+लीनम्-तल्लीनम्,घृत्+लेपनम्-घृल्लेपनम्,बलवान्+लोके-बलवाँल्लोके,भवान्+लुब्धः-भवाँल्लुब्धः इत्यादि।             
नियम-6.यरोSनुनासिकेSनुनासिको वा- यदि पहले यर् अर्थात् ह को छोड़कर किसी भी व्यंजन वर्ण के बाद
अनुनासिक अर्थात् सभी वर्गों के अंतिम वर्ण ङ,ञ,ण,न,म आता है, तो पहले वाला वर्ण अपने वर्ग का पांचवा वर्ण हो
 जाता है।यथा-दिक्+नागः-दिङ्नागः,सत्+मतिः-सन्मतिः,तत्+न-तन्न,चेत्+न-चेन्न,पद्+नगः-पन्नगः इत्यादि। नियम-7.शश्छोSटि-यदि झय् प्रत्याहार अर्थात् किसी वर्ग के पहले.दूसरे,तीसरे और चौथे वर्ण के बाद 'श' हो तथा
 'श' के बाद कोई स्वर वर्ण अथवा ह्,य्,व्,र् वर्ण हो तो 'श' के स्थान पर विकल्प से 'छ्' हो जाता है अर्थात् 'छ्' होता भी है और नहीं भी होता है। यथा-तत्+शिव-तच्छिवः/तच्शिवः,तत्+शिला-तच्छिला/तच्शिला,सत्+शीलः-सच्छीलः/सच्शीलः,तत्+शिरः-तच्छिरः/तच्शिरः,तत्+शरणम्-तच्छरणम्/तच्शरणम् इत्यादि।       नियम-8.मोSनुस्वारः-यदि 'म्' के बाद कोई हल् या व्यंजन वर्ण आता है,तो 'म्' क्या स्थान पर अनुस्वार हो जाता
 है।यथा-सम्+न्यासी-संन्यासी,सम्+योगः-संयोगः,यशान्+शि-यशांसि,चेतान्+शि-चेतांसि,हरिम्+वन्दे-हरिं वन्दे, दुःखम्+सहते-दुःखं सहते,धनम्+यच्छ-धनं यच्छ इत्यादि।
नियम-9.नश्चापदान्तस्य झलि-यदि 'न्' अथवा 'म्' के बाद झल् प्रत्याहार अर्थात् किसी भी वर्ग का पहला,दूसरा,तीसरा और चौथा अथवा श,ष,स आता है, तो 'न्' अथवा 'म्' के स्थान पर अनुस्वार हो जाता हैयथा-पयान्+सि-पयांसि,नम्+स्यति-नंस्यति,यशान्+सि-यशांसि,चेतान्+सि-चेतांसि,आक्रम्+स्यते-आक्रंस्यते इत्यादि।
नियम-10.अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः-यदि 'न्' अथवा 'म्' या अनुस्वार के बाद ही यय् प्रत्याहार अर्थात्
श,ष,स,ह को छोड़कर कोई दूसरा व्यंजन वर्ण हो तो अनुस्वार के अस्थान पर परसवर्ण अर्थात् अगले वर्ण कापांचवां वर्ण हो जाता हैयथा-अन्/अं+कितः-अङ्कितः,अन्/अं+चितः-अञ्चितः,कुन्/कुं+ठितः-कुण्ठितः,शम्/शं+भूः-
शम्भूः,दन्/दं+तः-दन्तः,अहम्/अहं+कारः-अहंकारः,शाम्/शां+तः-शान्तः  इत्यादि।          
नियम-11.वा पदान्तस्य-किसी पद के अन्त में यदि 'न्' अथवा 'म्' या अनुस्वार के बाद यय् प्रत्याहार अर्थात्
श,ष,स,ह को छोड़कर कोई दूसरा व्यंजन वर्ण हो तो अनुस्वार का परसवर्ण अर्थात् अगले वर्ण का पांचवा वर्ण
 विकल्प से होता है अर्थात् परसवर्ण होता भी है और नहीं भी होता हैयथा-त्वम्/त्वं+करोषि-त्वंङ्करोषि/त्वं करोषि,
 ग्रामम्/ग्रामं+गच्छति-ग्रामङ्गच्छति/ग्रामं गच्छति,तृणम्/तृणं+चरति-तृणञ्चरति/तृणं चरति  इत्यादि।नियम-12.नश्छव्य प्रशान्- यदि 'न्' के बाद छव् प्रत्याहार अर्थात् च्,छ्,ट्,ठ्,त्,थ् आता है तो 'न्' के स्थान पर
अनुस्वार या चंद्रबिंदु तथा च् या छ् रहने पर 'श्', ट् या ठ् रहने पर  'ष्', त् या थ् रहने पर 'स्'  हो जाता हैयथा-कस्मिन्+चित्-कस्मिंश्चित्,हसन्+चलति-हसंश्चलति,भवान्+चलति-भवाँश्चलति,चलन्+टिट्टिभिः-चलष्टिट्टिभिः,
 महान्+टङ्कारः-महांष्टङ्कारः,हसन्+ठक्कुरः-हसंष्ठक्कुरः,महान्+छिद्रः-महांश्छिद्रः,तस्मिन्+तरौ-तस्मिंस्तरौ,
चक्रिन्+त्रायस्व-चक्रिंस्त्रायस्व  इत्यादि।
अपवाद-प्रशान्+तनोति-प्रशान्तनोति।                   
नियम-13.समः सुटि-सम् उपसर्ग के बाद कृ धातु से बना कोई शब्द आता हो तो दोनों के बीच में 'स्' नहीं रहने पर
 सुट् अर्थात् 'स्' का आगमन हो जाता है तथा 'म्' का अनुस्वार या चंद्रबिंदु हो जाता हैयथा-सम्+कृतिः-संस्कृतिः, सम्+कारः-संस्कारः, सम्+कृतम्-संस्कृतम्, सम्+करणम्-संस्करणम्,सम्+कर्त्ता-संस्कर्त्ता  इत्यादि।
नियम-14.झयो होSन्यतरस्याम्-झय् प्रत्याहार अर्थात किसी वर्ग के पहले दूसरे तीसरे और चौथे वर्ण के बाद 'ह्' होतो पहले वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा वर्ग तथा  'ह्' के स्थान पर उसी वर्ग का चौथा वर्ण विकल्प से होता है अर्थात् चौथा वर्ण होता भी है और नहीं भी होता हैयथा-वाक्+हरिः-वाग्घरिः/वाग्हरिः,तत्+हितः-तद्धितः/तद्हितः,उत्+हारः-उद्धारः/उद्हारः,उत्+हृतम्-उद्धृतम्/उद्हृतम्,अप्+हरणम्-अब्भरणम्/अब्हरणम्,तत्+हानिः-तद्धानिः/तद्हानिः,अच्+ह्रस्व-अज्ह्रस्वः  इत्यादि।     
 नियम-15.खरि च-झल् प्रत्याहार अर्थात् अनुनासिक व्यंजन-ञ्,म्,ङ्,ण्,न् तथा अंतस्थ व्यंजन -य्,र्,ल्,व् को
छोड़कर किसी भी व्यंजन के बाद यदि खर् प्रत्याहार अर्थात् क्,ख्,च्,छ्,ट्,ठ्,त्,थ्,प्,फ् में से कोई वर्ण आता है तोपहले वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का पहला वर्ण  हो जाता हैयथा-विपद्+कालः-विपत्कालः/तज्+शिवः-तच्शिवः,
 दिग्+पालः-दिक्पालः,सद्+कारः-सत्कारः,शरद्+सदृशः-शरत्सदृशः इत्यादि।
नियम-16.वावसाने- झल् प्रत्याहार अर्थात् अनुनासिक व्यंजन-ञ्,म्,ङ्,ण्,न् तथा अंतस्थ व्यंजन -य्,र्,ल्,व् को
 छोड़कर किसी व्यंजन के बाद कोई भी वर्ण नहीं हो तो वह तीसरे वर्ण में बदल जाता हैयथा-रामात्-रामाद्,वाक्-वाग्  इत्यादि। 
 नियम-17.छे च-यदि ह्रस्व स्वर के बाद 'छ्' आता है, तो 'छ्' के पहले 'च्' जुड जाता है अर्थात् 'च्' का आगमनहोजाता है।यथा-वृक्ष+छाया-वृक्षच्छाया,शिव+छाया-शिवच्छाया,तरु+छाया-तरुच्छाया,वि+छेदः-विच्छेदः,अनु+छेदः-अनुच्छेदः,परि+छेदः-परिच्छेदः,स्व+छन्दः-स्वच्छन्दः  इत्यादि।
नियम-18.पदान्तात् वा- यदि किसी पद के अंतिम दीर्घ स्वर के बाद 'छ्' आता है, तो 'छ्' के पहले विकल्प से
 'च्' आगम हो जाता है अर्थातं 'च्' का आगमन होता भी है तथा नहीं भी होता है।यथा-लक्ष्मी+छाया-लक्ष्मीच्छाया/लक्ष्मी छाया,श्री+छत्रम्-श्रीच्छत्रम्/श्री छत्रम् इत्यादि। 

विसर्ग सन्धि-
विसर्ग का स्वर अथवा व्यञ्जन वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है तो उसे  विसर्ग सन्धि कहते हैं।यथा-मनः+जः-
मनोजः,निः+अक्षरः-निरक्षरः,कुत:+ अत्र=कुतोऽत्र,यश:+दा=यशोदा  इत्यादि।
प्रमुख नियम-
(1) विसर्जनीयस्य सः–यदि विसर्ग के बाद खर् प्रत्याहार का वर्ण 'च्'या' छ्' आता है तो  विसर्ग के स्थान पर 'श्',
'ट्'या 'ठ्' के रहने पर 'ष' तथा 'त' या 'थ' रहने पर 'स्' हो जाता है-
(क) यदि विसर्ग के बाद 'च्' या' छ्' आता है तो  विसर्ग के स्थान पर  'श्',हो जाता है।यथा-बाल:+चलति=बालश्चति, 
कः + चित्-कश्चित्,हरिः + चन्द्र:- हरिश्चन्द्रः।निः+छल:-निश्छल:,वेणुः+चन्दनायते=वेणुश्चन्दनायते  इत्यादि।
(ख) यदि विसर्ग के बाद 'ट्'या 'ठ्' आता है तो  विसर्ग के स्थान पर  'ष',हो जाता है।यथा-धनु: + टङ्कारः =धनुष्टङ्कारः, 
चतुरः +ठक्कुर:=चतुरष्ठक्कुरः इत्यादि।
(ग) यदि विसर्ग के बाद 'त' या 'थ आता है तो  विसर्ग के स्थान पर 'स्' हो जाता है।यथा-तः+था-तस्था,सरः+तीरे-
सरस्तीरे,अधिकार:+ते-अधिकारस्ते,विष्णुः,त्रायते-विष्णुस्त्रायते,हरिः + त्राता-हरिस्त्राता,ततः+तम्-ततस्तम् ।
(घ)यदि विसर्ग के बाद 'क्' या 'ख्' अथवा 'प्' या 'फ्' आता है, तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। यथा-
कः+कथयति-कः कथयति,सः+खनति-सः खनति,छात्र:+पठति-छात्रः पठति।वृक्षः+फलति-वृक्षः फलति इत्यादि।
(2)वा शरि-यदि विसर्ग के बाद शर् प्रत्याहार के वर्ण श्, ष्, स्  वर्ण हों तो विसर्ग के स्थान पर विसर्ग विकल्प         
से  वही वर्ण हो जाता है। यहाँ 'स्तोः शचुना शत्रु' एवं ''टुना ष्टुः' सूत्र के व्याधार पर विसर्ग के स्थान पर विकल्प से 
क्रमश: 'श्', 'ष्', 'स्' हो जाते हैं।यथा-,निः+सन्देहः -निःसन्देहः निस्संदेहः,राम: + षष्ठः- रामष्षष्ठः/रामः 
षष्ठः,बाल:+स्वपिति-बाल:स्वपिति/बालस्स्वपिति,निः+सार:-निःसार/ निस्सारः,हरि:+शेते- हरि: शेते/
हरिश्शेते,राम:+शेते- रामः शेते/रामश्शेते इत्यादि ।
(3)अतोरोरप्लुतादप्लुते- यदि विसर्ग के आगे-पीछे 'अ' हो तो विसर्ग के स्थान पर 'उ' तथा यह 'उ' पहले के 'अ' 
मिलकर गुण सन्धि का नियमानुसार 'ओ' हो जाता है तथा बाद वाले  'अ' के स्थान पर अवग्रह (S) हो जाता है।यथा-
सः+अहम्-सोऽहम्,प्रथमः+ अध्यायः-प्रथमोऽध्यायः, कः+अस्ति-कोऽस्ति,नृपः+अवदत् - नृपोऽवदत्, कः + अयम्- 
कोऽयम् इत्यादि।
(4)हशि च-यदि विसर्ग के पहले 'अ' हो और बाद में हश् प्रत्याहार अर्थात् किसी  भी वर्ग का तीसरा,चौथा तथा 
पाँचवाँ वर्ण अथवा 'य्. र्, ल्. व्, ह्' वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान पर 'उ' हो जाता है। वही 'उ' अपने पूर्व वर्ण 'अ' से 
मिलकर गुण-सन्धि के नियम के अनुसार 'ओ' में बदल जाता है। यथा-मनः + रमम्- मनोरमम्,मनः + रञ्जनम्- 
मनोरञ्जनम्,रामः+वदति-रामोवदति,सर:+वर:-सरोवरः,मनः+रथः-मनोरथः,यशः+बलम्-यशोबलम्,शोभन:+ग्रन्थः-
शोभनोग्रन्थः,मनः+भाव:-मनोभावः,मनः+हरः-मनोहरः इत्यादि।
(5)ससजुषो रुः–यदि विसर्ग के पहले 'अ' या 'आ' को छोड़कर कोई दूसरा स्वर हो तथा बाद में कोई भी स्वर वर्ण 
या हश् प्रत्याहार अर्थात् किसी  भी वर्ग का तीसरा,चौथा तथा पाँचवाँ वर्ण अथवा 'य्. र्, ल्. व्, ह्' वर्ण हो तो विसर्ग के 
स्थान पर 'र्' हो जाता है। यथा-पितुः+इच्छा-पितुरिच्छा,बधूः+एषा-बधूरेषा, निः+उपाय:-निरुपायः,बन्धुः+वयः-
बन्धुर्वयः,दु:+आचार:-दुराचारः,वपुः+आख्याति-वपुराख्याति,पुनः+अपि-पुनरपि,दुः+गत:-दुर्गतः इत्यादि।
         यदि पदान्त 'स्' अथवा 'सजुष्' शब्द का 'ष्' हो तो 'स्' अथवा 'ष्' का 'रु' होकर 'र्' शेष रह जाता है,जो विसर्ग 
में बदल जाता है। यथा-रामस्-रामरु -रामः,सजुष्-सजुरु- सजुर्-सजुः । 
(6)रोरि/ढ्रलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽण:- यदि 'र्' या विसर्ग के बाद 'र्' आता है  तो पहले वाले 'र्' का लोप हो जाता है। 
इसी प्रकार 'ढ्' के बाद  'ढ्' आता है,तो पहले वाले 'ढ्' का लोप हो जाता है तथा इसके  पहले स्थित अण् अर्थात् ह्रस्व 
स्वर-'अ', 'इ', 'उ' का दीर्घ हो जाता है।ये दोनों सूत्र एक-दूसरे के पूरक हैं। यथा-अन्तः-अन्तर्-राष्ट्रिय:-
अन्ताराष्ट्रिय:,नि:-निर्- रोग:- नीरोगः,गुरुः-गुरुर् +रुष्टः-गुरुरुष्टः,हरिः-हरिर्+रम्य:- हरी रम्यः,पुनः-पुनर्+रमते, 
पुनारमते,शम्भु:-शम्भुर्+राजते- शम्भू राजते,नि:-निर्+रस:-नीरसः,लिढ्+ढः:- लीढः,उढ्+ढा-ऊढा इत्यादि।
         अपवाद-1.यदि 'र' अथवा 'ढ्' के पहले अ, इ, उ  स्वर को छोड़कर 'ऋ' स्वर हो तो उसका दीर्घ नहीं होता तथा 'र' अथवा  'ढ्' का  पूर्ववत् लोप हो जाता है। यथा-दृढ्+ढः-दृढः,तृढ्+ढः-तृढः, वृढ्+ढः-वृढः इत्यादि।
                   2.यदि 'पुनारमते' को छोड़कर अन्य दूसरे शब्दों में  'र्' के पूर्व 'अ' हो तो पूर्वोक्त नियम नहीं लगता।यथा-मनर् रथ:- मनोरथः । 
                  3.यदि विसर्ग का 'र्' हो तथा उसके पहले 'अ' हो तो भी दीर्घ नहीं होता।यथा-रामः-रामर्+राजते-रामो राजते।  
(7) इदुदुपधस्य चाप्रत्ययः- इत् उत्+उपधस्य+च+अप्रत्ययः-विसर्ग के पहले अगर 'इ' या 'उ' हो और बाद में 'क्', 
'ख्','प्','फ्' में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान पर 'ष' हो जाता है।यथा-आविः+कृतम-आविष्कृतम्,निः+क्रान्त:-
निष्क्रान्तः,दुः+कृतम् +दुष्कृतम्, निः+ कारणम्-निष्कारणम्,धनु:+खण्डम्-धनुष्खण्डम्,निः+फलम्-निष्फलम्, 
दुः+प्रापणम्-दुष्प्रापणम्,दुः+पच:- दुष्पच: इत्यादि।   
(8)खरावसानयो विसर्जनीय:- यदि 'र्' के बाद खर् प्रत्याहार अर्थात् किसी भी  वर्ग भी का प्हला या दूसरा वर्ण
अथवा 'श्', 'ष्', 'स्' वर्ण हों अथवा नहीं भी हों तो 'र्' का विसर्ग हो जाता है।यथा-प्रातर्+काल:-प्रातः कालः 
प्रातर्+पठति-प्रातः पठति,प्रातर्+खादति-प्रातः खादति,वृक्षर्+ फलति-वृक्षः फलति,पुनर्+पृच्छति-पुनः 
पृच्छति,राम+स्-रामः,कृष्ण+स्-कृष्णः, इत्यादि।
(9)भो भगो अघो अपूर्वस्य योऽशि /हलि सर्वेषाम्- पहले सूत्र के अनुसार यदि भो, भगो:, अघो:, अ: अथवा आः 
के बाद अश् प्रत्याहार अर्थात् स्वर वर्ण या किसी भी वर्ग का तीसरा,चौथा तथा पाँचवाँ वर्ण अथवा 'य्. र्, ल्. व्, ह्' 
वर्ण हो तो  विसर्ग के स्थान पर सकार (स्) होकर 'य्' में बदल जाता है। पुनः दूसरे सूत्र के अनुसार  'य्' का लोप हो 
जाता है।ये दोनों सूत्र परस्पर पूरक हैं। 'लोपः शाकल्यस्य' सूत्र भी इसी लोप की ओर संकेत करता है।यथा-
भगो:+नमस्ते-भगो नमस्ते,अघो:+याहि-अघो याहि,बाल:+एव-बाल एव,देवा:+आगच्छन्ति-देवा आगच्छन्ति, नरा:+ 
यान्ति-नरा यान्ति,भोः+मित्र-भो मित्र,देवा:+इह-देवा इह,सुतः+आगच्छन्ति-सुत आगच्छन्ति इत्यादि।
(10)कुप्वो≍क≍पौ च-यदि कवर्ग या पवर्ग के पहले विसर्ग हो तो विसर्ग के स्थान पर जिह्वामूलीय अथवा 
उपध्मानीय हो जाता है अन्यथा विसर्ग ही रह जाता है। यथा-रामः+कथयति-रामकथयति/रामः कथयति ।
कृष्ण:+खादति-कृष्णखादति/कृष्ण: खादति,पय+पानम्प-यपानम्/पय: पानम्,वृक्ष:+फलति-वृक्षफलति/वृक्षः फलति इत्यादि।
(11)नमस्पुरसोर्गत्यो:- 'कृ' धातु के साथ 'नम:' का समास होने पर 'नमः' गतिसंज्ञक कहलाता है ।'पुर:' भी ‘नम:' की तरह अव्यय होने के कारण नित्य गतिसंज्ञक है।गतिसंज्ञक 'नमः' और 'पुरः' शब्द की सन्धि 'कृ' धातु के साथ हो तो विसर्ग के स्थान पर 'स्' हो जाता है।यथा-नमः+करोति-नमस्करोति,पुरः+करोति-पुरस्करोति,नमः+कृत्यम्-नमस्कृत्यम्,नमः+ कारः-नमस्कारः,पुरः+कारः-पुरस्कारः इत्यादि।
(12)सोऽपदादी/पाशकल्पक काम्येष्विति वाच्यम्-यदि विसर्ग के साथ पानम्, कल्पम् तथा काम्यम् इत्यादि 
शब्दों की सन्धि  हो तो विसर्ग के स्थान पर 'स्' हो जाता है।यथा-यशः+ काम्यति-यशस्काम्यति,यश:+कम्-
यशस्कम् ,पयः+पानम्-पयस्पानम्,यशः+कल्पम्-यशस्कल्पम् इत्यादि।
(13)तिरसोऽन्यतरस्याम्—यदि 'तिरः' के बाद यदि  क, ख, प, फ आता है,तो विसर्ग  के स्थान पर विकल्प से 'स्' 
हो जाता है।यथा-तिरः+पाश:-तिरस्पाशः,तिर:+फलम्-तिरस्फलम्,तिरः+करोति-तिरस्करोति,तिरः+खण्डिनी-
तिरस्खण्डिनी, इत्यादि।
(14)अतः कृकमिकंसकुंभपात्रकुशाकर्णीष्वनव्ययस्य अधः शिरसी पदे-यदि विसर्ग के साथ कार, कर, 
काम,कान्त, कंस, कुम्भ, पात्र, कुशा,कर्णी इत्यादि शब्दों की सन्धि  हो तो विसर्ग के स्थान पर 'स्' हो जाता है।इसी 
प्रकार अधः,शिर: आदि शब्दों की सन्धि हो तो भी के स्थान पर 'स्' हो जाता है तथा यदि 'सर्पि:' शब्द के साथ सन्धि 
हो तो विसर्ग का 'ष्' हो जाता है। यथा-अय:+कार:-अयस्कार:(लोहार) श्रेय:+कर:- श्रेयस्करः । अय:+काम:-
अयस्कामः (लोहे का इच्छुक) अयः+कान्त-अयस्कान्तः (चुम्बक) ,पय:+कुम्भः-पयस्कुम्भः (दूध का बर्तन) 
अय:+कुशा-अयस्कुशा (लोहे का एक पात्र)।अयः+कर्णा-अयस्कर्णी (लोहे का बर्तन) ,अध:+पदम्-अधस्पदम् (नीचे 
का पैर),सर्पिः+पाशम्-सर्पिष्पाशम् (खराब घी) सर्पिः+कल्पम्-सर्पिष्कल्पम् (थोड़ा खराब घी) इत्यादि।